Introduction Of Delhi Assembly Election
देश की राजधानी दिल्ली में आगामी कुछ महीनों में विधानसभा (Delhi Assembly Election) के चुनाव होने वाले हैं. इस बीच दिल्ली में सियासी हलचल काफी तेज हो गई है. दिल्ली की सत्तासीन आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव के लिए प्रत्याशियों की अपनी पहली लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में 11 उम्मीदवारों के नामों का एलान किया गया है. BJP यानी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समेत अन्य दल भी तैयारी शुरू कर चुके हैं. ऐसे में आपको बता दें कि दिल्ली की सियासत काफी दिलचस्प है. दिल्ली देश सबसे पुराना शहर है, जिसका उल्लेख महाकाव्य महाभारत में मिलता है. इसके बाद दिल्ली की सत्ता का नियंत्रण एक वंश के शासक से लेकर दूसरे वंश के शासक के हाथों में जाता रहा. दिल्ली के लिए बहुत पुरानी कहावत भी प्रचलित है, जिसमें कहा जाता था कि जिसने दिल्ली पर शासन किया, उसने भारत पर शासन किया. महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ नाम से मशहूर शहर अब वर्तमान में दिल्ली शहर तक यह एक विशाल महानगर में बदल चुका है. राजा दिल्लू की दिल्ली से आज तक के सफर में इस शहर ने हमेशा शक्ति का संचालन किया है. ऐसे में इस लेख के जरिए हम दिल्ली के चुनाव (Delhi Assembly Election) और सियासी इतिहास से जुड़ी हर खास बात आपको बताएंगे.
Table Of Content
- क्या है दिल्ली विधानसभा का इतिहास?
- कब हुई दिल्ली में चुनाव की शुरुआत?
- कौन बना दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री?
- कैसे मिली दिल्ली को फिर से विधानसभा?
- 1993 के बाद किसने कब-कब जीता चुनाव?
क्या है दिल्ली विधानसभा का इतिहास?
दिल्ली प्राचीन और नए भारत का प्रतीक है. पुरानी दिल्ली की तंग गलियां और पुराने मकान के साथ नई दिल्ली के खुले जगह और आधुनिक भवन भारतीय इतिहास की गवाह हैं. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने एक बार कहा था कि दिल्ली में हमें भारत में हुए अच्छे और बुरे दोनों रूप दिखते हैं. एक ओर जहां अनेक सम्राटों की कब्रें हैं और दूसरी ओर एक गणराज्य की नर्सरी है. महाभारत काल में हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र ने पांडवों को दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में अपना साम्राज्य स्थापित करने का निर्देश दिया था. पांडव राजकुमार युधिष्ठिर ने खांडववन नाम के एक जंगल को साफ कर दिल्ली में इन्द्रप्रस्थ नामक शहर की स्थापना की थी. ऐसे में यहां हर कदम पर इतिहास की सैंकड़ों वर्षों पुरानी परंपराएं है. दिल्ली विधानसभा की वेबसाइट के मुताबिक दिल्ली की सत्ता की लड़ाई शुरू हुई मध्य भारत के मौर्य, पल्लव, गुप्त वंश के शासन से. फिर 13वीं से 15वीं शताब्दी के दौरान दिल्ली की सत्ता तुर्कों और अफगानों से होते हुए 16वीं शताब्दी में मुगलों के हाथों में चली गई.
18वीं शताब्दी के मध्य और 19वीं शताब्दी की शुरुआत में दिल्ली समेत पूरे भारत में ब्रिटिश शासन स्थापित हो गया. ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के निर्देश पर साल 1911 में भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित किया गया. हालांकि, राजधानी का वास्तविक स्थानांतरण साल 1912 में हुआ था. इसके बाद से दिल्ली सभी गतिविधियों का केंद्र बन गई. आज की दिल्ली की विधानसभा (Delhi Assembly Election) और 1913-1926 की इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल और सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली और मेट्रोपॉलिटन काउंसिल (साल 1966 से लेकर 1990 तक) की अर्धचंद्राकार इमारत ने दिल्ली के इतिहास के साथ-साथ 20वीं सदी के भारत के निर्माण की प्रक्रिया को देखा है. यह वही जगह है जहां से आधुनिक भारत के राजनीतिक क्षितिज पर लोकतंत्रीकरण की पहली हवा बही थी. इसी जगह पर भारतीय संसदीय प्रणाली की पहली नींव रखी गई थी. साल 1956 में इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. 69वें संविधान संशोधन के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, 1991 के अधिनियमन के साथ ही इसे एक विधानसभा (Delhi Assembly Election) मिली.
