Allahabad HC 1975 Verdict Disqualifying PM : 49 साल पहले की इस तारीख 12 जून को दो फैसले देश की दिशा बदल देने वाले थे. पहला फैसला था इलाहाबाद हाई कोर्ट का, जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दे दिया था. उस दौर में इंदिरा का राजनीतिक कद ऐसा था कि वो इस फैसले को चुनौती दे सकती थीं, लेकिन इंदिरा गांधी ने फैसला कुछ और ले लिया था.
12 June, 2024
नई दिल्ली, कुमार विनोद : देश में आपातकाल का ये 50वां साल है. इसे लेकर आज भी सियासी चर्चा होती रहती है. आरोप-प्रत्यारोप भी लगाए जाते हैं. इसके लिए सीधे तौर पर तब की कांग्रेस सरकार और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जिम्मेदार माना जाता है. ये तथ्य भी है. 25 जून, 1975 को देश में इमरजेंसी का एलान इंदिरा गांधी की सलाह पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने किया था.
इस तारीख से 13 दिन पहले एक तारीख और भी बड़ी अहम है- 12 जून. इंदिरा गांधी के खिलाफ देश भर में जारी जयप्रकाश नारायण की अगुवाई वाले आंदोलन के बीच 12 जून को इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आता है. मामला था 1971 में हुए लोक सभा चुनाव का, जिसमें इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से जीत हासिल की थी.
इंदिरा के खिलाफ इलाहाबाद HC का वो ऑर्डर
इंदिरा गांधी के खिलाफ 4 साल पुराने मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 जून, 1975 को जो फैसला सुनाया, उसकी नजीर आज भी दी जाती है. इंदिरा गांधी के खिलाफ ये मामला रायबरेली से उम्मीदवार राज नारायण ने दर्ज कराया था. राज नारायण इंदिरा गांधी के खिलाफ संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे. उस चुनाव में राज नारायण इंदिरा गांधी से तो हार गए, लेकिन चुनाव में धांधली को मुद्दा बनाते हुए उन्होंने इंदिरा गांधी की जीत को चुनौती दे दी.
12 जून को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसी मामले में इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया. हाई कोर्ट ने ना सिर्फ इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित किया, बल्कि उनके 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी. कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि रायबरेली में चुनावी सभाओं के दौरान इंदिरा गांधी के लिए सरकारी सुविधाओं का इस्तेमाल किया गया.
इंदिरा चाहती थीं पद छोड़ना, संजय गांधी ने रोका
12 जून के उस कोर्ट ऑर्डर के बाद अब सबकी निगाहें इंदिरा गांधी के फैसले पर टिकी थीं. कानूनी और नैतिक दोनों ही लिहाज से वो प्रधानमंत्री पद पर बने रहने लायक नहीं थी. हालांकि उनके पास इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का विकल्प बाकी था. लेकिन जिस तरह जेपी आंदोलन ने उनके खिलाफ पूरे देश में माहौल तैयार किया था, वो निजी तौर पर इस्तीफा देने का मन बना चुकी थीं.
इस बात का जिक्र ‘इंदिरा गांधी- ए बायोग्राफी’ में पुपुल जयकर करती हैं. पुपुल जयकर इस किताब की लेखिका भी हैं और इंदिरा गांधी की अच्छी दोस्त मानी जाती थीं. पुपुल जयकर लिखती हैं- ‘इंदिरा गांधी ने सिर्फ इस्तीफा देने का मन ही नहीं बना लिया था, बल्कि अपना इस्तीफा टाइप करवा चुकी थीं. लेकिन मां के इस फैसले का पता जब संजय गांधी को पता चला, तो वो लगभग चिल्ला पड़े.’
पुपुल जयकर की किताब के मुताबिक, संजय गांधी अपनी मां इंदिरा गांधी को ये समझा रहे थे कि आज जो लोग आपके वफादार बनकर इस्तीफे की सलाह दे रहे हैं, वो सत्ता में आते ही आपको मटियामेट कर देंगे. इस बात का जिक्र इंदिरा गांधी के निजी सचिव रहे आरके धवन ने भी एक इंटरव्यू में किया था. धवन के मुताबिक इस्तीफे पर सिर्फ इंदिरा के साइन होने बाकी थे, लेकिन इंदिरा के इस्तीफे के खिलाफ सिर्फ संजय गांधी ही नहीं, बाबू जगजीवन राम जैसे सीनियर लीडर्स भी थे.
इंदिरा के राजनीतिक सलहाकार रहे सिद्धार्थ शंकर के एक इंटरव्यू के मुताबिक, जगजीवन राम ने इंदिरा गांधी को यह सलाह दी थी- ‘मैडम आपको इस्तीफा नहीं देना चाहिए, अगर आप पद छोड़ भी रही हैं तो उत्तराधिकारी चुनना हम लोगों पर छोड़ दीजिए.
’इंदिरा गांधी, कोर्ट का ऑर्डर और इस्तीफे पर कश्मकश का जिक्र पूर्व पत्रकार और टीएमसी सांसद सागरिका घोष ने अपनी किताब ‘इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर’ में भी किया है. संजय गांधी और पार्टी में कुछ करीबियों की सलाह के बाद इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देने का मन बदल लिया. इसी फैसले के बाद देश में पहले आपातकाल की बुनियाद पुख्ता होनी शुरू होती है.
आपातकाल और इंदिरा की सबसे बड़ी हार
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के बाद प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया होता तो जेपी आंदोलन से उपजा इंदिरा के खिलाफ गुस्सा और पूरा माहौल शांत हो सकता था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 12 जून को इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के 13 दिन बाद यानी 25 जून को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने देश में आपातकाल का एलान कर दिया. इस दौरान इंदिरा गांधी और कांग्रेस सरकार की आलोचना करने वाले विपक्षी नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों तक को गिरफ्तार किया गया. प्रेस औऱ सिनेमा पर सेंशरशिप लग चुकी थी. इस दौरान चलाए गए नसबंदी कार्यक्रम को लेकर भी जनता में नाराजगी बढ़ी.
आपातकाल का ये पूरा दौर 21 महीने तक यानी 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक चला. 1977 में जब लोकसभा चुनावों का एलान हुआ तो रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी के सामने फिर से वही राज नारायण खड़े थे, जिन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुकदमा जीता था. इस बार राज नारायण ने रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी को 52 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया.
उस चुनाव में ये सिर्फ इंदिरा की हार नहीं थी, बल्कि देश भर में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था. 1977 के उस साल पहली बार देश की सत्ता किसी गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के हाथ आई थी वो प्रधानमंत्री थे मोरार जी देसाई.
*लेखक लाइव टाइम्स में एग्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं