अपने घटते जनाधार से चिंतित बीएसपी अपने सफल ‘भाईचारा समिति’ प्रयोग को फिर से लागू करेगी. इस प्रयोग से पार्टी अपने बिखरते वोट बैंक को भी बचाने का प्रयास करेगी.
Lucknow: अपने घटते जनाधार और बिखरे वोटबैंक से चिंतित बीएसपी अपने ‘भाईचारा समिति’ पर फिर से अमल करेगी. बीएसपी 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले ओबीसी से जुड़ने के अपने सफल ‘भाईचारा समिति’ प्रयोग को फिर से लागू करेगी. ‘भाईचारा समिति’ पहली बार 2007 के चुनाव से पहले शुरू की गई थी. इसे राज्य की 403 विधानसभाओं में बनाई जाएंगी और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) से जुड़े 100 लोगों को जोड़ेगी. ये 100 लोग बूथ स्तर पर पार्टी के राजदूत के रूप में काम करेंगे.
प्रदेश के सभी जिलों में ओबीसी भाईचारा समितियों का गठन
इन ओबीसी भाईचारा समितियों के जरिए पार्टी अपने बिखरे हुए ग्रामीण वोट बैंक को गांव-गांव में नीले झंडे और हाथी के निशान से जोड़ना चाहती है और समाजवादी पार्टी के पीडीए के दांव का जवाब भी तलाशना चाहती है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा कि बसपा ने प्रदेश के सभी जिलों में ओबीसी भाईचारा समितियों का गठन किया है. हर जिले में दो संगठनात्मक संयोजक नियुक्त किए गए हैं. जिला अध्यक्ष और प्रभारी नियुक्त किए गए हैं. उनका कहना है कि इन जिला अध्यक्ष और प्रभारियों में एक दलित समुदाय से और दूसरा ओबीसी से है.
प्रदेश अध्यक्ष ने बताया कि ये पदाधिकारी अब प्रदेश के सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में ओबीसी भाईचारा समितियों का गठन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि ये पदाधिकारी गांव-गांव जाकर लोगों के बीच जा रहे हैं. ताकि ओबीसी समाज और अन्य गरीब व अल्पसंख्यक समाज के लोग भी इस भाईचारा समिति से जुड़ सकें और आगामी 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा 2007 की तरह फिर से सत्ता हासिल कर सके.
पीडीए के नाम पर ओबीसी समुदाय को बेवकूफ बना रही सपाः बसपा प्रदेश अध्यक्ष
उन्होंने कहा कि विधानसभा प्रभारी हर गांव में ओबीसी के 100 लोगों का समूह बनाएंगे और उन्हें पार्टी के कार्यक्रमों और नीतियों की जानकारी देकर प्रशिक्षित कार्यकर्ता बनाएंगे. प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को पार्टी का सक्रिय सदस्य भी बनाया जाएगा. बसपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी के अभियान के दौरान हर गांव में लोगों को कांग्रेस, भाजपा और सपा की “दलित विरोधी” रणनीति के साथ-साथ उनके द्वारा किए जा रहे लगातार “छल” के बारे में जागरूक किया जा रहा है. यह पूछे जाने पर कि क्या यह समाजवादी पार्टी के पीडीए फॉर्मूले से प्रेरित है, पाल ने पलटवार करते हुए कहा कि सपा पीडीए के नाम पर ओबीसी समुदाय को बेवकूफ बना रही है. सपा के पीडीए का मतलब ‘परिवार विकास प्राधिकरण’ है.
कहा कि पीडीए सपा द्वारा पिछड़े दली अल्पसंख्यकों के लिए दिया गया संक्षिप्त नाम है. उन्होंने आरोप लगाया कि यादव समाज की ओबीसी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है, लेकिन सपा ने लोकसभा चुनाव में परिवार के सदस्यों को छोड़कर यादव समाज के किसी व्यक्ति को पार्टी का टिकट नहीं दिया. यादव समाज भारी मात्रा में समाजवादी पार्टी को वोट देता है, लेकिन जब टिकट की बात आती है, तो सपा प्रमुख को केवल पत्नी, भाई और भतीजे ही नजर आते हैं. पाल ने उम्मीद जताई कि ओबीसी भाईचारा समितियां एक बार फिर कड़ी मेहनत करेंगी और बसपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापस लाने में सफल होंगी.
दलित समाज के साथ-साथ अन्य पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों को भी जोड़ा जा रहा
उन्होंने कहा कि 2007 में मायावती ने सभी वर्गों की भाईचारा समिति बनाई थी, जिसके बाद 2007 में बसपा ने भारी बहुमत से सरकार बनाई थी. पार्टी ने 403 विधानसभा सीटों में से 206 पर जीत हासिल की थी. बसपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि पिछले महीने पार्टी प्रमुख मायावती द्वारा दिए गए निर्देशों के बाद कार्यकर्ता प्रदेश के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में जाकर दलित समाज के साथ-साथ अन्य पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों को बसपा शासन के दौरान किए गए कार्यों की विस्तृत जानकारी दे रहे हैं.
उन्होंने कहा कि एक बार फिर इतिहास दोहराया जाएगा और 2027 में मायावती पांचवीं बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनेंगी. 2012 से 2017 तक समाजवादी पार्टी की गुंडागर्दी देखी और अब 2017 से अब तक जनता प्रदेश में सांप्रदायिक सरकार देख रही है. इस समय उत्तर प्रदेश विधानसभा में पार्टी का सिर्फ एक सदस्य है. शायद इसीलिए राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अपनी स्थापना के बाद से सबसे बुरे दौर से गुजर रही बसपा इस बार 2027 के चुनाव को लेकर काफी सतर्क है और सफल भाईचारा प्रयोग को फिर से लागू कर रही है.
दलित चिंतक और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि अगर बसपा प्रमुख इन ओबीसी भाईचारा समितियों को अन्य पिछड़े वर्गों और दलितों तक ही सीमित रखती हैं, तो इसे अवश्य सफलता मिलेगी. राजनीतिक विशेषज्ञ भी मानते हैं कि यह तभी संभव होगा जब बसपा 2027 के चुनाव में एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरेगी.
बहुजन समाज आज भी आरक्षण के संवैधानिक लाभ से वंचित
बसपा सुप्रीमो मायावती ने पिछले महीने बसपा के अन्य पिछड़ा वर्ग की एक राज्य स्तरीय विशेष बैठक में कहा था कि बहुजन समाज के लोग आरक्षण के संवैधानिक लाभ से उसी तरह वंचित है, जिस तरह दलितों के लिए आरक्षण को विभिन्न नए नियमों और कानूनों में बांधकर लगभग अप्रभावी बना दिया गया है. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए थे कि आपसी भाईचारे के आधार पर ‘बहुजन समाज’ के सभी हिस्सों को संगठित करके और राजनीतिक ताकत बनाकर सत्ता की मास्टर चाबी पाने के लिए तैयार रहें. मायावती ने कहा था कि कांग्रेस, भाजपा और सपा की “दलित विरोधी” और “ओबीसी विरोधी रणनीति” के बारे में हर गांव में लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए.
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