कब हुई दिल्ली में चुनाव की शुरुआत?
आज की दिल्ली की विधानसभा (Delhi Assembly Election) के ऐतिहासिक कक्ष महान देशभक्त भारतीय नेताओं के उग्र और विचारोत्तेजक भाषणों का एकमात्र गवाह हैं. इसी तरह दिल्ली की विधानसभा के काउंसिल चैंबर का इतिहास सबसे पुराना है. यह चैंबर इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल की बैठक के लिए बनाया गया था. इसे साल 1909 के मॉर्ले-मिंटो अधिनियम के तहत पुनर्गठित किया गया था. इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल का पहला सत्र जनवरी साल 1914 में इसी चैंबर में हुआ था. बाद में इसे दो सदनों यानी केंद्रीय विधान सभा और राज्यों की परिषद में बदल दिया गया. केंद्रीय विधानसभा और दोनों सदनों के संयुक्त सत्र काउंसिल चैंबर में आयोजित किए जाते रहे.
साल 1926 के बाद केंद्रीय विधान सभा को संसद भवन में स्थानांतरित कर दिया गया. बाद में यह साल 1952 से काउंसिल चैंबर को दिल्ली की विधानसभा के रूप में इस्तेमाल किए जाने लगा. साल 1966 में दिल्ली को महानगर परिषद दी गई. इसके बाद से 1993 से पुराना सचिवालय यानी काउंसिल चैंबर ही दिल्ली विधानसभा का मुख्यालय बना हुआ है. दिल्ली राज्य विधानसभा 17 मार्च, 1952 को राज्यों की सरकार अधिनियम, 1951 के तहत अस्तित्व में आई. पुराने सचिवालय में दिल्ली विधानसभा का उद्घाटन करते हुए तत्कालीन गृह मंत्री केएन काटजू ने इस इसे दिल्ली के इतिहास का एक शानदार उदाहरण बताया था. दिल्ली की विधानसभा (Delhi Assembly Election) रिकॉर्ड के अनुसार दिल्ली में पहला विधानसभा (Delhi Assembly Election) चुनाव साल 1952 में हुआ था.
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कौन बना दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री?
सिर्फ 48 सीटों के लिए दिल्ली में पहला चुनाव (Delhi Assembly Election) 69 वर्ष पहले साल 1952 में भारत में आम चुनाव के साथ ही हुआ था. 4 महीनों तक चले इन चुनावों के दौरान दिल्ली में पहली बार कांग्रेस को जीत मिली. ऐसे में पहले ही चुनाव (Delhi Assembly Election) में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार बनी. चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के मुताबिक दिल्ली में उस समय 5 लाख 21 मतदाता थे. इस दौरान कांग्रेस ने 39 सीटों के साथ बहुमत हासिल किया और पहली सरकार का नेतृत्व चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने किया था. इस चुनाव (Delhi Assembly Election) में जनसंघ, हिंदू महासभा और सोशलिस्ट पार्टी को कुल मिलाकर 10 सीटें ही मिली.
चौधरी ब्रह्म प्रकाश भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे. साल 1940 में महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन और साल 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में उनकी भूमिका काफी अहम रही.’शेर–ए-दिल्ली’ और ‘मुगले आजम’ के नाम से मशहूर चौधरी ब्रह्म प्रकाश स्वतंत्रता संग्राम के दौरान समय कई बार जेल भी गए. वह सिर्फ 33 साल की भारत के सबसे युवा दिल्ली के मुख्यमंत्री (Delhi Assembly Election) बने. इसके बाद साल 1955 में चौधरी ब्रह्म प्रकाश की जगह सरदार गुरुमुख निहाल सिंह कांग्रेस पार्टी से मुख्यमंत्री बने. हालांकि, वह केवल एक साल ही मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे. राज्य पुनर्गठन आयोग-1955 की सिफारिशों के बाद दिल्ली विधानसभा (Delhi Assembly Election) और मंत्रिपरिषद को समाप्त कर दिया गया. इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया. वहीं, आयोग की एक और सिफारिश पर दिल्ली नगर निगम अधिनियम-1957 लागू किया गया. इसके साथ ही पूरी दिल्ली में नगर निगम का गठन किया गया.
