Introduction
Mulayam Singh Yadav : साधारण से किसान परिवार में जन्में मुलायम सिंह यादव ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह कई बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे. इसके अलावा केंद्रीय रक्षा मंत्री के रूप में भी मुलायम सिंह यादव ने देश को अपनी सेवाएं दी हैं. एक वक्त ऐसा भी आया जब लगा कि वह देश के प्रधानमंत्री पद पर बिराजेंगे, लेकिन बात अटक गई. भले ही मुलायम सिंह ने कभी सार्वजनिक रूप से नहीं कहा, लेकिन पीएम नहीं बन पाने का मलाल उन्हें जीवनभर रहा. 22 नवंबर, 1939 को सैफई (इटावा, उत्तर प्रदेश) में जन्में मुलायम सिंह यादव की जयंती पर जमाना उन्हें याद कर रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत देश के दिग्गज नेताओं ने उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि दी. मुलायम सिंह यादव की जयंती पर इस स्टोरी में हम बता रहे हैं उनकी जिंदगी के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में.
Table of Content
- कार सेवकों पर गोली चलाने का आरोप
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ
- साधु ने की थी मुलायम के बारे में भविष्यवाणी
- वह फैसला जो कभी नहीं भूलेगा देश
- कैसे हुआ राजनीतिक का सफर शुरू ?
- साधारण से असाधारण बने मुलायम सिंह
- शरद-लालू ने किया पीएम पद से दूर ?
- पिता बनाना चाहते थे पहलवान
कार सेवकों पर गोली चलाने का आरोप
1990 से पहले ही अयोध्या में राम मंदिर बनाने की मांग को लेकर आंदोलन चरम पर था. 30 अक्टूबर, 1990 को बाबरी मस्जिद तोड़ने पर उतारू भीड़ पर मुलायम सिंह यादव के आदेश पर जवानों ने गोली चला दी. इनमें ज्यादातर कारसेवक थे. दरअसल, कारसेवकों के साथ साधु-संतों की भीड़ भी हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ने का प्रयास कर रही थी. हालात को देखते हुए शासन के आदेश पर पुलिस प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया था. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, इतनी अधिक पुलिस सुरक्षा और बलों की मौजूदगी के बावजूद अयोध्या में इतनी भीड़ जमा हो चुकी थी कि उन्हें काबू में नहीं किया जा सकता था. यह अलग बात है कि हालात के मद्देजनर यूपी पुलिस ने बाबरी मस्जिद के आसपास के करीब डेढ़ किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग की थी. किसी को प्रवेश नहीं दिया जा रहा था. 30 अक्टूबर को सुबह 10 बजे तक हनुमानगढ़ी के इलाके में बड़ी संख्या में भीड़ जमा हो चुकी थी. भीड़ की शक्ल में कारसेवक आगे बढ़ रहे थे. पुलिस की अपील भी उन पर बेअसर थी.
इस बीच कारसेवकों का एक गुट बैरिकेडिंग के पास पहुंच गया, जिसके बाद पुलिस प्रशासन के हाथपैर फूल गए. पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो कारसेवकों ने पुलिस वैन के जरिये बैरिकेडिंग के एक हिस्से को तोड़ दिया. इसके बाद बेकाबू भीड़ मस्जिद की ओर बढ़ने लगी. ऐसा कहा जाता है कि पुलिसवालों को लखनऊ से ग्रीन सिग्नल मिल गया था कि अगर कारसेवक मस्जिद की ओर बढ़ते हैं तो उनपर गोलियां चलाई जा सकती हैं. इसके बाद पुलिस ने गोलियां चलाईं. इसमें कई कारवसेवकों की मौत हुई. ऐसा कहा जाता है कि गोली लगने से कम और सरयू नदी पर बने पुल के जरिए भाग रहे लोगों के बीच भगदड़ होने से ज्यादा लोगों की मौत हुई. मृतकों की ठीक-ठीक संख्या का अंदाजा कभी नहीं लगाया जा सका. खैर, इस घटना के 2 साल बाद 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद को भीड़ ने गिरा दिया. उस वक्त यूपी में सीएम की कुर्सी पर बैठे थे कल्याण सिंह.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ
मुलायम सिंह यादव के बारे में कहा जाता है कि वह यूपी की राजनीति में सचमुच के चाणक्य थे. यही वजह थी कि कम सीटें पाने के बावजूद उन्होंने कई बार यूपी में मुख्यमंत्री पद संभाला. समाजवादी विचारधारा को मानने वाले मुलायम सिंह यादव का भारतीय जनता पार्टी से खासा विरोध था. वह भारतीय जनता पार्टी को सांप्रदायिक पार्टी मानते थे. यही वजह है कि उन्होंने सड़क से लेकर संसद तक भाजपा का जमकर विरोध किया.
