Bangladesh Violence: बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट कर दिया गया है. ऐसे में भारत के सामने कई तरह की चुनौतियां और मुसीबतें खड़ी हो गई हैं.
06 August, 2024
धर्मेन्द्र कुमार सिंह, नई दिल्ली: बदलते वक्त के हिसाब जो बदल जाए उसे ही काबिल और होशियार नेतृत्व माना जाता है. भारत की कूटनीतिक चाल यही बताती है कि देश की विदेश नीति हाल के दिनों में शानदार रही है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 15 साल तक देश की सत्ता पर काबिज रहने के बाद सोमवार को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. वह जान बचाकर भारत पहुंच गई हैं लेकिन, हसीना को भारत में रहना है या दूसरे देश में शरण लेना है, यह साफ नहीं हो पाया है. हालांकि, जिस तरह से वह गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर सेफ हाऊस में ठहरी हैं, ऐसा लगता है कि भारत सरकार शेख हसीना (Sheikh Hasina) को देश में शरण देने के पक्ष में नहीं दिख रही है. क्योंकि बांग्लादेश में जो बदलाव हुआ है, अब भारत को वहां की सरकार के साथ चलना होगा. यह अलग बात है कि जब तक शेख हसीना को दूसरे देश में शरण नहीं मिलता है तब तक वह भारत में रह सकती हैं. क्योंकि भारत को मालूम है कि अगर शेख हसीना भारत में रहती हैं तो, बांग्लादेश (Bangladesh Violence) की नई सरकार के साथ दरार पैदा हो सकता है. बता दें कि, भारत का बांग्लादेश के साथ व्यापारिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रिश्ते बेहद अहम हैं. सबसे बड़ी बात है कि भारत और बांग्लादेश की सीमा करीब 4096 किलोमीटर तक लगती है. वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश पर पाकिस्तान और चीन की भी नजर बनी हुई है जो, भारत के लिए चिंता का विषय है. वहीं शेख हसीना का तख्तापलट होने के बाद वहां BNP, जमात-ए-इस्लामी जैसे चीन समर्थक गुटों का उदय हो सकता है. इससे भारत की सीमा सुरक्षा और रणनीतिक साझेदारी पर गंभीर असर पड़ सकता है. ऐसे में भारत के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं. इस कारण भारत को बांग्लादेश की नई सरकार के साथ सामंजस्य बिठाना है ना कि शेख हसीना के साथ पुराने रिश्ते को निभाना है.
बांग्लादेश की स्थिति को लेकर भारत चिंतित
भारत और शेख हसीना का रिश्ता काफी पुराना रहा है. शेख हसीना की सरकार भारत विरोधी कट्टरपंथी तत्वों पर नकेल और भारत-चीन के साथ संबंधों में एक संतुलन बनाए रखती थी. भारत के साथ बांग्लादेश के साथ व्यापार भी अच्छा रहा है. बांग्लादेश से सटे हुए इलाकों में भारत की सीमा पर भी सामंजस्य भी अच्छा रहा है. कई महत्वपूर्ण समझौते भी हुए हैं. अब ऐसे में दावा किया जा रहा है कि बदली सरकार में भारत को सीमा सुरक्षा से संबंधित मुश्किलों से सामना करना पड़ सकता है. अगर बांग्लादेश में स्थिति बेकाबू होती है तो, इसका असर भारत की पूर्वोतर सीमाओं पर भी देखने को मिल सकता है. ऐसे में भारत फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है. इसमें विपक्षी पार्टियों का भी सहयोग मिल रहा है. मंगलवार को सर्वदलीय बैठक में विपक्षी पार्टियों को बांग्लादेश की स्थिति पर अवगत कराया गया. विदेश मंत्री जयशंकर ने संसद में भी बयान दिया. संसद में जयशंकर ने कहा कि भारत-बांग्लादेश के रिश्ते कई दशकों से और कई सरकारों के दौरान अभूतपूर्व रहे हैं. उन्होंने कहा कि जनवरी 2024 से वहां चुनावों के बाद काफी तनाव, गहरा विभाजन और ध्रुवीकरण बांग्लादेश की राजनीति में बढ़ रहा था. भारत सरकार बांग्लादेश में मौजूद भारतीय नागरिकों और अल्पसंख्यकों की स्थिति पर भी नजर बनाए हुए है. उन्होंने बांग्लादेश की निंदा किए बिना कहा कि भारत के लिए चिंताजनक बात यह है कि अल्पसंख्यकों के व्यापार और मंदिरों को कई जगहों पर निशाना बनाया गया. यह कितने बड़े पैमाने पर हुआ है, अभी तक साफ नहीं है. वहीं विपक्षी पार्टियों ने कोई सवाल-जवाब नहीं किया है. जाहिर है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष इस बात से अवगत है कि अगर इस मामले में राजनीति हुई तो, इसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है.
