17 January, 2025
Introduction
Javed Akhtar Biography : हर मूड और मिजाज का गीत लिखने वाले जावेद अख्तर एक दौर में चर्चित पटकथा लेखक हुआ करते थे. सलीम खान के साथ उन्होंने जोड़ी बनाकर कई फिल्मों के डायलॉग्स लिखे. आज भी समीम जावेद के लिखे डायलॉग और कहानियों का कोई मुकाबला नहीं कर सकता. उनकी सुपरहिट फिल्मों में ‘शोले’, ‘जंजीर’, ‘त्रिशूल’ ‘मशाल’ और ‘दीवार’ जैसी कई बेहतरीन नाम शामिल है. यादगार डायलॉग्स लिखने वाली सलीम-जावेद की जोड़ी एक दौर में कामयाबी की गारंटी हुआ करती थी. हालांकि, कुछ कारणों की वजह से ये सुपरहिट जोड़ी टूट गई वरना दोनों कुछ और यादगार फिल्मों की कहानियां और डायलॉग्स लिखते. खैर, आज हम सलीम-जावेद की जोड़ी वाले जावेद अख्तर की जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें आपके लिए लेकर आए हैं. 17 जनवरी, 1945 को ग्वालियर (उत्तर प्रदेश) में पैदा हुए जावेद अख्तर के बचपन का नाम जादू था. यह नाम उनके पिता की नज्म से निकला. लेखक और गीतकार जावेद अख्तर के बारे में जानते हैं कुछ ऐसी ही रोचक और दिलचस्प बातें.
Table of Content
- 1987 में टूटी जोड़ी
- जीते कई बड़े अवॉर्ड
- नास्तिक हैं जावेद
- मुस्लिम एक्सट्रीमिस्ट ने दिया नाम
- बनना चाहते थे डायरेक्टर
- तीन मिनट में खाते थे खाना
- ऐसे हुई करियर की शुरुआत
- इन गीतों ने किया कमाल
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1987 में टूटी जोड़ी
सलीम-जावेद की लिखी ज्यादातर कहानियों पर बनी फिल्मों में अमिताभ बच्चन ने काम किया है. कहा जाता है कि फिल्म ‘शोले’ में जय का रोल जावेद अख्तर ने ही अमिताभ बच्चन को दिलवाया था. ये कहना गलत नहीं है कि अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक बनाने में सलीम-जावेद का भी बड़ा हाथ है. वहीं, जावेद अख्तर तो हमेशा से ही अमिताभ बच्चन के प्रोफेशनलिज्म की तारीफ करते रहे हैं. वैसे कम ही लोग जानते हैं कि सलीम-जावेद जब ‘मिस्टर इंडिया’ की कहानी लिख रहे थे तब दोनों चाहते थे कि इस फिल्म में अमिताभ बच्चन ही अरुण का रोल करें. फिर जब दोनों ने अमिताभ बच्चन को ‘मिस्टर इंडिया’ की कहानी सुनाई तो बिग बी ने ये कहकर ऑफर रिजेक्ट कर दिया कि वो ऐसा प्रोजेक्ट नहीं करेंगे, जिसमें वो दिखाई ही नहीं देंगे. आखिरकार ये किरदार अनिल कपूर ने निभाया और सुपरहिट हो गया. फिल्म के डायलॉग से लेकर गानों को लोगों ने खूब पसंद किया. खैर, साल 1987 में ‘मिस्टर इंडिया’ की रिलीज के बाद सलीम-जावेद की सुपरहिट जोड़ी टूट गई. ये अलग बात है कि इसके बाद भी जावेद अख्तर ने फिल्मों के लिए डायलॉग लिखने का काम जारी रखा किया, लेकिन फिर वो दौर नहीं लौटा तो कभी था.
जीते कई बड़े अवॉर्ड
सलीम खान से अलग होकर जावेद अख्तर ने हिंदी सिनेमा में अपनी अलग पहचान बनाई. यही वजह है कि उनके खूबसूरत गीतों के लिए उन्हें 8 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है. साल 1999 में जावेद अख्तर को पदमश्री अवॉर्ड से भी नवाजा गया. इसके बाद साल 2007 में उन्हें पदम भूषण से सम्मानित किया गया.
