Introduction
History of the Indian Constitution : भारतीय संविधान एक ऐसी किताब है जिसने देश में आखिरी पायदान पर खड़े व्यक्ति को अधिकार देकर सर्वोच्च पदों पर पहुंचने का जज्बा दिया है. संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की वजह से भारत का प्रत्येक नागरिक अपने हर अधिकार का संरक्षण कर सकता है. देश के संविधान का मसौदा 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में सौंप दिया गया था. 26 नवंबर भारत के इतिहास में उन तारीखों में सबसे ज्यादा महत्व रखती है जब यह देश अपनी तकदीर की नई करवट लेने जा रहा था, जहां भाषा, संस्कृति और क्षेत्रों के आधार पर बिखरे देश को एक माला में पिरोने का काम किया. हम भारत के संविधान की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके सामने कई चुनौतियां थी जिसमें सबसे बड़ी, विविधता से भरे देश में ‘लोकतंत्र’ स्थापित करना था. इन्हीं सब संघर्षों को ध्यान में रखते हुए आज हम इसी संविधान की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं.
Table of Content
- प्रारूप समिति में शामिल थे महारथी
- संविधान सभा मौजूद थे 299 सदस्य
- दीवान एन माधव राऊ की रही अहम भूमिका
- अक्टूबर में शुरू हुई मसौदे की जांच
- मसौदा सौंपने के बाद प्रकाशित किया गया
- हमें स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य चाहिए
प्रारूप समिति में शामिल थे महारथी
भारत के संविधान को 7 सदस्यीय विशेषज्ञों की एक कमेटी लिखा था जिसका नेतृत्व डॉ. बीआर अम्बेडकर ने किया था. प्रशासनिक और कानूनी जानकारों के महारथी इस समिति में शामिल थे, जिनमें मुख्य रूप से एन गोपालस्वामी आयंगर, सैयद मोहम्मद सादुल्लाह, के एम मुंशी, दीवान एन माधव राऊ, बेनेगल नरसिंह राव, सैयद मोहम्मद सादुल्लाह और डीपी खैतान शामिल है. सन् 1948 में डीपी खैतान की मृत्यु हो गई थी जिसके बाद टी टी के कृष्णामाचारी संविधान की प्रारूप समिति में शामिल किया गया था. डॉ. अंबेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष इसलिए भी नियुक्त किया गया था क्योंकि उन्होंने संविधान सभा की कई कमेटियों के सदस्य रह चुके थे. भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने में बेनेगल नरसिंह राऊ की अहम भूमिका रही जिन्हें संविधान का सलाहकार बनाया गया, उनके योगदान को डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा में चर्चा के दौरान याद किया. उन्होंने अकेले ही फरवरी, 1948 तक संविधान का प्रारंभिक मसौदा तैयार कर लिया था जिसमें 448 अनुच्छेद, 25 खंड, 12 अनुसूची और 105 संशोधन शामिल है.
संविधान सभा मौजूद थे 299 सदस्य
भारत का संविधान 26 नंवबर, 1949 को पारित किया गया था और इसको 26 जनवरी, 1950 को लागू कर दिया गया. देश में 26 नवंबर को अब संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है और 26 जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस मनाया जाता है. वहीं, भारतीय संविधान का आधार भारत सरकार अधिनियम (1935) को माना जाता है. देश का संविधान दुनिया के सभी गणतांत्रिक देशों के मुकाबले सबसे लंबा लिखित संविधान है. वहीं, भारत के बंटवारे के बाद संविधान सभा में 299 सदस्य थे. इसके बाद संविधान सभा की पहली 9 दिसंबर, 1946 को हुई थी और उसके बाद 11 दिसंबर को दूसरी बैठक बुलाई गई थी. 13 दिसंबर, 1946 को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पेश किया. यह ऐतिहासिक प्रस्ताव रहा था क्योंकि उस वक्त इसके माध्यम से स्वतंत्र भारत के संविधान की रूपरेखा तैयार की गई थी और इसके तहत संविधान का कार्य आगे बढ़ाया गया. आपको बताते चलें कि इस प्रस्ताव के माध्यम से ही भारत को एक ‘स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य’ घोषित किया गया था. नागरिकों को समानता, न्याय और स्वतंत्रता का आश्वासन दिया गया था.
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दीवान एन माधव राऊ की रही अहम भूमिका
संविधान में हस्ताक्षर करने से पहले तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने दीवान एन माधव राऊ को धन्यवाद देते हुए कहा था कि उन्होंने सिर्फ अपने ज्ञान से न केवल संविधान को तैयार करने में मदद की है, बल्कि दूसरे सदस्यों को विवेक के आधार पर काफी मदद की थी. राऊ मुख्य रूप से संविधान सभा के सदस्य नहीं थे लेकिन मसौदा कमेटी में एक प्रभावशाली शख्सियत के रूप में पहचान रखते थे. डॉ. राजेन्द्र ने कहा था कि राऊ ने दुनिया के लिखित और अलिखित संविधान का अध्ययन किया और उसके बाद चुनौतिपूर्ण कार्य उसकी आसान शब्दों में व्याख्या की. उन्होंने आगे कहा कि डॉ. अंबेडकर अगर संविधान को तैयार करने में विभिन्न चरणों के पायलट थे तो बेनेगल राऊ वह व्यक्ति थे जिन्होंने इस मुल्क के संविधान की एक स्पष्ट परिकल्पना दी थी. संवैधानिक विषयों की आसान शब्दों में व्याख्या करने की उनमें कमाल की योग्यता थी. इसके अलावा सवाल यह उठता है कि जब 26 नवंबर, 1949 में संविधान बनकर तैयार हो गया था तो उस वक्त लागू क्यों नहीं हुआ?
