G-7 Summit 2024: G-7 समिट 2024 का आयोजन इटली में हुआ. इसमें दुनिया के सबसे ताकतवर 7 देशों ने हिस्सा लिया जो G-7 के स्थाई सदस्य हैं. मगर सवाल ये उठता है कि क्या वाकई में ये सातों देश इतने मजबूत हैं?
15 June
G-7 Summit 2024: इटली में G-7 समिट का आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब दुनिया दो बड़ी जंगों के साये में जी रही है. रूस और यूक्रेन युद्ध फरवरी 2022 से जारी है, जबकि पिछले साल 7 अक्टूबर को इजराइल पर हमले के बाद से ही हमास और इजराइल के बीच भी जबरदस्त जंग छिड़ी हुई है. इसके साथ ही यूरोप में दक्षिणपंथ का उदय भी गंभीर मुद्दा बना हुआ है. ऐसे में सभी को दुनिया के सबसे अमीर कारोबारी देशों के संगठन G-7 से मजबूत नेतृत्व की उम्मीदें हैं. इसके इतर मौजूदा हालात पर गौर करें तो कह सकते हैं कि इस समिट में G-7 के स्थायी सदस्यों का ये सबसे कमजोर जमावड़ा है. सम्मेलन में भाग ले रहे ज्यादातर राष्ट्राध्यक्ष या तो अपने देश में होने वाले चुनावों को लेकर उलझे हुए हैं या फिर दूसरी घरेलू समस्याओं से घिरे हैं. आपको बता दें कि अमेरिका, कनाडा, इटली, जापान, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन G-7 के स्थायी सदस्य हैं.
संकट में सुनक और मैक्रॉन
G-7 में शामिल देश फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक दोनों ही अपनी गिरती लोकप्रियता के डर से मध्यावधि चुनाव कराने का एलान कर चुके हैं. सत्ता में बने रहने की ये उनकी आखिरी कोशिश है. मैक्रॉन की बात करें तो हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि उनकी अपनी पार्टी के सहयोगी भी नहीं चाहते हैं कि मैक्रॉन का चेहरा उनके कैम्पेन पोस्टर्स पर हो या रेडियो पर उनकी आवाज भी सुनाई दे. उन्हें डर है कि मैक्रॉन की छवि इतनी खराब हो चुकी है कि इससे पार्टी को नुकसान हो सकता है. जी-7 के सात देशों में कनाडा, जापान और ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं है. इनकी तुलना में भारत तेजी से आर्थिक मोर्चे पर मजबूत हो रहा है.
सुनक की सत्ता में वापसी मुश्किल
ब्रिटेन की सत्ता पर 14 वर्षों से काबिज ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी को इस बार ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ सकता है. चुनावी सर्वेक्षणों से संकेत मिल रहे हैं कि 4 जुलाई को होने वाले चुनाव में विपक्षी लेबर पार्टी के नेता कीर स्टॉर्मर का जीतना लगभग तय है. जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ को पिछले हफ्ते हुए यूरोपीय संसद के चुनाव में कट्टर दक्षिणपंथियों से मुंह की खानी पड़ी थी. अटकलें लगाई जा रही हैं कि जल्द ही उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ सकती है.
क्या खत्म होगा ट्रूडो का दौर?
9 साल तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे जस्टिन ट्रूडो ने अपनी “क्रेजी” जॉब छोड़ने के बारे में खुलकर बात की है. कनाडा में अगले चुनाव के साथ ही ट्रूडो का दौर खत्म हो सकता है. माना जा रहा है कि आने वाले चुनाव में उन्हें अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी और तेजतर्रार कंजर्वेटिव नेता पियरे मार्सेल से शिकस्त मिल सकती है. वहीं, इस साल के अंत में होने वाली नेतृत्व क्षमता की परीक्षा से पहले जापान के फुमियो किशिदा की भी लोकप्रियता सबसे निचले स्तर पर है.
बाइडेन भी मुश्किल में
कमोबेश अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन का भी यही हाल है. 81 वर्षीय जो बाइडेन के बेटे हंटर को हाल ही में बंदूक कांड में दोषी पाया गया और वो भी ऐसे समय में जब प्रेसिडेंशियल चुनाव के पहले होने वाली डिबेट में बाइडेन को रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप का सामना करना है. बाइडेन को मतदाताओं को रिझाने के लिए बड़े-बड़े वादे करने पड़ रहे हैं. उधर कुछ यूरोपीय अधिकारियों को भरोसा है कि अगर डोनाल्ड ट्रंप जीतते हैं तो वह रूस के खिलाफ यूक्रेन युद्ध में एक विश्वसनीय सहयोगी साबित होंगे.
जीत के नए कीर्तिमान स्थापित करती मेलोनी
दूसरी ओर, जी-7 के इन छह नेताओं से इतर इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी एक के बाद एक जीत के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहीं हैं. दक्षिणपंथी ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी की नेता के रूप में सत्ता में आने के दो साल बाद हाल ही में हुए यूरोपीय चुनाव में मेलोनी ने अपनी पार्टी के वोट शेयर में बड़ा इजाफा किया है. वह अब ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ की नीति को भविष्य की दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं. लेकिन, मेलोनी किसी महाशक्ति का नेतृत्व नहीं करतीं. इतना जरूर है कि वो इटली की प्रधानमंत्री हैं, जो दुनिया की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या इतना काफी होगा? ऐसे में मौजूदा जी-7 सम्मेलन कहीं महज औपचारिकता भर बनकर ही ना रह जाए, ऐसा संदेह है.
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