प्रशांत किशोर ने राज्य में 65 प्रतिशत आरक्षण बढ़ाने के वादे पर सरकार को घेरा है.जनसुराज 11 मई से राज्यभर के 40 हजार गांवों में हस्ताक्षर अभियान शुरू करेगा.
Patna: बिहार में पीके ने नीतीश के सामने मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.सूबे की सत्ता पर काबिज होने के लिए हर राजनीतिक दल द्वारा सभी तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. इसी सियासत के तहत पीके ने बहुचर्चित जाति सर्वेक्षण पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग कर दी है. जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने सोमवार को धमकी दी कि अगर उनकी तीन प्रमुख मांगें – जिसमें बहुचर्चित जाति सर्वेक्षण पर श्वेतपत्र शामिल है – एक महीने के भीतर पूरी नहीं की गईं तो वे बिहार में नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू करेंगे.
विधानसभा का घेराव करने की दी चेतावनी
पूर्व राजनीतिक रणनीतिकार ने चल रहे भूमि सर्वेक्षण को तत्काल रोकने की भी मांग की.उन्होंने इस प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. उन्होंने दलित और महादलित समुदायों के सदस्यों को तीन दशमलव भूमि प्रदान करने के अपने वादे के बारे में सरकार से जवाब मांगा. पत्रकारों से बात करते हुए किशोर ने कहा कि अगर राज्य की एनडीए सरकार हमारी तीन मांगों को नहीं मानती है, तो जन सुराज 11 मई से राज्य भर के 40 हजार राजस्व गांवों में हस्ताक्षर अभियान शुरू करेगा.11 जुलाई को हम एक करोड़ लोगों से हस्ताक्षर एकत्र करने के बाद सरकार को एक ज्ञापन सौंपेंगे. यदि तब भी हमारी मांगों को नजरअंदाज किया गया तो हम विधानसभा के अगले मानसून सत्र के दौरान विधानसभा का घेराव करेंगे, जो इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अंतिम सत्र होगा.
उन्होंने कहा कि हमारी पहली मांग राज्य सरकार द्वारा कराए गए जातिगत सर्वेक्षण से संबंधित है. मुख्यमंत्री ने 7 नवंबर, 2023 को विधानसभा में पेश जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर 6 हजार रुपये प्रति माह से कम आय वाले 94 लाख परिवारों को 2 लाख रुपये की एकमुश्त वित्तीय सहायता देने का वादा किया था, लेकिन एक भी परिवार को यह सहायता नहीं मिली है. उन्होंने पूछा कि इस सर्वेक्षण के आधार पर 65 प्रतिशत आरक्षण बढ़ाने का वादा किया गया था, उसका क्या हुआ?
प्रशांत किशोर ने कहा कि उनकी दूसरी मांग यह है कि राज्य में दलित व महादलितों को न्याय कब मिलेगा. 50 लाख बेघर व भूमिहीन परिवारों को घर बनाने के लिए तीन डिसमिल जमीन कब मिलेगा. नीतीश कुमार सरकार ने इस मुद्दे पर दलित और महादलित समुदायों से जुड़े लोगों को धोखा दिया है. सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इन परिवारों को ज़मीन का वास्तविक कब्ज़ा कब मिलेगा.
भूमि सर्वेक्षण को स्थगित करने की मांग
अपनी तीसरी मांग के बारे में किशोर ने चल रहे भूमि सर्वेक्षण को स्थगित करने की मांग की. उन्होंने आरोप लगाया कि हम सरकार से इस प्रक्रिया को तुरंत रोकने का आग्रह करते हैं. अधिकारी लोगों से पैसे ऐंठ रहे हैं. बिहार ने केवल 20 प्रतिशत भूमि का सर्वेक्षण किया है.
उन्होंने कहा कि भूमि विवादों की बढ़ती संख्या के कारण भूमि सर्वेक्षण लंबे समय से नीतीश कुमार सरकार के एजेंडे का हिस्सा रहा है, जो राज्य में कानून और व्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती है. उन्होंने कहा कि इस भूमि सर्वेक्षण के पीछे सरकार का घोषित उद्देश्य भूमि विवादों को कम करना था, लेकिन यह लक्ष्य अभी भी अधूरा है. बिहार सरकार 2013 में शुरू होने के बाद से कुछ समय सीमा चूकने के बाद अभिलेखों को अद्यतन करने के लिए एक विशेष भूमि सर्वेक्षण कर रही है. राज्य में अंतिम सर्वेक्षण 1911 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ था. भूमि सर्वेक्षण कराने के पीछे सरकार की मंशा है कि राज्य में भूमि विवाद के मामले कम हों.
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