Water Crisis: एक नए अध्ययन में चौंकाने वाली बात सामने आई है. इसके मुताबिक, 2002-2021 के दौरान उत्तर भारत में लगभग 450 घन किलोमीटर भूजल नष्ट हो गया.
07 July, 2024
Water Crisis: दुनिया भर में ग्लोबल वॉर्मिंग (global warming) और बढ़ते तापमान ने करोड़ों लोगों की मुसीबत बढ़ा दी है. इसका सीधा असर प्रकृति पर पड़ रहा है, जिससे मौसम तक प्रभावित हो रहे हैं. इसमें सबसे बड़ी समस्या देश में जल संकट है, जो अब गंभीर रूप ले रहा है. एक अध्ययन के मुताबिक, उत्तर भारत में दो दशकों के दौरान 450 क्यूबिक किलोमीटर भूजल नष्ट हो गया. इसके साथ ही आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन से भूजल स्तर की समस्या और बढ़ेगी.
विशेषज्ञों ने जताई चिंता
IIT गांधीनगर के सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान के प्रोफेसर विक्रम साराभाई ने इस मुद्दे पर बड़ी चिंता जताई है. उनका कहना है कि यह भारत के सबसे बड़े जलाशय इंदिरा सागर बांध की पूरी क्षमता से भरे जा सकने वाले पानी की मात्रा का लगभग 37 गुना है. 450 क्यूबिक किलोमीटर भूजल नष्ट होना चिंता की बात है. कुल मिलाकर पानी की यह कमी लोगों के लिए मुसीबत है.
मॉनसून में कम हुई बारिश
शोधकर्ताओं ने पाया है कि 1951-2021 के दौरान पूरे उत्तर भारत में मॉनसून के समय (जून से सितंबर) में बारिश 8.5 प्रतिशत कम हुई. साथ ही उन्होंने पाया कि इसी अवधि में क्षेत्र में सर्दियों के दौरान अधिकतम तापमान 0.3 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया.
सिंचाई की बढ़ी मांग
हैदराबाद में नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (NGRI) के शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि मॉनसून के दौरान कम बारिश और सर्दियों में गर्मी बढ़ने से सिंचाई के पानी की मांग बढ़ेगी और भूजल पुनर्भरण में कमी आएगी. जाहिर है इसके चलते उत्तर भारत में पहले से ही घटते भूजल संसाधन पर और दबाव पड़ेगा. वहीं, शुष्क मॉनसून के कारण बारिश की कमी वाली अवधि के दौरान फसलों को बनाए रखने के लिए भूजल पर अधिक निर्भरता होती है.
कम बारिश, सर्दी ज्यादा?
जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसून में बारिश की कमी और उसके बाद सर्दियां बढ़ने से भूजल पुनर्भरण में लगभग 6-12 प्रतिशत की पर्याप्त गिरावट होने का अनुमान है. 2009 में मॉनसून में लगभग 20 प्रतिशत की कमी रही. सर्दियों के दौरान मिट्टी से नमी की हानि भी पिछले चार दशकों में काफी बढ़ी हुई पाई गई है, जो सिंचाई में बढ़ती मांग और गर्मी की संभावित भूमिका का सुझाव देती है.
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