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अक्टूबर में शुरू हुई मसौदे की जांच
संविधान सलाहकार की तरफ से मसौदा मिलने के बाद प्रारूप समिति ने 27 अक्टूबर, 1947 को जांच शुरू कर दी जिसमें मुख्य रूप नोट्स, रिपोर्ट और ज्ञापन भी शामिल थी. उसमें काफी बदलाव-संशोधन करने के बाद 21 फरवरी, 1948 को संविधान सभा के अध्यक्ष को अपना अंतिम मसौदा सौंप दिया गया. संविधान सभा में पहले सत्र के दौरान कॉन्स्टिट्यूशन के विभिन्न पहलुओं की जांच करने और उन पर रिपोर्ट देने के लिए कई समितियां स्थापित की गईं, जिसमें मुख्य रूप से मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक और आदिवासी तथा बहिष्कृत क्षेत्रों पर सलाहकार समिति स्थापित की गई. इसके अलावा संघ समिति, संघ संविधान समिति और प्रांतीय संविधान समितियां भी शामिल हैं. इन समितियों ने अपनी रिपोर्ट अप्रैल से लेकर अगस्त 1947 के बीच संविधान सभा को अपनी रिपोर्ट सौंपी. आपको बताते चलें कि जब यह समितियां अपनी रिपोर्ट सौंप रही थीं उस वक्त जितने भी सामान्य सिद्धांत थे उनपर विस्तार के साथ विमर्श किया गया और यह मंथन 30 अगस्त, 1947 को समाप्त हुआ.
मसौदा सौंपने के बाद प्रकाशित किया गया
संविधान सभा के अध्यक्ष को मसौदा सौंपने के बाद इसे प्रकाशित किया गया और इसे प्रकाशित करने के बाद जनता के बीच में प्रचारित गया. इस दौरान जनता और बौद्धिक लोगों के बीच से कई टिप्पणियां, आलोचनाएं और सुझाव सामने आए. इन सभी सुझावों को गंभीरता के साथ एक विशेष समिति की तरफ से जांच की गई जिसमें संघ संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, संघ शक्ति समिति और स्वयं मसौदा समिति के सदस्य शामिल थे जिन्होंने इसका गहनता के साथ अध्ययन किया और संविधान के मूल स्ट्रक्चर पर लागू करने की कोशिश की. 26 अक्टूबर, 1948 को समिति ने मसौदा संविधान के उस संस्करण को पुन:मुद्रित करके प्रस्तुत किया. साथ ही संशोधन का एक सेट बनाया गया जिन्हें एक-एक करके संशोधित किया गया.
हमें स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य चाहिए
जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसंबर, 1946 को अपने सबसे प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि जब अब अपने देश के लिए संविधान बनाने की तैयारियों में जुट गए हैं तो मेरे जहन में बार-बार वह सारी संविधान साभाएं आ रही हैं जो यह महान कार्य पहले कर चुकी हैं. मुझे उस महान अमेरिकी राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया याद आ रही है जहां पर महान राष्ट्र निर्माताओं ने एक ऐसा संविधान रच दिया जिसने 150 सालों तक अपने देश के नागरिकों का मार्गदर्शक किया. इसके अलावा मेरी नजर उस महान क्रांति पर जा रही जहां 150 सालों पहले पेरिस में इकट्ठा होकर लोगों ने अपनी स्वतंत्रता की मांग करते हुए संघर्ष किया था. उन लोगों ने कितना संघर्ष किया था जिसको रोकने के लिए अधिकारी, राजा और मंत्री उन्हें रोकने के लिए सारे पैंतरे चल रहे थे. साथ ही उन्हें संविधान सभा लगाने के लिए एक कमरा तक नहीं मिला था और उन्होंने एक टेबल ग्राउंड में इकट्ठा होकर शपथ ली थी जिसे टेनिस कोर्ट की शपथ के रूप में जाना जाता है. उन्होंने भारत के संदर्भ में कहा था कि हमने एक स्वतंत्र संप्रभु गणतंत्र का दृढ़ और पवित्र संकल्प लिया है. भारत का संप्रभु का नियत है. साथ ही इसका स्वतंत्र और गणराज्य बनना भी स्वाभाविक है. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने सवाल किया कि संप्रभु के साथ लोकतांत्रिक शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया है और स्वाभाविक है. लेकिन मैं उनसे कहता हूं कि यहां पर लोकांत्रिक शब्द का इस्तेमाल निश्चित होना चाहिए पर हमारे इतिहास पर जब नजर डालें तो हमने इतिहास में लोकतांत्रिक संस्थानों के माध्यम से ही प्रशासन चलाए हैं ऐसे में हम एक लोकतांत्रिक देश न बना पाए ऐसा हो नहीं सकता है इसलिए हमारे लिए लोकतंत्र से ज्यादा कुछ नहीं है.
Conclusion
भारत का संविधान तैयार होने का मतलब था कि भारत के लोगों ने कई वर्षों की गुलामी के बाद अंधेरे से उजाले की ले जाना था. भारतीय संविधान की मूल भावना लोगों को उनके मौलिक अधिकारों को देने के साथ वैज्ञानिक सोच के प्रति जागरूक करना था. जहां पर आंदोलन से लेकर अभिव्यक्ति की आजादी मौजूद है. आजादी के 75 सालों बाद भी देश के विकास में योगदान वाले लोगों के अधिकारों का संरक्षण किया गया है. भारतीयसंविधान का मुख्य उद्देश्य उसकी प्रस्तावना में दर्शाता है जिसमें लिखा है कि हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता के प्रति हम समर्पित रहेंगे. संवैधानिक मूल्यों ने हर एक नागरिक को समान कानूनी सहायता प्रदान करने की व्यवस्था दी है.
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