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मुलायम की एक बड़ी खूबी यह थी कि उनकी सभी पार्टियों के दिग्गज नेताओं से मित्रता थी. कम्यूनिस्ट पार्टी के नेताओं से उनका खासा लगाव था तो भाजपा के नेताओं से भी उनकी खूब बनती थी. वह अक्सर विरोधियों से सार्वजनिक रूप से मिलते थे. इसका सबसे बड़ा नमूना संसद में देखने को मिला, जब मुलायम सिंह यादव ने भरे सदन में समाजवादी पार्टी की विचारधारा के बिल्कुल उलट मानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जीत की कामना की थी. संसद में यह वाकया देखकर विरोधियों के साथ समर्थक भी दंग रह गए. यह भी कम हैरत की बात नहीं कि जब 10 अक्टूबर, 2022 को समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह का निधन हुआ तो पीएम मोदी ने उन्हें गुजरात में अलग ही अंदाज में याद किया था. नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि उन्होंने सीख दी थी, जिन्हें वह कभी नहीं भुला पाएंगे. सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन पर पीएम मोदी काफी भावुक भी नजर आए थे.
वह फैसला जो कभी नहीं भूलेगा देश
मुलायम सिंह यादव के बारे में कहा जाता था कि वह जमीनी स्तर से जुड़े नेता थे. उन्होंने हमेशा किसानों, मजदूरों और वंचित वर्ग के लिए राजनीति की, जिसमें दलित और पिछड़े भी शामिल थे. उन्होंने जनहित के साथ-साथ कई ऐसे फैसले भी लिए जिन्हें हमेशा याद किया जाएगा. इन्हीं में से एक फैसला रक्षा मंत्री के रूप में था. ये मुलायम सिंह यादव का लिया हुआ ऐसा फैसला था जिसे देश कभी नहीं भूलेगा. यह फैसला था ड्यूटी के दौरान शहीद होने वाले जवानों के पार्थिव शरीर घर पहुंचाने का. पूर्व में जब कोई सैनिक शहीद होता था तो उसके घर केवल टोपी आती थी. बतौर रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव ने यह कानून बनवाया. इसके बाद शहीदों का न सिर्फ पार्थिव शरीर घर आता है बल्कि पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार भी किया जाता है.
कैसे हुआ राजनीतिक का सफर शुरू ?
मुलायम सिंह यादव के बारे में कहा जाता है कि वह बचपन से ही जुनूनी थे. वह जो ठान लेते थे करके ही दम लेते थे. यही वजह है कि छोटे से कद के मुलायम सिंह यादव ने राजनीति में इतना बड़ा कद बनाया कि लोग उनका लोहा अब भी मानते हैं. किशोर उम्र से ही मुलायम सिंह पहलवानी करने लगे थे. आसपास के गांवों में उनका नाम था. यूं कहें कि राजनीति के दांव-पेंच में माहिर मुलायम सिंह यादव मिट्टी के अखाड़े के भी पहलवान थे. उनके चरखा दांव की चर्चा आज भी होती है. यहां तक कि राजनीति में भी उनका चरखा दांव याद किया जाता है. लोग कहते हैं कि चरखा दांव ही था कि मुलायम सिंह ने कई सालों तक सत्ता में रही कांग्रेस को हाशिए पर पहुंचा दिया. हार-जीत के बावजूद देश और उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनकी अहमियत बरकरार रही.
