Real Chandu Champion Story: कार्तिक आर्यन की फिल्म चंदू चैंपियन काफी चर्चा में हैं. ये फिल्म कहानी कहानी से प्रेरित है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर चंदू चैंपियन कौन है, जिसपर कबीर खान फिल्म बना रहे हैं.
08 June, 2024
Real Chandu Champion Story: जोश से भर देने वाला ट्रेलर, बेहतरीन गाने और एक्टिंग.. साथ में कबीर खान का डायरेक्शन, इन सभी को मिलाकर बनी है चंदू चैंपियन. कार्तिक आर्यन की स्पोर्ट्स ड्रामा मूवी चंदू चैंपियन 14 जून को दुनिया भर के सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. जब से फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ है तभी से इस बारे में चर्चा हो रही है कि आखिर ये चंदू चैंपियन है कौन, जिसपर फिल्म बनाने के लिए डायरेक्टर कबीर खान भी मजबूर हो गए. ऐसे में आज हम आपके लिए रील वाले नहीं बल्कि रीयल चंदू चैंपियन उर्फ मुरलीकांत पेटकर की असली कहानी लेकर आए हैं.
असली चंदू चैंपियन से मिलिए
साल था 1944. तब भारत आजाद नहीं हुआ था. ये दौर था दूसरे विश्वयुद्ध का. इसी दौर में महाराष्ट्र के सांगली के एक छोटे से घर में एक बच्चे ने जन्म लिया. नाम रखा गया मुरलीकांत. 1 नवंबर 1944 को पैदा हुए मुरलीकांत पेटकर का मन बचपन से ही खेलकूद में बड़ा लगता था. 12 साल के होते होते मुरलीकांत की जिंदगी में ऐसा टर्निंग प्वाइंट आया, जिसने सब कुछ बदलकर रख दिया. दरअसल, मुरलीकांत ने अखाड़े में गांव के मुखिया के बेटे को हरा दिया. इसके बाद मुरलीकांत के पूरे परिवार की मुश्किलें बढ़ती चली गईं. कुश्ती जीतने पर मुरली को ईनाम में 12 रुपये मिले थे. गांव में बढ़ती मुश्किलों की वजह से मुरलीकांत ईनाम के 12 रुपये लेकर घर से भाग गए. रोजी रोटी की तलाश के दौरान मुरलीकांत ने आर्मी ज्वाइन कर ली और यहां बॉक्सिंग शुरू कर दी.
20 साल की उम्र में किया कमाल
1964 में जब मुरली टोक्यो में ‘इंटरनेशनल सर्विसेज स्पोर्ट्स मीट’ में मुरलीकांत ने बॉक्सिंग का गोल्ड मेडल जीता. दुनिया के मंच पर भारत का नाम रौशन करने के बाद जब वो भारत वापस लौटे, तो सीनियर्स ने उनके लिए कुछ और ही तैयारी कर रखी थी. मुरलीकांत को जम्मू-कश्मीर भेज दिया गया.
देश के लिए खाईं 9 गोलिया
सितंबर 1965 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच जंग तेज हुई, तब मुरलीकांत सियालकोट के आर्मी कैंप में थे. उस वक्त पाकिस्तान ने अचानक भारत पर हवाई हमला किया. इस हमले में चंदू चैंपियन को 9 गोलियां लगीं. इनमें से एक गोली रीढ़ की हड्डी में, एक सिर पर, एक जांघ पर, और एक गाल पर लगी. यही नहीं, आर्मी की एक जीप घायल पड़े मुरलीकांत को रौंदकर चली गई.
2 साल का लंबा वक्त
मुरलीकांत कई घंटों तक अधमरी हालत में पड़े रहे. बाद में जब मुरलीकांत को हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया, तब उन्हें बेहतर होने में 2 साल का लंबा वक्त लगा. एक बार मुरलीकांत अपने पांवों पर वापस खड़े हुए, तो जज्बा देखिए, दो सालों के भीतर ही उन्होंने शॉट-पुट, टेबल टेनिस, डिस्कस थ्रो, जैवेलिन थ्रो और तीरंदाजी में स्टेट चैंपियनशिप जीती. इस शोहरत के साथ 1968 में वो आर्मी से रिटायर हो गए.
बड़े खुद्दार, मदद लेने से किया इंकार
70 का दशक शुरू हो चुका था. उस वक्त टाटा ग्रुप ने उन फौजियों की मदद के लिए कदम उठाया जो जंग में विकलांग हो गए थे. मुरलीकांत बड़े स्वाभिमानी थे इसलिए जब टाटा की टीम उनकी मदद के लिए पहुंची तो उन्होंने इनकार कर दिया. मुरलीकांत ने कहा कि ‘मदद ही करना चाहते हो तो मुझे काम दे दो’. इसके बाद उन्हें Telco ने नौकरी का ऑफर दिया. इस तरह मुरलीकांत उर्फ चंदू चैंपियन ने 30 साल तक टाटा की कंपनी में काम किया.
मुरलीकांत की जिंदगी का नया टर्निंग प्वाइंट
चंदू चैंपियन की जिंदगी में बड़ा टर्निंग प्वाइंट तब आया जब उनकी जिंदगी में पूर्व इंडियन क्रिकेटर विजय मर्चेंट की एंट्री हुई. वो विकलांगों की मदद के लिए NGO चलाते थे. उन्होंने साल 1972 में हुए पैरालिम्पिक खेलों में मुरलीकांत की ट्रेनिंग का खर्चा उठाया. वहां मुरलीकांत ने फ्रीस्टाइल स्विमिंग में गोल्ड मेडल जीता. साथ ही शॉट-पुट और जैवेलिन थ्रो के लिए कांस्य पदक भी हासिल किया.
नहीं मिला वाजिब सम्मान.
देश का इतना नाम रोशन करने के बाद भी चंदू चैंपियन को सम्मान के लिए तरसना पड़ा. यही वजह है कि उन्होंने साल 1982 में भारत सरकार को एक चिट्ठी लिखी जिसमें लिखा कि वो अर्जुन अवॉर्ड के लायक हैं. ये स्पोर्ट्स कैटेगरी में दूसरा सबसे बड़ा अवॉर्ड है. हालांकि, उनकी इस मांग को खारिज कर दिया गया. ये वो दिन था जब मुरलीकांत ने कसम खाई कि वो अब सरकार से कोई सम्मान नहीं लेंगे. हालांकि, 25 जनवरी, 2018 को मुरलीकांत को एक फोन आता है. फोन पर उन्हें बताया जाता है, भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है. ये सुनकर मुरलीकांत बहुत खुश हुए.
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