Nalanda University: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नए भवन का उद्घाटन किया. पीएम मोदी ने कहा, ‘नालंदा इस सत्य का उद्घोष है कि आग की लपटों में पुस्तकें भले जल जाएं लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं.’
19 June, 2024
Nalanda University: “मुझे तीसरे कार्यकाल के लिए शपथ ग्रहण करने के बाद पहले 10 दिनों में ही नालंदा आने का अवसर मिला है. यह मेरा सौभाग्य तो है ही, मैं इसे भारत की विकास यात्रा के एक शुभ संकेत के रूप में देखता हूं. नालंदा केवल एक नाम नहीं है. नालंदा एक पहचान है, एक सम्मान है. नालंदा एक मूल्य है, मंत्र है, गौरव है, गाथा है.” नालंदा विश्वविद्यालय के न्यू कैंपस के उद्घाटन के बाद पीएम मोदी ने अपने संबोधन में बार-बार नालंदा की विरासत का जिक्र किया. इसे बिहार ही नहीं पूरे देश का गौरव बताया. इसके साथ पीएम मोदी के भाषण में नालंदा की विश्वव्यापी शोहरत और 12वीं सदी में विश्वविद्यालय पर आक्रांताओं के हमले की भी गूंज सुनाई दी. पीएम मोदी ने कहा, ‘नालंदा इस सत्य का उद्घोष है कि आग की लपटों में पुस्तकें भले जल जाएं लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं.’
OXFORD, कैंब्रिज से भी 6सदी पुरानी यूनिवर्सिटी
जिस परिसर में नालंदा यूनिवर्सिटी का न्यू कैंपस बना है, पुरानी यूनिवर्सिटी भी यहीं हुआ करती थी. नालंदा के ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक इसे 5वीं सदी में गुप्त वंश ने बनावाया था. 7वीं शताब्दी तक ये यूनिवर्सिटी दुनिया के बड़े शिक्षा केन्द्रों में शुमार हो चुकी थी. तब ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी का वजूद नहीं था. नालंदा यूनिवर्सिटी में पूरी दुनिया से छात्र पढ़ने के लिए आते थे. इतिहास की किताबों में आपने चीनी यात्री ह्वेनसांग का नाम सुना होगा. ह्वेनसांग की यात्रा डायरी के मुताबिक उन्होंने 6 साल तक नालंदा यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई की थी. यहां वो विश्वविद्यालय के आचार्य शील भद्र के शिष्य बने थे.
10 हजार छात्र, 90 लाख किताबें
पुरानी यूनिवर्सिटी 57 एकड़ से ज्यादा के क्षेत्र में फैली थी. ये इलाका गौतम बुद्ध को दान में मिली जमीन का हिस्सा था. इस पर पहले बौद्ध मठ बने थे. यूनिवर्सिटी जब बनी, तो इसकी भव्यता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं, कि यहां की लाइब्रेरी ही 9 मंजिली बनाई गई. इसमें 90 लाख किताबें थीं. पूरे कैंपस में 10 हजार से ज्यादा छात्रों की पढाई का इंतजाम था. इसके लिए 300 कमरे, 7 बड़े हॉल बने थे, साथ ही 1500 शिक्षकों को नियुक्त किया गया था.
3 महीने तक जलती रही लाइब्रेरी
नालंदा यूनिवर्सिटी 5वीं सदी के निर्माण के बाद 12वीं सदी तक पूरी दुनिया में भारत के अद्भुत ज्ञान केन्द्र के रूप में चर्चित हो चुकी थी. हालांकि इसे कई बार हमलो का भी सामना करना पड़ा. इसे पूरी तरह खाक करने वाला जो शख्स था वो था बख्तियार खिलजी. माना जाता है कि बुरी तरह से बीमार बख्तियार खिलजी नालंदा में अपने इलाज से नाखुश था. इसी गुस्से में उसने पूरी यूनिवर्सिटी में आग लगवा दी. कुछ दस्तावेज बताते हैं कि आग लगने के बाद कैंपस के बाकी हिस्सों में आग तो बुझ गई, लेकिन 9 मंजिली इमारतों में किताबें इतनी थीं कि तीन महीने तक यहां आग नहीं बुझी.
19वीं सदी में तलाश, 21वीं सदी में पुनर्निमाण
बख्तियार खिलजी के विध्वंस के बाद करीब 800 साल ये यूनिवर्सिटी गुमनाम रही. इसके खंडहर तो थे, लेकिन पूरा ढांचा मिट्टी के अंदर दबा हुआ था. यहां बड़ा ज्ञान केन्द्र होने के सबूत 1812 में मिले, जब स्थानीय लोगों को यहां से बुद्ध मूर्तियां और दूसरी चीजें मिलनी शुरू हुईं. इसकी चर्चा अखबारों में हुई, बात इतिहासकारों तक पहुंची और इसकी खुदाई के साथ अध्ययन शुरू हुआ. नालंदा यूनिवर्सिटी को दोबारा बनाने की शुरुआत 2010 में एक अधिनियम से हुई थी. दरअसल नालंदा यूनिवर्सिटी को फिर से जीवंत बनाने का विचार पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का था. कलाम ने ही 2007 की ‘ईस्ट एशिया समिट’ में नालंदा यूनिवर्सिटी के रिवाइवल का विचार 16 देशों के साथ साझा किया था. इसके बाद इसे अंतरराष्ट्रीय साझेदारी से विकसित करने पर सहमति बनी. आज ये यूनिवर्सिटी करीब 450 एकड़ के लंबे कैंपस में विकसित है. यहां 20 से ज्यादा देशों के छात्र पढ़ाई करते हैं.
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