Moidams UNESCO: असम में मोइदम्स नाम की कब्र को यूनेस्को की सूची में शामिल किया गया है. यह फैसला 46वें वर्ल्ड हेरिटेड कमेटी सेशन में लिया गया है.
26 July, 2024
Moidams UNESCO : संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक-सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के 46वें वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी सेशन (World Heritage Committee Session) में असम में स्थित अहोम वंश के मोइदम्स (Moidams) को यूनेस्को की सूची में शामिल किया है. मोइदम्स पूर्वोत्तर भारत में प्रतिष्ठित दर्जा पाने वाला पहला धरोहर बन गया है. बता दें कि मोइदम्स पिरामिड की तरह अनोखी टीलेनुमा संरचनाएं होती हैं, जिसका इस्तेमाल ताई-अहोम वंश के सदस्यों को मरने के बाद दफनाने के लिए किया जाता था.
क्या है टीले का इतिहास ?
ताई-अहोम वंश ने अहोम साम्राज्य (वर्तमान में असम) पर करीब 600 वर्षों तक राज किया. मोइदम्स गुंबददार कक्ष की तरह होता है, जिसकी ऊंचाई करीब दो मंजिला के बराबर होती है. इनमें प्रवेश करने के लिए एक मार्ग होता है, जिसे मेहराबदार कहते हैं. अर्धगोलाकार टीलों के ऊपर ईंटों और मिट्टी की परत बिछाई जाती है. इस कारण यह टीले देखने में एक एक पहाड़ी की तरह लगते हैं. UNESCO की वेबसाइट ने इस धरोहर के बनावट के बारे में जानकारी दी.
मोइदम्स क्यों है खास?
यह टीले अपनी बनावट के लिए खास माने जाते हैं. साथ ही यह अहोम वंश के प्रभावों को दर्शाते हैं. मोइदम्स असम के ऊपरी भाग में पाए जाते हैं, जहां अहोम साम्राज्य की पहली राजधानी चराईदेव स्थित थी. यहां पर ताई-अहोम राजवंश के सदस्यों के पार्थिव शरीर को सम्मान के साथ दफनाया जाता था. असम में इस स्थान को पवित्र माना जाता है. इसके अलावा हर मोइदम्स में तीन पार्ट होते हैं. इसमें मुख्य रूप से एक कमरा या वॉल्ट होता है, जिसमें पार्थिव शरीर को रखा जाता है. दूसरा कमरा अर्धगोलाकार होता है, जो वॉल्ट को ढकने के काम आता है. तीसरा भाग ईंट से बना होता है, जिसे चाली कहते हैं. बता दें कि मोइदम्स का आकार छोटी पहाड़ी से लेकर बड़ी पहाड़ी तक होता है.
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