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राजनीति की शुरुआत की बात करें तो वर्ष 1967 में समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया के करीबी सहयोगी राम सेवक यादव के साथ मुलायम का राजनीतिक सफर शुरू हुआ. कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़े की राजनीति का दांव चौधरी चरण सिंह ने चला. आगे चलकर मुलायम सिंह यादव उन्हीं चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल और फिर लोकदल से जुड़े. इसके बाद जनता पार्टी की टूट में वे चौधरी चरण सिंह के साथ रहे. उनकी राजनीतिक विरासत की जंग में शागिर्द मुलायम सिंह यादव चौधरी के पुत्र अजित सिंह पर भारी पड़े थे. आखिरकार मुलायम सिंह ही यूपी के सीएम बने, जबकि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अजित सिंह को करीब-करीब सीएम बना दिया था. दरअसल, साल 1989 में उत्तर प्रदेश सरकार के गठन की अगुवाई के सवाल पर मुलायम सिंह यादव और विश्वनाथ प्रताप सिंह ‘भिड़’ गए. इसके बाद चरखा दांव से मुलायम सिंह ने चौधरी अजीत सिंह को शिकस्त देकर विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रदेश में अपनी ताकत का संदेश दिया था.
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ऐसा कहा जाता है कि शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को 1986 में पलटने का दांव कांग्रेस पार्टी पर ही भारी पड़ गया. कांग्रेस के झुकाव को मुस्लिम कट्टरपंथियों के सामने समर्पण माना गया. राजनीति के जानकारों की मानें तो मुस्लिमों के बीच खोई साख को दोबारा पाने के लिए ही राजीव गांधी ने 1986 में अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाया. इतिहास गवाह है कि यह कांग्रेस के लिए राजनीतिक विपदा की तरह रहा. इसके बाद एक ओर हिंदू हितों के लिए भारतीय जनता पार्टी ने मोर्चा खोला तो उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक पर मुलायम सिंह यादव ने जबरदस्त पकड़ बना कर कांग्रेस को किनारे लगा दिया. इसके बाद कांग्रेस कभी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई.
साधु ने की थी मुलायम के बारे में भविष्यवाणी
मुलायम सिंह यादव एक भारतीय राजनीतिज्ञ और सरकारी अधिकारी थे जिन्होंने समाजवादी (सोशलिस्ट) पार्टी की स्थापना की थी। वे तीन बार उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री रहे. यह जानकर हैरत होगी कि मुलायम सिंह यादव को लेकर के साधु ने बचपन में ही भविष्यवाणी कर दी थी. लेखक डॉ. सुनील जोगी ने ‘एक और लोहिया’ किताब में लिखा है- ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ और ‘पूत के पैर पालने में ही नजर आ जाते हैं’ नामक कहावतें इनके जीवन के प्रारंभ में ही चरितार्थ हो गईं. मुलायम की माता ने बताया था, ‘मुलायम उस समय बच्चे ही थे. उस समय इनके सुडौल शरीर, मनमोहक रूप और शरीर के शुभ लक्षणों को देखकर गांव में आए एक साधु ने इन्हें अपनी गोद में उठा लिया. इसके बाद उस साधु ने भविष्यवाणी की कि यह बालक बड़ा होनहार है. यह आगे चलकर अपने मां-बाप का नाम रोशन करेगा.’
