Mohammed Rafi Death Anniversary: हिंदी सिनेमा में मोहम्मद रफी की आवाज का वो सुहाना दौर आज भी लोगों को याद है.
31 July, 2024
Mohammed Rafi Death Anniversary: जब भी बात होती है हिंदी सिनेमा के सुनहरे दौर के बारे में तो मोहम्मद रफी के गानों का जिक्र जरूर होता है. उन्होंने अपने करियर में एक से बढ़कर एक गाने गाए. उनकी आवाज सीधे दिल तक जाती थी. यही वजह है कि मोहम्मद रफी मर कर भी अमर हो गए. आज उनकी डेथ एनिवर्सरी पर जानते हैं आवाज के जादूगर के बारे में कुछ दिलचस्प बातें.
रफी को मिला नौशाद का साथ
मुंबई आकर मोहम्मद रफी को संगीतकार नौशाद का साथ मिला. उन्होंने रफी को फिल्म ‘अनमोल घडी’ में गाने का मौका दिया. इसके बाद ‘मेला’, ‘शहीद’ और ‘दुलारी’ जैसी फिल्मों में रफी के गाने खूब पसंद किए गए. फिल्म ‘बैजू बावरा’ के बाद तो जैसे रफी की किस्मत ही बदल गई.
जब बनें शम्मी कपूर की आवाज
अपने समय की सबसे मशहूर संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन को मोहम्मद रफी की आवाज इस कदर पसंद आई कि वह अपनी हर फिल्म में उनसे गाने गवाने लगे. इसके बाद उन्होंने राज कपूर, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार और देवानंद जैसे बड़े स्टार्स को अपनी आवाज दी. शम्मी कपूर तो रफी की आवाज इतनी पसंद करते थे कि भले ही म्यूजिक डायरेक्टर बदल जाए लेकिन वह सिंगर नहीं बदलते थे. रफी ने उनके लिए ‘ये चांद सा रोशन चेहरा’,’चाहे कोई मुझे जंगली कहे’,’एहसान तेरा होगा मुझपर’ जैसे कई हिट गाने गाए.
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मर कर भी अमर हुए रफी
शम्मी कपूर के लिए ‘किस से प्यार करूं’ को रफी ने जिस खूबसूरती से गाया वह उतने ही सहज थे बलराज साहनी के लिए ‘बाबुल की दुआएं’ जैसा दर्द भरा गीत गाने में. हालांकि, 60 का दशक आते-आते हिंदी सिनेमा में राजेश खन्ना का दौर शुरू हो गया. उस वक्त राजेश खन्ना ने अपने लिए मुकेश की आवाज को तवज्जो दी. 70 के दशक में रफी साहब का दौर खत्म सा होने लगा. हालांकि लता मंगेशकर संग लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ मिलकर उन्होंने फिल्म ‘सरगम’ से एक बार फिर दिखा दिया कि रफी जैसा कोई नहीं हो सकता. खैर, 1980 में दिल का दौरा पड़ने की वजह से संगीत की यह अनूठी विरासत हमसे बहुत दूर चली गई. मगर वो मर कर भी अमर हो गए…
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