दिल्ली में लोकतांत्रिक व्यवस्था और एक उत्तरदायी प्रशासन प्रदान करने के लिए आम जनता का दबाव बहुत ज्यादा था. ऐसे में दिल्ली में आम जनता की बात मानते हुए दिल्ली प्रशासन अधिनियम-1966 के तहत महानगर परिषद एक सदनीय लोकतांत्रिक निकाय बनाया गया. इसमें 56 निर्वाचित सदस्य और 5 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य शामिल थे. यानी कुल मिलाकर साल 1966 से लेकर 1990 तक 61-सदस्यीय मेट्रोपॉलिटन काउंसिल ने दिल्ली का प्रशासन किया. 1966 से 1967 तक मीर मुश्ताक अहमद (अंतरिम), 1967 से 1972 तक विजय कुमार मल्होत्रा, 1972 से 1977 तक केदार नाथ साहनी, 1983 से 1990 तक जग प्रवेश चंद्र ने कार्यकारी पार्षद का पद संभाला.
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कैसे मिली दिल्ली को फिर से विधानसभा?
दिल्ली विधानसभा (Delhi Assembly Election) की वेबसाइट के मुताबिक, इस महानगर परिषद की व्यवस्था में कई कमियां देखने को मिली. विधायी शक्तियां न होने के कारण महानगर परिषद सिर्फ सलाहकार की भूमिका में काम कर रही थी. ऐसे में 24 दिसंबर, 1987 को केंद्र सरकार ने दिल्ली के प्रशासन से जुड़े मुद्दों की जांच के लिए सरकारिया समिति (बाद में बालकृष्णन समिति) नियुक्त की. जांच के बाद समिति ने 14 दिसंबर, 1989 को अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी. रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया कि दिल्ली के केंद्र शासित राज्य का दर्जा बनाए रखना चाहिए. हालांकि, यह भी कहा गया कि आम आदमी से संबंधित मामलों से निपटने के लिए शक्तियों के साथ एक विधानसभा (Delhi Assembly Election) दी जा सकती है.
कुल मिलाकर समिति ने यह सिफारिश की कि स्थिरता और स्थायित्व के लिए दिल्ली में केंद्र शासित प्रदेशों में विशेष दर्जा देने के लिए संविधान में एक विशेष व्यवस्था शामिल की जानी चाहिए. बालकृष्णन समिति की सिफारिश पर साल 1991 में संसद ने संविधान का 69वां संशोधन अधिनियम-1991 पारित किया. इसके तहत भारतीय संविधान में नए अनुच्छेद 239AA और 239AB जोड़े गए. यह अनुच्छेद भारतीय संविधान में कई अन्य बातों के साथ-साथ एक विधानसभा (Delhi Assembly Election) का प्रावधान करते हैं. साथ ही संसद ने अन्य कानून यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम-1991 पारित किया. यह अधिनियम विधानसभा और मंत्रिपरिषद तथा उससे संबंधित मामलों से संवैधानिक प्रावधानों का पूरक थी. इसके बाद फिर से चुनाव (Delhi Assembly Election) की प्रक्रिया शुरू हुई.
1993 के बाद किसने कब-कब जीता चुनाव?
