Jigar Moradabadi Shayari: 20वीं सदी के महान शायरों में शुमार जिगर मुरादाबादी का असली नाम अली सिकंदर था. वर्ष 1890 को मुरादाबाद में जन्में जिगर को शायरी विरासत में मिली थी. उनका पूरा खानदान शेर-ओ-शायरी का शौक रखता था. इसका असर उन पर हुआ.
06 April, 2024
जिगर मुरादाबादी कौन थे?
Jigar Moradabadi Birthday Special Shayari : 20वीं सदी के मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी का असली नाम अली सिकंदर था और वो 6 अप्रैल, 1890 को मुरादाबाद में पैदा हुए थे. जिगर को शायरी विरासत में मिली थी, उनके वालिद मौलवी अली नज़र और चचा मौलवी अली ज़फ़र दोनों शायर थे और शहर के बाइज़्ज़त लोगों में शुमार होते थे. जिगर के पूर्वज मुहम्मद समीअ का संबंध दिल्ली से था और शाहजहां के दरबार से संबद्ध थे, लेकिन शाही गुस्से के चलते वो मुरादाबाद में आकर बस गए.
जिगर के वालिद ख़्वाजा वज़ीर लखनवी के शागिर्द थे. उनका काव्य संग्रह ‘बाग़-ए-नज़र’ के नाम से मिलता है. जिगर की शुरुआती पढ़ाई घर पर और फिर मकतब (मदरसा) में हुई. प्राच्य शिक्षा की प्राप्ति के बाद अंग्रेज़ी शिक्षा के लिए उन्हें चचा के पास लखनऊ भेज दिया गया, जहां उन्होंने नौवीं जमाअत तक शिक्षा ली. उनको अंग्रेज़ी ता’लीम से कोई दिलचस्पी नहीं थी और नौवीं जमाअत में दो साल फेल हुए थे. इसी अर्से में वालिद का भी देहांत हो गया था और जिगर को वापस मुरादाबाद आना पड़ा था. ज़िंदगी की इस जिद्द-ओ-जहद में जिगर ने कभी हार नहीं मानी.
‘ये इश्क़ नहीं आसां…’ जिगर का शायराना दौर
ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे,
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है.
लब तरसते हैं इल्तिजा के लिए,
हाथ उठते नहीं दुआ के लिए,
मुझको जो चाहो कह लो,
कुछ न कहना उसे खुदा के लिए.
निगाहों का मरकज़ बना जा रहा हूं
मोहब्बत के हाथों लुटा जा रहा हूं
नज़र मिला के मिरे पास आ के लूट लिया
नज़र हटी थी कि फिर मुस्कुरा के लूट लिया
ब-ज़ाहिर कुछ नहीं कहते मगर इरशाद होता है
हम उस के हैं जो हम पर हर तरह बर्बाद होता है
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