Shakeel Badayuni Birth Anniversary: शकील बदायूंनी हिंदी सिनेमा का वो नगीना था जिन्होंने ऐसे कई नगमे लिखे, जिन्हें सदियों तक जमाना गुनगुनाता रहेगा. उन्होंने अपने करियर में करीब 90 फिल्मों में गीत लिखे.
03 August, 2024
Shakeel Badayuni Birth Anniversary: दिलीप कुमार और नरगिस स्टारर फिल्म ‘मेला’ का गाना ये जिंदगी के मेले, दुनिया में कम न होंगे अफसोस हम ना होंगे.. सिर्फ एक गीत नहीं बल्कि फिलासफी है. इस गीत को महान गीतकार और शायर शकील बदायूंनी बड़ी आसान भाषा में कह गए. मोहब्बत की बात हो या प्रेमी-प्रेमिका के मिलने-बिछड़ने का गम, शकील बदायूंनी बहुत ही सहज और सादगी के अंदाज में ऐसे कई नगमे लिख गए, जिन्हें सदियों तक जमाना गुनगुनाता रहेगा. ऐसा माना जाता है और आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं कि उन्होंने अपने करियर में करीब 90 फिल्मों में गीत लिखे. यह संख्या बेशक कम हो, लेकिन कामयाबी के लिहाज से वह एक मुकम्मल गीतकार साबित हुए. उन्होंने करीब ढाई दशक के लंबे फिल्मी करियर में कई उम्दा गीत लिखे, जो आज भी हर उम्र के लोगों को पसंद आते हैं.
शकील अहमद से शकील बदायूंनी का सफर
3 अगस्त, 1916 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मे शकील बदायूंनी का असल नाम शकील अहमद था. यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही शायरी और अदब की दुनिया में नाम कमाने वाले शकील ने सरनेम की जगह ‘बदायूंनी’ लिखना शुरू कर दिया. वह मुशायरों में इसी नाम से बुलाए जाते. फिर जब शकील बदायूंनी की कलम की ताकत को जमाने ने सुना तो कई मशहूर संगीतकारों ने उन्हें परखना शुरू किया.
कई गायकों ने गुनगुनाए शकील के नगमे
25 बरस तक अपने नगमों के जरिये हिंदी फिल्मों पर राज करने वाले गीतकार और शायर शकील बदायूंनी को हर मिजाज के गीतों के लिए आज भी याद किया जाता है. ‘तू गंगा की मौज मैं जमुना की धारा’, ‘न जाओ सैंया छुड़ा के बैयां कसम तुम्हारी मैं रो पडूंगी’, ‘हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘सुहानी रात ढल चुकी’ और ‘ओ दुनिया के रखवाले’ जैसे गीत उन्हीं की कलम से निकले हैं. ‘मुग़ल-ए-आज़म’, ‘गंगा जमना’, ‘मदर इंडिया’, ‘अमर’, ‘दिल्लगी’, ‘दीदार’ और ‘आदमी’ जैसी कई बड़ी फिल्मों के शकील साहब ने ही गीत लिखे हैं. उनके गीतों को लता मंगेश्कर, मोहम्मद रफी, तलत महमूद, मुकेश, शमशाद और महेंद्र कपूर जैसे कई दिग्गज गायकों ने अपनी आवाज दी है.
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शाबाशियां मिलीं तो बढ़ा हौसला
यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि 13वीं सदी के सूफी ‘संत निजामुद्दीन औलिया’ के जिले में ही शकील अहमद यानी शकील बदायूंनी का जन्म हुआ. इस जिले में ‘इस्मत चुगताई’, ‘जीलानी बानो’, ‘बेखुद बदायूंनी’, ‘अदा जाफ़री’,और ‘फ़ानी बदायूंनी’ समेत कई मशहूर हस्तियां भी जन्मीं, लेकिन शकील बदायूंनी ने अपने फन और नाम से जिले का नाम और रौशन किया. पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो शकील अहमद को फारसी और हिंदी के साथ उर्दू और अरबी की भी शिक्षा घर पर ही नसीब हुई. उन्होंने साल 1936 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और वहां से BA की डिग्री ली. शायरी का शौक उन्हें पढ़ाई के दौरान ही लग गया था. मुशायरों में शाबाशियां मिलीं तो उनका हौसला भी बढ़ा और धीरे-धीरे शकील बदायूंनी का नाम हो गया. 20 अप्रैल, 1970 को बॉम्बे हॉस्पिटल में इलाज के दौरान गीतकार शकील बदायूंनी ने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन जाने से पहले वह अपने नगमों की बदौलत लोगों के दिलों में बस गए.
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