Introduction
Countries Struggling With Recession: पिछले कई सालों से मंदी के शोर से अमेरिका और जर्मनी समेत दुनिया भर के देश परेशान हैं. जानकारों का मानना है कि वर्ष 2024 में मंदी ने एक बार पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया. बड़े से बड़े देश भी इस समय मंदी से जूझ रहे हैं. ऐसे में कई सेक्टरों की बुरी हालत हो गई है. महंगाई को कंट्रोल करने की सभी कोशिशें नाकाम होती नजर आ रही हैं. कच्चे तेल की कीमतें हों या खाद्य वस्तुओं को दाम, हर चीज पर महंगाई का असर है. पड़ोसी देश श्रीलंका और पाकिस्तान के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. ऐसे में आज हम जानेंगे कौन से ऐसे 3 देश हैं जो इस समय महामंदी से जूझ रहे हैं. इसका असर अन्य देशों पर भी पड़ रहा है.
Table Of Content
- श्रीलंका
- आर्थिक मंदी
- हालात खराब होने की क्या है वजह?
- सेलोन बैंक कर्मचारी ने दिया बयान
- जर्मनी
- प्रमुख उद्योग संघ ने दी चेतावनी
- जर्मनी में महामंदी की शुरुआत
- जर्मनी में मंदी का क्या है कारण?
- सुस्त रिकवरी
- जर्मनी की अर्थव्यवस्था में गड़बड़ी में सुधार कब ?
- जापान
- क्या है बड़ी वजह?
श्रीलंका
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श्रीलंका ऐतिहासिक रूप से सीलोन के रूप में जाना जाता है. मई, 2024 में पहली बार श्रीलंका ने अपने लोन का भुगतान नहीं किया. इसके बाद हालात बदतर हो गए. यहां तक कि जनता सड़कों पर उतर आई. श्रीलंका इस समय 70 वर्षों में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है. श्रीलंका में मंदी साल 2019 से चल रही है और दिन पर दिन स्थिति खराब होती जा रही है. इस दौरान ईंधन की कीमतों में भी उछाल देखा गया, जो कमोबेश अब भी जारी है. खाद्य वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं. इसकी वजह से हजारों लोग रोजाना भूखे रह रहे हैं. सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में सरकारी ऋण अब 101 प्रतिशत है और साल 2023 में इसका आंकड़ा 120 प्रतिशत तक पहुंच गया था. श्रीलंका विकास अद्यतन में इस बात पर रोशनी डाली गई है कि श्रीलंका में महंगाई में कमी आई है. नई नीतियों के लागू होने की वजह से कर में वृद्धि हुई है. 5 दशकों में पहली बार चालू खाता अधिशेष हुआ है, जिसे बढ़ी हुई धनराशि और पर्यटन में पुनः वृद्धि से बल मिला है. इसके बावजूद श्रीलंका के हालात सामान्य बेहद खराब स्थिति में हैं.
आर्थिक मंदी
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वर्ष 2022 की शुरुआत में श्रीलंका की स्थिति बद से बदतर नजर आई थी. महंगाई की दर आसमान छू रही थी. वस्तुओं की कीमतें अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ गईं. विश्व बैंक की मानें तो श्रीलंका में 500,000 से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए. देश में खाने, दवा और ईंधन की कमी के साथ-साथ दैनिक ब्लैकआउट और अर्थव्यवस्था में गिरावट देखी जा गई थी. ऐसी स्थिति को देखते हुए वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी थी. इससे जूझ रहे लोगों के मन में गुस्सा भरा पड़ा. पुलिस और सुरक्षाबलों के तैनाती के बावजूद श्रीलंका में विरोध प्रदर्शन जारी रहा. इसके बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति ने इस्तीफा दे दिया और सिंगापुर भाग गए. इन घटनाओं के बाद से तत्कालीन प्रधानमंत्री और कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को 21 जुलाई को औपचारिक रूप से राष्ट्रपति चुना गया. विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी गई और कर्फ्यू लगा दिया गया.
हालात खराब होने की क्या है वजह?
