शकील बदायूनी के पढ़ें सदाबहार शेर
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया,
जाने क्यूं आज तिरे नाम पे रोना आया.
ऐ मोहब्बत
कैसे कह दूं कि मुलाकात नहीं होती है,
रोज मिलते हैं मगर बात नहीं होती है.
कैसे कह दूं
उन का जिक्र उन की तमन्ना उन की याद,
वक्त कितना कीमती है आज कल.
उन की तमन्ना
जाने वाले से मुलाकात न होने पाई,
दिल की दिल
में ही रही बात न होने पाई.
दिल की दिल
यूं तो हर शाम उमीदों में गुजर जाती है,
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया.
उमीदों में गुजर
मुझे दोस्त कहने वाले जरा दोस्ती निभा दे,
ये मुतालबा है हक का कोई इल्तिजा नहीं है.
दोस्ती निभा दे