मजाज लखनवी के पढ़ें इश्क पर शानदार शेर.
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी,
कुछ मुझे भी खराब होना था.
तुम्हारी निगाह
मुझ को ये आरजू वो उठाएं नकाब खुद,
उन को ये इंतिजार तकाजा करे कोई.
आरजू वो उठाएं
इश्क का जौक-ए-नजारा मुफ्त में बदनाम है,
हुस्न खुद बे-ताब है जल्वा दिखाने के लिए.
जौक-ए-नजारा
दफ्न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज को,
और तुम चाहो तो अफ्साना बना सकता हूं मैं.
तुम्हारे राज
ये मेरे इश्क की मजबूरियां मआज-अल्लाह,
तुम्हारा राज तुम्हीं से छुपा रहा हूं मैं.
इश्क की मजबूरियां
रोएं न अभी अहल-ए-नजर हाल पे मेरे,
होना है अभी मुझ को खराब और जियादा.
रोएं न अभी