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गौरतलब है कि सरकार ने इस संकट के लिए कोविड महामारी को जिम्मेदार ठहराया. कहा गया कि कोविड की वजह से पर्यटन उद्योग बर्बाद हो गया. श्रीलंका की विनाशकारी आर्थिक नीतियों को भी इसके लिए जिम्मेदार बताया गया. टैक्स में बड़ी कटौती के चलते सरकार को राजस्व में सालाना 1.4 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. रासायनिक फर्टिलाइज़र पर 2021 में प्रतिबंध से घरेलू स्तर पर खाद्य पदार्थों की कमी हुई. खर्च को कम करने के लिए सरकार ने सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों, जैसे श्रीलंका एयरलाइंस, श्रीलंका इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन और श्रीलंका टेलीकॉम का निजीकरण करना शुरू कर दिया.
सेलोन बैंक कर्मचारी ने दिया बयान
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सेलोन बैंक के कर्मचारी यूनियन के उपाध्यक्ष अनुपा नानदुला ने मंदी पर बात करते हुए कहा कि सरकार को सुधारों का बोझ वेतन लेने वाले वर्ग और मध्यम वर्ग पर नहीं डालना चाहिए, जो पहले से ही आर्थिक संकट से प्रभावित हैं. उन्होंने आगे कहा कि श्रीलंका इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन के निजीकरण के खिलाफ हाल ही में हुए प्रदर्शन में हिस्सा लिया था. वो मानते हैं कि निजीकरण से नौकरियां कम होंगी और कर्मचारी वर्ग पर ज्यादा बोझ पड़ेगा. पिछले साल आर्थिक संकट के खिलाफ हुए प्रदर्शनों को हिंसक तरीके से खत्म करने के बाद से ही श्रीलंका में प्रशासन बल का प्रयोग कर रही है.
जर्मनी
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दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी वाला देश जर्मनी एक बार फिर मंदी का शिकार है. जर्मनी की इकोनॉमी में दूसरी तिमाही में अचानक गिरावट देखने को मिली. जर्मनी की सकल घरेलू उत्पाद में पहली तिमाही की तुलना में 0.1 प्रतिशत गिरावट देखने को मिली. यहां बता दें कि लगातार दो तिमाही में गिरावट को मंदी कहा जाता है. जर्मनी की अर्थव्यवस्था इन दिनों गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है. कच्चे माल जैसे कि लिथियम पर बढ़ती निर्भरता और ऑर्डर की कमी से उसकी हालत साल 2009 की मंदी के बाद से सबसे खराब स्तर पर है. ऑर्डर की कमी से आर्थिक परेशानी और बढ़ रही है.
प्रमुख उद्योग संघ ने दी चेतावनी
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जर्मनी के प्रमुख उद्योग संघ, फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्रीज ने इस मुद्दे को लेकर चेतावनी दी. उन्होंने कहा कि जर्मनी की कच्चे माल, खासकर लिथियम के लिए आयात पर निर्भरता बढ़ रही है. उन्होंने आगे बताया कि अगर चीन से लिथियम का आयात रुक जाता है तो इससे जर्मनी की अर्थव्यवस्था को लगभग 115 अरब यूरो (122 अरब डॉलर) का नुकसान हो सकता है. जो औद्योगिक उत्पादन का लगभग 15 प्रतिशत है. वहीं, एक प्रमुख दैनिक समाचार ने बताया कि जर्मन सरकार को लगता है कि अर्थव्यवस्था लगातार दूसरे साल भी सिकुड़ेगी और उसने अपने पूर्वानुमानों में कटौती की है. औद्योगिक मंदी, कम निर्यात और बढ़ती ऊर्जा लागत को इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है. जर्मन अर्थव्यवस्था मंत्रालय को उम्मीद है कि 2024 में अर्थव्यवस्था लगातार दूसरे वर्ष सिकुड़ेगी. अब 0.3 प्रतिशत वृद्धि के अपने पूर्व अनुमान के बजाय 0.2 प्रतिशत संकुचन का अनुमान लगाया गया है.
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जर्मनी में महामंदी की शुरुआत
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जर्मनी में महामंदी की शुरुआत साल 1930 के दशक में आई. यह एक गंभीर वैश्विक आर्थिक मंदी थी, जिसमें जर्मनी सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था.
जर्मनी में मंदी का क्या है कारण?