इसके बाद साल 1993 में नई गठित विधानसभा (Delhi Assembly Election) के लिए चुनाव हुआ. इस चुनाव पहले ही चुनाव में BJP ने बाजी मार ली. चुनाव में जीत के बाद BJP के मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री नियुक्त किए गए. मदनलाल खुराना ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के वादे पर चुनाव (Delhi Assembly Election) लड़ा. इस चुनाव में BJP को 70 में से 49 सीटें मिली. हालांकि, मदनलाल खुराना 26 फरवरी 1996 तक ही मुख्यमंत्री पद पर रह सके और उनकी जगह साहिब सिंह वर्मा को नया मुख्यमंत्री बनाया गया. वह भी ज्यादा दिन तक मुख्यमंत्री पद पर न रह सके. चुनाव (Delhi Assembly Election) से पहले दिल्ली की कमान 12 अक्टूबर 1998 को सुषमा स्वराज को दी गई. इसके बाद प्याज की महंगाई ने जोर पकड़ा और साल 1998 के चुनाव में BJP को सत्ता से दूर कर दिया. साल 1998 में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस को बंपर जीत मिली. इस चुनाव में कांग्रेस को 52, BJP को 15, निर्दलीय को दो और जनता दल को सिर्फ एक ही सीट मिल पाई.
2003 और 2008 के चुनाव (Delhi Assembly Election) में भी शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की जीत ने सभी को हैरान कर दिया. 2003 में कांग्रेस को 47 और BJP को 20 सीटें मिली थी. 2008 में हुए चुनाव में कांग्रेस को 43, BJP को 23 और BSP यानी बहुजन समाज पार्टी को दो सीटें मिली थी. इसके बाद दिल्ली में तीन बार चुनाव (Delhi Assembly Election) जीतने वाली कांग्रेस के विजय रथ पर ब्रेक लग गया. नई-नई AAP यानी आम आदमी पार्टी ने 2013 के चुनाव (Delhi Assembly Election) में शानदार प्रदर्शन करते हुए सभी को हैरान कर दिया. हालांकि, इस चुनाव में किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था फिर भी 31 सीटों के साथ BJP सबसे बड़ी पार्टी बनी और AAP को 28 सीटों पर जीत मिली. कांग्रेस महज 8 सीटों पर ही सिमट गई थी. स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में AAP और कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई, लेकिन गठबंधन की सरकार सिर्फ 49 दिन तक ही चल सकी. फिर से हुए साल 2015 में हुए चुनाव (Delhi Assembly Election) में अरविंद केजरीवाल ने इतिहास रच दिया.
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में AAP ने प्रचंड बहुमत हासिल करते हुए 70 में से 67 सीटें जीती और कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया. अरविंद केजरीवाल फिर से दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. साल 2020 के चुनाव (Delhi Assembly Election) तक AAP दिल्ली की प्रमुख पार्टी बन चुकी थी. ऐसे में 2020 के चुनाव में भी AAP ने 70 विधानसभा सीटों में 62 सीट पर जीत दर्ज की. BJP सिर्फ 8 सीटों पर सिमटकर रह गई. दूसरी तरफ कांग्रेस का एक बार फिर से सूपड़ा साफ हो गया. चुनाव (Delhi Assembly Election) में जीत के बाद अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. हालांकि, उन्होंने कथित दिल्ली शराब घोटाला मामले में जेल जाने के बाद अपना इस्तीफा दे दिया है. उनकी जगह AAP से 21 सितंबर को आतिशी दिल्ली की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री बनी.
Conclusion Of Delhi Assembly Election 2025
दिल्ली में अगले साल यानी साल 2025 में विधानसभा का चुनाव होने वाला है. इसे लेकर सियासी पारा अभी से चढ़ने लगा है. कांग्रेस, BJP और AAP के बीच जुबानी जंग तेज होती ही जा रही है. AAP ने तो इस चुनाव (Delhi Assembly Election) के लिए अपने 11 प्रत्याशियों के लिए पहली लिस्ट भी जारी कर दी है. AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल खुद भी मैदान में हैं और दिल्ली की हर गली और कॉलोनी का दौरा कर लोगों से बातचीत और मुलाकात कर रहे हैं. वहीं, BJP ने स्थानीय नेताओं को अलग-अलग मोर्चे पर जिम्मेदारी देना शुरू कर दिया है. कांग्रेस की ओर से भी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. ऐसे में जल्द ही चुनाव (Delhi Assembly Election) की तारीखों का एलान कर दिया जाएगा. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस चुनाव (Delhi Assembly Election) में कौन जीत हासिल करता है.
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