27 February 2024
ये बात अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के लड़ाई के दिनों की है। तब चंद्रशेखर आजाद के पीछे पुलिस पड़ी हुई थी। उनसे बचते बचाते चंद्रशेखर आजाद अपने दोस्त के साथ पार्क में पहुंचे और वहीं सो गए। रात बीती, सुबह हुई, लोग मंदिरों में जाने लगे। वहीं पर एक अखबार वाला जोर से चिल्लाने लगा ‘काकोरी में ट्रेन डकैती’। ये सुनकर सभी परेशान हो गए। और सब जगह अफरा-तफरी मच गई। उसी के साथ ही कानपुर के अखबार में सुर्खी लगाई थी, अखबार में लिखा था भारत के 9 रत्न गिरफ्तार लेकिन उन 9 रत्नों में चंद्रशेखर आजाद का नाम नहीं था। क्योंकि वो हर बार पुलिस को चकमा देकर भाग जाया करते थे।
आजाद की दिनचर्या की बात की जाए तो वो कभी बिस्तर पर नहीं सोते थे। चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के भाबरा गांव के एक ब्राह्मण परिवार में 23 जुलाई 1930 को हुआ था। चंद्रशेखर बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के व्यक्ति थे। सुधीर विद्यार्थी ने अपनी किताब अमर शहीद चंद्रशेखर में लिखा है कि आजाद अक्सर खनियाधन के गीतों को गुनगुनाया करते थे। चंद्रशेखर को बुंदेलखंड़ी कविताएं भी खूब पसंद थी।
27 फरवरी 1931 का वो दिन
आपको बता दें कि चंद्रशेखर के आंदोलन का केंद्र प्रयागराज था। आज ही के दिन 27 फरवरी 1931 के दिन कंपनी बाग में उन्होंने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था। दरअसल 27 फरवरी 1931 का वो ऐतिहासिक दिन जब ‘आजाद’ इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने और साथियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अगली योजना बना रहे थे। जब इस बात की जानकारी अंग्रेजों के खूफिया एजेंट को लगी तो उन्होंने सैनिकों के साथ मिलकर अचानक से उन पर हमला कर दिया। लेकिन आजाद ने अपने साथियों को वहां से भगा दिया और खुद अंग्रेजी हकूमत के साथ लोहा लेने लगे। इस लड़ाई में पुलिस की गोलियों से आजाद बुरी तरह घायल हो गए थे। वो सैकड़ों पुलिस वालों के सामने तकरीबन 20 मिनट तक लड़ते रहे। चंद्रशेखर आजाद ने ये प्रण लिया था कि वो कभी पकड़े नहीं जाएंगे और ना ही ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसीलिए अपने प्रण को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार दी, और मातृभूमि के लिए अपने प्राणों को नयौछावर कर दिया। चंद्रशेखर कहा करते थे हम आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे।
चंद्रशेखर की दिन की खुराक बहुत कम थी
चंद्रशेखर की खुराक काफी कम थी वो खाने में 2 फुल्के और गुड़ के 2 टुकड़े खाना पसंद करते थे। जब उनको अच्छा खाने का मन करता था तो वो अच्छे खाने के भी शौकीन थे। आपको बता दें चंद्रशेखर को खिचड़ी बहुत पसंद थी। अगर खाने में उन्हें वो भी नसीब नहीं होता थी तो वो एक मुट्ठी भुना चना खा कर भी संतोष कर लेते थे।
ऐसे मिला चंद्रशेखर आज़ाद नाम
1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ने के बाद उनकी गिरफ्तारी हो गई थी। अंग्रेज अदालत में एक 15 साल के बच्चे पर केस चल रहा था। जज ने बच्चे से सवाल किया कि तुम्हारा नाम क्या है बच्चे ने कहा आजाद, जज ने पूछा तुम्हारे पिता का नाम क्या है बच्चे ने जवाब दिया आज़ादी, फिर जज ने सवाल किया तुम्हारा घर कहां हैं बच्चे ने कह दिया जेल। अंग्रेज जज इस पर गुस्सा हो गया और फिर बच्चे को 15 डंडे मारने की सजा दी गई। पेड़ से बांधकर बच्चे पर डंडे बरसाए जा रहे थे। लेकिन बच्चा बोलता रहा भारत माता की जय। जब सज़ा पूरी हो गई तो जेलर ने उस बच्चे को 3 आने पैसे दिए। बच्चे ने वो पैसे सीधा जाकर जेलर के मूंह पर मार दिए। अगले दिन अखबार में बच्चे की फोटो छपी, और उस दिन से सभी उसे आज़ाद के नाम से जानने लगे। चंद्रशेखर का कहना था हम आजाद थे, आजाद हैं और आज़ाद रहेंगे, हम दुशमन की गोलियों का डटकर सामना करते रहेंगे।