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नास्तिक हैं जावेद
आपको जानकर हैरानी होगी कि राजनीति के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय बेहद बेबाकी के साथ रखने वाले जावेद अख्तर ईश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं. वो पूरी तरह से नास्तिक हैं. गीतकार जावेद अख्तर के घर दीवाली और ईद दोनों ही त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन वो किसी भी धर्म में आस्था नहीं रखते. वो कई बार मीडिया के सामने खुद को नास्तिक कह चुके हैं. अपनी बेबाकी के चलते जावेद अख्तर को कई बार ट्रोल भी होना पड़ा है. रोचक बात ये है कि नास्तिक होने के चलते जावेद अख्तर को हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग ट्रोल करते हैं. एक इंटरव्यू में जावेद अख्तर ने कहा था कि वो मुस्लिम नास्तिक हैं और किसी भी धर्म को नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि वो मुस्लिम परिवार में पैदा हुए हैं. ऐसे में उनके पास मुस्लिम होने के सिवा कोई रास्ता नहीं है, क्योंकि इसके लिए उन्हें अपना धर्म बदलना पड़ेगा. जावेद अख्तर खुद बोलते हैं कि जब वो किसी भी धर्म को मानते ही नहीं हैं तो उनमें’ क्यों जाएं.
मुस्लिम एक्सट्रीमिस्ट ने दिया नाम
जावेद अख्तर को अक्सर हमने अपनी राय बेबाकी से रखते हुए देखा है. यहां तक कि वो कुछ साल पहले पाकिस्तान में जाकर वहां के लोगों की आलोचना भी करके चले आए थे. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जावेद अख्तर अपनी बात कितनी बेखौफी और बेबाकी से रखते हैं. नास्तिक होने की वजह से वो हिंदू और मुस्लिम दोनों के निशाने पर रहते हैं. इतना ही नहीं जावेद अख्तर को कई बार धमकियां तक मिल चुकी हैं. जहां एक ओर हिंदू उन्हें जिहादी बोलते हैं तो मुस्लिम एक्सट्रीमिस्ट ने तो उनका नाम ही ‘अमर’ रख दिया था. अतिवादी सोच रखने वालों की ओर से मिली धमकियों की वजह से उन्हें कई बार पुलिस प्रोटेक्शन मिल चुका है. एक बार अपने इंटरव्यू में जावेद अख्तर ने बताया था कि कुछ मुस्लिमों ने उनका नाम बदल दिया है. अब वो उन्हें अमर नाम से बुलाते हैं. हिंदू एक्सट्रीमिस्ट तो उन्हें अक्सर पाकिस्तान चले जाने की सलाह देते हैं. बावजूद इसके जावेद अख्तर कभी किसी से नहीं डरे.
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बनना चाहते थे डायरेक्टर
जावेद अख्तर के पिता जान निसार अख्तर फिल्म इंडस्ट्री का जाना-माना नाम थे. वो अपने दौर के मशहूर गीतकार थे. इसके अलावा शायरी की दुनिया में भी उनका बड़ा नाम था. बावजूद इसके जावेद अख्तर ने अपने लिए खुद रास्ता बनाया और काम के लिए खूब संघर्ष किया. जावेद मुंबई आए तब उन्होंने एक सामान्य आदमी की तरह संघर्ष किया. कहा जाता है कि जब जावेद मुंबई आए थे तो कई बार उनके पास खाने तक के पैसे नहीं होते थे. पैसों और काम की कमी की वजह से उन्होंने कई रातें सड़कों के किनारे सोकर बिताईं. लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी. आंखों में डायरेक्टर बनने का ख्वाब लेकर जावेद अख्तर 4 अक्तूबर, 1964 को मुंबई के सेंट्रल स्टेशन पर उतरे. अगले 24 घंटे की जद्दोजहद से उन्हें ये अंदाजा हो गया था कि अपने सपने को सच करने की राह आसान नहीं होने वाली है. वैसे भी जब जावेद अख्तर ने घर छोड़ा तब उनकी जेब में सिर्फ 27 पैसे थे. इतना ही नहीं उन्होंने कभी किसी पेड़ के नीचे या किसी बेंच पर सोकर भी अपना समय काटा. काफी मुश्किलों के बाद जावेद अख्तर को कमाल अमरोही के स्टूडियो में काम और ठिकाना दोनों मिल गया. अपने संघर्ष के दिन और रात जावेद ने कमाल स्टूडियो के कम्पाउंड में तो कभी बरामदे में बिताए.