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जर्मन अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने उम्मीद जताई है कि साल 2024 में भी जर्मनी की अर्थव्यवस्था सिकुड़ेगी. उसे अगले वर्ष में 1.1 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद है, जो पिछले पूर्वानुमान में 1 प्रतिशत थी. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2026 तक अर्थव्यवस्था में 1.6% की वृद्धि होने की उम्मीद है. हालांकि, इस समय जिस तरह के हालात चल रहे हैं उससे इस आंकड़े को हासिल करना बेहद मुश्किल लग रहा है. जर्मनी में मंदी के कई वजह हो सकते हैं.
सुस्त रिकवरी
साल 2023 में जर्मनी संकुचन वाली एकमात्र प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्था होगी, जिसकी बड़ी वजह रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध है. औद्योगिक मंदी, कम निर्यात ऑर्डर और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के प्रभाव से जूझ रही है. ऐसा माना जा रहा था कि महंगाई में कमी और यूरोपीय केंद्रीय बैंक की ओर से ब्याज दरों में कटौती से इस साल एक बार फिर अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी, लेकिन घरेलू और विदेशी स्तर पर कमजोर मांग ने इन सकारात्मक कारकों को काफी हद तक नकार दिया.
जर्मनी की अर्थव्यवस्था में गड़बड़ी में सुधार कब ?
मंदी पर बात करते हुए जर्मनी के अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबर्ट हैबेक ने बताया कि सरकार की प्रस्तावित विकास पहल आर्थिक सुधार लाने में प्रमुख भूमिका निभाएंगी.
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जापान
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जापान की अर्थव्यवस्था के लिए समय अच्छा नहीं चल रहा है. देश की अर्थव्यवस्था लगातार गिरती हुई नजर आ रही है. दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में जापान ने अपना स्थान खो दिया है. जापान अब चौथे स्थान पर आ गया है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि जापान धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता और उत्पादकता को खो रहा है. देश के सकल घरेलू उत्पाद में एक साल की तुलना में 2023 के अंतिम तीन महीनों में 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई है. इससे पहले पिछली तिमाही में अर्थव्यवस्था में 3.3 प्रतिशत गिरावट आई थी. गौरतलब है कि जापान के कैबिनेट कार्यालय के आंकड़े भी संकेत देते हैं कि जापान ने दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का अपना स्थान खो दिया है.
क्या है बड़ी वजह?
युवा आबादी
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जापान की अर्थव्यवस्था में इतनी बड़ी गिरावट की सबसे मुख्य वजह युवा आबादी है. जापान में बच्चों के कम जन्म की वजह से जनसंख्या में युवा आबादी की संख्या कम हो गई है. ऐसे में इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड ने अनुमान जताया है कि जापान चौथे स्थान पर आने वाला है. फिलहाल जापान की GDP, पिछले साल कुल 4500 अरब अमेरिकी डॉलर या लगभग 591000 अरब येन थी. जर्मनी ने पिछले महीने जीडपी 4400 अरब अमेरिकी डॉलर या 45000 अरब अमेरिकी डॉलर होने की घोषणा की थी.
जीडीपी में गिरावट
लगातार जीडीपी में गिरावट जापान को मंदी का शिकार बना रहा है. कैबिनेट कार्यालय के आंकड़ों की मानें तो अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में जापानी अर्थव्यवस्था में 0.4 प्रतिशत की सालाना दर से सिकुड़ गई है. ये पिछली तिमाही से 0 से 0.1 प्रतिशत कम है. साल 2023 के लिए जीडीपी पिछले साल की तुलना में 1.9 प्रतिशत बढ़ी थी. जापान ने अपने अर्थव्यवस्था को स्मॉल और मिड साइज के बिजनेस के माध्यम से आगे बढ़ाया है.
कोर इनफ्लेशन हाई
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जापान में महंगाई बीते कुछ दिनों में कम हुई है, लेकिन कोर इनफ्लेशन रेट के आंकडे बढ़ते जा रहे हैं. केंद्रीय बैंक के 2 प्रतिशत लक्ष्य से 15वें महीने भी ऊपर रही है. ऐसे में अब GDP के आंकड़े भी अनुमान से कम रहे हैं.Conclusion
कोविड महामारी के बाद से ही जापान, जर्मनी और श्रीलंका समेत कई देशों पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है. इसका असर सिर्फ 3 देशों पर ही नहीं बल्कि पूरे दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. मंदी का असर महंगाई और बेरोजगारी पर पर हो रहा है. इस मुद्दे को लेकर अलग-अलग देशों के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
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