Hindenburg Research : हिंडनबर्ग रिसर्च फर्म फोरेंसिक अकाउंटिंग के लिए चर्चित है. साल 2023 में भारत में हिंडनबर्ग का नाम सुर्खियों में आया था.
11 August, 2024
Hindenburg Research : हिंडनबर्ग नेट एंडरसन द्वारा स्थापित एक यू.एस.आधारित फर्म है. हिंडनबर्ग फोरेंसिक अकाउंटिंग के लिए चर्चित है . यह शोध और अपने अहम खोज के लिए लोकप्रिय है. साल साल 2023 में भारत में हिंडनबर्ग का नाम सुर्खियों में आया था क्योंकि इसके कारण भारतीय अरबपति गौतम अडानी को बहुत बड़ा घाटा हुआ था. इसके बाद हिंडनबर्ग के निशाने पर ट्विटर के को-फाउंडर जैक डोर्सी की कंपनी Block Inc आयी, इसका हाल भी अडानी समूह के जैसा ही हुआ. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर हिंडनबर्ग रिसर्च फर्म है क्या और यह कैसे काम करता है.
कैसे शुरू हुआ हिंडनबर्ग रिसर्च फर्म
हिंडनबर्ग के फाउंडर नाथन एंडरसन हैं. अमेरिका की कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी से नाथन एंडरसन ने इंटरनेशनल बिजनेस में ग्रेजुएशन किया. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक डाटा रिसर्च कंपनी में काम करना शुरू किया. उन्हें इस कंपनी में इनवेस्टमेंट से जुड़ी रिसर्च का काम मिला था. इसी दौरान उन्हें यह समझ आया कि शेयर मार्केट (Share Market) दुनिया के पूंजीपतियों का सबसे बड़ा अड्डा है. नौकरी करते हुए उन्हें यह समझ आया कि शेयर मार्केट में बहुत कुछ ऐसा है जो आम लोगों के समझ में नहीं आता है. इसके बाद नौकरी छोड़ साल 2017 में नाथन एंडरसन ने Hindenburg नाम से अपनी फर्म शुरू की.
क्या काम करता है Hindenburg
Hindenburg शेयर मार्केट, इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेटिव्स पर रिसर्च करता है. रिसर्च फर्म का काम यह पता लगाना है कि क्या Stock Market में कहीं गलत तरह से तो पैसों की हेरा-फेरी नहीं हुई है ?अपने फायदे के लिए कोई कंपनी अकाउंट मिसमैनेजमेंट तो नहीं कर रही? इन्हीं सभी मुद्दों पर कंपनी रिसर्च करती है और फिर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर उसे पब्लिश करती है.
अब तक 16 रिपोर्ट की जारी
2017 से लेकर अब तक Hindenburg रिसर्च फर्म ने कंपनियों में अवैध लेनदेन, धोखाधड़ी आदि की ओर इशारा करते हुए 16 रिपोर्ट जारी की है. इलेक्ट्रिक कार कंपनी निकोला को लेकर Hindenburg रिसर्च फर्म ने जांच रिपोर्ट जारी की थी, जो कि उनकी जांच में सबसे बड़ी रिपोर्टों में से एक है.
जानिए क्या होता है शॉर्ट सेलिंग
कोई भी इन्वेस्टर उस कंपनी के शेयर को खरीदता है, जिसके दाम भविष्य में बढ़ने वाले होते हैं. जब शेयर के दाम बढ़ जाते हैं तो लोग इसे बेच देते हैं, लेकिन शॉर्ट सेलिंग में ठीक इसके उलट होता है. शॉर्ट सेलिंग में शेयर की खरीद तब की जाती है, जब भविष्य में उसके दाम गिरने वाले होते हैं. ऐसे में शॉर्ट सेलर अपने पास शेयर ना होते हुए भी इन्हें बेचता है. लेकिन वो शेयर खरीदकर नहीं बेचता बल्कि उधार लेकर बेचता है.