साधारण से असाधारण बने मुलायम सिंह
मुलायम सिंह यादव एक भारतीय राजनीतिज्ञ और सरकारी अधिकारी थे जिन्होंने समाजवादी (सोशलिस्ट) पार्टी की स्थापना की थी। वे तीन बार उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री रहे. 1990 के दशक की शुरुआत में गढ़े गए ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्रीराम’ और ‘तिलक, तराजू और तलवार’ ये दो नारे उत्तर प्रदेश में खूब गूंजते थे. इसकी वजह यह थी कि 1990 के दशक की शुरुआत में मंडल और कमंडल की राजनीति चरम पर थी. भारतीय जनता पार्टी का तेजी से उभार हो रहा था और कांग्रेस कमजोर हो रही थी. खासतौर से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस धीरे-धीरे अपना वोट बैंक गंवा रही थी.
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दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग और सवर्ण वर्ग अपना नेता और राजनीतिक पार्टी दोनों तलाश रहा था. इस बीच यानी 1993 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने दलित नेता कांशीराम को साथ लेकर नया चमत्कार किया. ‘मिले मुलायम और कांशीराम, हवा में उड़ गए श्रीराम’ के नारे के बीच भाजपा विपक्ष में पहुंच गई. बसपा के साथ गठबंधन ने मुलायम सिंह यादव को दूसरी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया. यह अलग बात है कि मायावती की महत्वाकांक्षा के चलते मुलायम सिंह की सरकार गिर गई.
शरद-लालू ने किया पीएम पद से दूर ?
उत्तर प्रदेश में मजबूत जनाधार के बाद मुलायम सिंह यादव ने देश की राजनीति में भी तहलका मचाने की कोशिश की. उन्हें केंद्र की राजनीति में भी दखल का मौका मिला. वर्ष 1996 में अटल बिहारी की 13 दिनों की सरकार गिरने के बाद प्रधानमंत्री पद की कुर्सी के लिए मुलायम सिंह यादव का भी नाम आगे बढ़ा था. कम्युनिस्टों सहित कई छोटे दल उनके साथ थे. लेकिन सजातीय लालू यादव और शरद यादव ने उनका रास्ता रोक दिया था. तब एच. डी. देवेगौड़ा की लाटरी लगी थी. देश के रक्षा मंत्री के पद से मुलायम को संतोष करना पड़ा. कहा जाता है कि शरद यादव और लालू प्रसाद यादव ने मुलायम सिंह की राह में ऐसे कांटे बोए कि प्रधानमंत्री का पद ही हाथ से चला गया. कहा जाता है कि लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, चंद्र बाबू नायडू और वीपी सिंह के कारण वह प्रधानमंत्री नहीं बन पाए. यह भी गौर करने की बात है कि चौधरी चरण सिंह मुलायम को नन्हा नेपोलियन कहकर बुलाते थे.
पिता बनाना चाहते थे पहलवान
मुलायम सिंह यादव का जन्म 21 नवंबर 1939 को उत्तर प्रदेश के सैफई में हुआ. मुलायम अपने पांच भाई बहनों में रतन सिंह से छोटे और अभय राम, शिवपाल, राम गोपाल सिंह और कमला देवी से बड़े थे. पहलवानी के शौकीन मुलायम सिंह पेशे से अध्यापक भी रहे. उन्होंने कुछ समय तक इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य किया. कहा जाता है कि पिता सुधर उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे, लेकिन उन्हें राजनीति ज्यादा सुहाई. कहा जाता है कि गुरु नत्थू सिंह को प्रभावित करने के बाद मुलायम ने जसवंत नगर विधानसभा सीट से चुनावी अखाड़े में कदम रखा. इसके बाद उन्होंने लंबा राजनीतिक संघर्ष किया. इस दौरान मुलायम सिंह यादव तीन बार यूपी के सीएम रहे. वह 1982-1985 तक विधान परिषद के सदस्य रहे. उत्तर प्रदेश विधानसभा के वह आठ बार सदस्य रहे. उन्होंने केंद्रीय रक्षा मंत्री के तौर पर यादगार राजनीतिक पारी खेली.
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