तीन मिनट में खाते थे खाना
जावेद अख्तर बहुत जल्दी जल्दी खाना खाते थे. कहा जाता है कि वो सिर्फ 3 मिनट में खाना खा लेते थे. इसके पीछे भी एक बड़ा कारण था. दरअसल, जिस होटल में जावेद अख्तर खाना खाते थे वहां पर उनका उधार चलता था. उधार वाले लोग होटल मालिक के आने से पहले जल्दी-जल्दी खाना खाकर निकल जाते थे और जावेद भी उन्हीं में से एक थे. वो भी मालिक के आने से पहले खाना खत्म करने के चक्कर में तीन मिनट में थाली साफ कर देते थे. जावेद अख्तर की बायोग्राफी ‘जादूनामा’ के राइटर अरविंद मंडलोई का कहना है कि जावेद अख़्तर के जीवन में बहुत सी मुश्किलें रहीं.
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ऐसे हुई करियर की शुरुआत
अपने फिल्मी करियर की शुरुआत जावेद अख्तर ने फिल्म ‘सरहदी लुटेरा’ के साथ की थी. इस फिल्म में सलीम खान ने भी एक छोटा सा रोल किया था. इसी फिल्म के साथ सलीम और जावेद में दोस्ती हो गई थी. दोनों की दोस्ती इतनी गहरी हुई कि आज भी सलीम-जावेद का नाम पर दोस्ती की मिसालें दी जाती हैं. दोनों ने मिलकर हिंदी सिनेमा के लिए कई सुपरहिट फिल्मों की कहानी लिखीं. सलीम-जावेद की जोड़ी ने 1971 से लेकर 1982 तक करीबन 24 फिल्मों के लिए काम किया. इनमें ‘शोले’, ‘दीवार’, ‘जंजीवर’, ‘हाथी मेरे साथी’, ‘यादों की बारात, ‘दीवार’, सीता और गीता, काला पत्थर, क्रांति, शान, मिस्टर इंडिया जैसी कई कामयाब फिल्मों के नाम शामिल हैं. आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि सलीम-जावेद की जोड़ी की लिखी 24 फिल्मों में से 20 बॉक्स-ऑफिस पर ब्लॉक बस्टर साबित हुईं. साल 1970 के दशक में सलीम-जावेद की जोड़ी ने उन बुलंदियों को छू लिया था कि फिल्मों के पोस्टरों पर हीरो हीरोइन के नाम के साथ-साथ राइटर्स का भी नाम लिखा जाने लगा था.
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इन गीतों ने किया कमाल
जावेद अख्तर ने सिर्फ सुपरहिट फिल्मों की कहानियां ही नहीं लिखी हैं बल्कि उन्होंने कई बेहतरीन गीत भी लिखे हैं. उन्होंने अपने अब तक के लंबे करियर में सिलसिला, सागर, 1942: ए लव स्टोरी, मेरे यार की शादी है, दिल चाहता है, लक्ष्य, वीर जारा, कल हो ना हो, लगान, और प्यार हो गया, बॉर्डर, तेजाब, डॉन, वेक अप सिड, माई नेम इज खान, ओम शांति ओम, रॉक ऑन 2, नमस्ते लंदन, दिल धड़कने दो, चलते चलते, कभी अलविदा ना कहना और गली बॉय जैसी बेहतरीन फिल्मों के सुपरहिट गाने लिखे हैं. जावेद अख्तर का लिखा गीत ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ सालों बाद भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है. इसके अलावा फिल्म ‘पापा कहते हैं का गाना घर से निकलते ही कुछ दूर चलते ही’ भी उन्हीं की कलम से निकला एक खूबसूरत गीत है. जेपी दत्ता की ब्लॉक बस्टर मूवी ‘बॉर्डर’ का गाना ‘संदेशे आते हैं’ को भला कौन भूल सकता है. ये भी जावेद अख्तर ने ही लिखा है. ‘लगान’ फिल्म का गाना ‘राधा कैसे ना जले’, ‘तेजाब’ का एक दो तीन और ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ फिल्म के गाने ‘सेनोरिटा’ और ‘ख्वाबों के परिंदे’ भी जावेद अख्तर ने ही लिखे हैं.
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