Gulshan Bawra Death Anniversary: गुलशन बावरा जो 1947 में देश के बंटवारे के बाद जिंदगी को अपने कंधों पर लादकर दिल्ली पहुंचे. उस वक्त उनके हाथ में कुछ नहीं था सिवाय बहन के.
07 August, 2024
Gulshan Bawra Death Anniversary : बॉलीवुड फिल्मों को और अधिक दर्शनीय बनाने में पर्दे के पीछे रहने वाले गीतकारों-शायरों का अहम योगदान रहा है. 100 सालों का सफर तय करने वाले फिल्म इंडस्ट्री में बहुत से गीतकर हुए हैं. इनमें चुनिंदा ही हैं, जिनके गीतों को लोग उनके नाम से जानते हैं. इन्हीं में से एक थे- गुलशन बावरा. वह 1947 में देश के बंटवारे के बाद संघर्ष करके पहुंचे. उस वक्त उनके साथ सिर्फ बहन थी. फिर दिल्ली में रिश्तेदारों और जानकारों की मदद से आगे की जिंदगी गुजारी और पढ़ाई लिखाई की. गुलशन बावरा का असली नाम गुलशन कुमार मेहता था. दिल्ली से मुंबई आकर उन्होंने काफी संघर्ष किया और तब जाकर गुलशन को गीतकार का काम मिला. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. फिल्म ‘उपकार’ के लिए लिखा उनका गीत ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरा मोती’ लोगों की जुबान पर ऐसा चढ़ा कि गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस पर सबसे ज्यादा बजने वाला गीत बन गया. दशकों बाद भी गुलशन बावरा का यह गाना पहले की तरह ही ताजा लगता है.
7 साल तक चला गुलशन का संघर्ष
एक इंटरव्यू में गुलशन बावरा ने खुद बताया था कि कैसे वे गुलशन मेहता से गुलशन बावरा हो गए? गुलशन की मानें तो उन्होंने मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में कई साल तक संघर्ष किया. उनका संघर्ष 7 साल तक चला. इस बीच वे इंडस्ट्री से जुड़े लोगों से मिलते रहे. एक रोज गुलशन की मुलाकात मशहूर संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी से हुई. उन्होंने फिल्म ‘सट्टा बाजार’ के गीत लिखे, जिसका संगीत आनंदजी-कल्याणजी दे रहे थे.
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शांति भाई ने दिया ‘बावरा’ नाम
यह महज इत्तेफाक था कि एक दिन धुनों पर काम करने के दौरान इस फिल्म के वितरक शांति भाई दबे भी पहुंच गए. गीत सुनकर फिल्म का डिस्ट्रीब्यूटर शांतिभाई दबे काफी खुश हुए. जब शांति भाई ने पूछा कि इतने खूबसूरत गीत किसने लिखे हैं? बताया गया कि इनका नाम गुलशन कुमार मेहता है तो उन्हें हुलिया देखकर यकीन नहीं आया कि यह लड़का ऐसे गीत कैसे लिख सकता है? शांति भाई ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसा बावरा सा दिखने वाला कैसे गीतकार हो सकता है? इसके बाद मशहूर संगीतकार कल्याणजी ने भरोसा दिलाया कि यह गीत इसने (गुलशन मेहता) ही लिखे हैं. शांति भाई ने ही उन्हें ‘गुलशन बावरा’ नाम दे दिया. वह इसी नाम से फिल्मों में गीत लिखने लगे.
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