भारत की कूटनीति का लोहा
भारत की कूटनीति को लेकर दुनिया में चर्चा हो रही है. भारत इस मामले में कहीं फंसना नहीं चाहता है बल्कि, अपने रिश्ते को बैलेंस करना चाहता है. केंद्र सरकार नहीं चाहती कि भारत पर आरोप लगे कि वह किसी का भी पक्ष ले रहा है. चाहे यूक्रेन-रूस की लड़ाई हो या इजराइल-हमास के बीच जंग या चीन के अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर भी भारत सरकार शांत रहने की कोशिश करती है. वहीं नेपाल में जब राजतंत्र था तब भी भारत की अच्छी दोस्ती थी. जब नेपाल में तख्तापलट हुआ तो भारत ने अपनी नीति को बदलते हुए वहां की जनता और सरकार के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश की. हालांकि, नेपाल से भारत के रिश्ते खट्टे-मिट्टे रहे हैं. श्रीलंका में तख्तापलट के मामले में भी भारत ने गंभीरता से दखलदांजी नहीं करने की कोशिश की. दूसरी ओर पड़ोसी देश अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान, चीन से लेकर श्रीलंका और मालदीव से रिश्ते में उतार चढ़ाव को देखते हुए भारत ने बांग्लादेश के मुद्दे पर अपनी नीति बदलने का फैसला लिया.
अब भारत बांग्लादेश में क्या करेगा?
बांग्लादेश में बदलाव होने के साथ सारे समीकरण बदल गए हैं. चूंकि, हसीना की भारत से पुरानी दोस्ती थी. अब बांग्लादेश में राजनीतिक परिदृश्य बदल गए हैं. ऐसे में दावा इस बात का भी है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर बांग्लादेश में खेल कर सकते हैं. वहीं दूसरी तरफ अमेरिका भी अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश कर सकता है. यह भारत के लिए दिक्कत पैदा कर सकता है. अब भारत के साथ चुनौती है कि कैसे बांग्लादेश के साथ पुराने रिश्ते को बरकरार रखा जाए. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक समय कहा था कि दोस्त बदले जा सकते हैं लेकिन, पड़ोसी नहीं बदले जा सकते हैं. वहीं बांग्लादेश को भी मालूम है कि अगर भारत को छोड़कर दूसरे देशों से सहयोग लिया तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. ऐसे में वहां की नई सरकार भारत के साथ रिश्तों को बरकरार रखने की कोशिश करेगी. वहीं भारत का भी रुख नई सरकार के लिए सकारात्मक हो सकता है. क्योंकि, बांग्लादेश में करीब 9 फीसदी हिंदू आबादी है, जो लगातार हिंसा की वजह से घट रहा है. भारत के रिश्ते पाकिस्तान, चीन और अन्य पड़ोसी देशों से रिश्ते बेहतर नहीं है. वहीं इस पूरे घटनाक्रम में यह देखना अहम होगा कि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार किसकी बनती है और उस सरकार का झुकाव किस तरफ रहता है. हालांकि, भारत इस बात का जरूर ध्यान रखेगा कि बांग्लादेश के साथ रिश्ते में सुधार बना रहे और बांग्लादेश दूसरे देश की कठपुतली ना बन जाए.
धर्मेन्द्र कुमार सिंह (इनपुट एडिटर, लाइव टाइम्स)