29 February 2024
हम सभी नए साल का स्वागत कर चुके हैं। इस बार यानी 2024 के फरवरी के महीने में 28 नहीं बल्कि 29 दिन होंगे। सामान्य तौर पर जिस साल फरवरी के महीने में 29 दिन होते हैं उसे लीप ईयर कहा जाता है। ये साल उन लोगों के लिए बहुत खास होता है जिनका जन्म 29 फरवरी को हुआ होता है। जाहिर सी बात है क्योंकि इन लोगों को अपना जन्मदिन मनाने का मौका 4 साल में एक बार ही मिलता है। इससे पहले 2020 में लीप ईयर आया था। वैसे तो साल में 365 दिन होते हैं लेकिन लीप ईयर में 366 दिन होते हैं क्योंकि फरवरी के महीने में एक दिन ज्यादा जुड़ जाता है। खैर, बहुत सारे लोगों के मन में ये सवाल जरूर होगा कि आखिर ये कैसे पता चलता है कि ये साल लीप ईयर है या नहीं और इसकी वजह से लोगों की जिंदगी पर क्या असर पड़ता है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए आगे पढ़िए…
क्यों आता है लीप ईयर
वैसे साल में एक दिन ज्यादा होने के पीछे खगोलीय घटनाक्रम है। दरअसल, पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा करने में 365 दिन 6 घंटे का वक्त लगता है। ऐसे में एक साल को 365 दिन का माना जाता है लेकिन बाकी के 6 घंटे दर्ज नहीं किए जाते। लेकिन हर साल के 6 घंटों को चार साल बाद जोड़ा जाए तो 24 घंटे यानी एक दिन बन जाता है। इसी वजह से हर 4 साल के बाद 366 दिनों का एक वर्ष होता है। लीप ईयर के अलावा इस साल को सोलर ईयर भी कहा जाता है।
आसान है लीप ईयर का पता लगाना
ज्यादातर लोग लीप ईयर की गणना नहीं कर पाते हैं। लेकिन इसका पता लगाना बहुत ही आसान है। इसके लिए सिर्फ दो शर्तों का पालन करना होता है। पहली, जिस साल को 4 से पूरी तरह भाग किया जा सकता है वो लीप ईयर होता है। साल 2024 भी इसी का उदाहरण है। क्योंकि 2024 को 4 से भाग देंगे तो इसका उत्तर पूर्णांक होगा। इसी तरह बीते सालों की बात की जाए तो 2020, 2016, 2012, 2008 ये सभी साल लीप ईयर रहे हैं। ये सभी साल भी 4 से विभाज्य हैं। दूसरी शर्त ये है कि किसी साल को 100 से भाग दिया जा सकता हो तो वह लीप ईयर नहीं है लेकिन 400 से विभाज्य किया जा सकता हो तो वह लीप ईयर होगा।
फरवरी में ही क्यों जोड़ा गया लीप डे
आखिर लीप डे जोड़ने के लिए फरवरी के महीने को ही क्यों चुना गया? इसका कारण प्राचीन रोम में जूलियस सीज़र के कैलेंडर में लाया गया सुधार है। दरअसल सीज़र ने रोमन कैलेंडर की शुरुआत की थी जिसमें साल में 355 दिन होते थे। लेकिन इस वजह से समय और ऋतुओं में तालमेल बैठाना मुश्किल हो गया। इसके बाद जूलियस ने मिस्र के कैलेंडर से प्रेरित होकर नया कैलेंडर बनाया। इसमें उन्होंने लीप ईयर को जोड़ने की शुरूआत की। इसके बाद साल 1582 में जूलियन कैलेंडर के ग्रेगोरियन कैलेंडर में विकसित होने के बाद भी फरवरी में लीप डे जोड़ने की परंपरा आज तक जारी है। वहीं, माना जाता है कि फरवरी में लीप डे जोड़ने की एक अहम वजह ये भी है कि वर्षों पहले नया साल मार्च में शुरू होता था। तब फरवरी साल का आखिरी महीना होता था। इसलिए साल के आखिरी महीने यानी फरवरी को बाकी महीने की बजाय 28 या 29 दिनों का रखा गया।
पहली बार कब आया लीप ईयर?
45 ईपू (BC) में 29 फरवरी का इतिहास मिलता है। जब जूलियस सीजर द्वारा Leap Year Concept लाया गया। इसके बाद पोप ग्रेगरी XIII द्वारा 1582 में ग्रेगोरियन कैलेंडर पेश किया गया।
क्या है इतिहास
बताया जाता है कि मिस्र साम्राज्य में सबसे पहले लीप ईयर के कैलेंडर बनाया गया था। मिस्रवासियों का उस समय लक्ष्य सौर कैलेंडर की नकल करता हुआ कैलेंडर बनाना था, जिससे समय और मौसम को एक ट्रैक पर रखा जा सके। उस समय सोमवार-मंगलवार और महीने के 30-31 दिन नहीं होते थे। उस समय दिन मौसम के हिसाब से आगे बढ़ते थे।
जूलियस सीजर
रोमन साम्राज्य 3000.45 ईसा पूर्व में आया। यहां के शासक जूलियस सीजर को लगा महीने सर्दी, गर्मी और बारिश तीन अलग तरह के मौसम के हिसाब से होने चाहिए। तब उन्होंने 12 महीने 365 दिन का कैलेंडर तैयार किया। कुछ दिन सब ठीक चला, लेकिन बाद में इनको पता चला कि पृथ्वी में वास्तव में प्रति वर्ष 365 के बजाय 365.24 दिन हैं।
पृथ्वी को सूर्य के चारों ओर परिक्रमा में लगभग 365.25 दिन लगते हैं। फिर एक बार और कैलेंडर में उलट-पलट की गई। अब सीजर ने एक ऐसा कैलेंडर बनाया, जो मानव निर्मित और सौर कैलेंडर को फॉलो करता हो। इसी के चलते हर 4 साल में एक वर्ष लीप ईयर आता था। तभी से जूलियस सीजर आधुनिक लीप वर्ष के जनक कहे जाते हैं।
ग्रेगोरियन कैलेंडर
वक्त के साथ, कैलेंडर में एक एक्स्ट्रा दिन की गणना की वजह से अशुद्धियां होने लगीं। इसके बाद, 1582 में पोप ग्रेगरी XIII ने ग्रेगोरियन कैलेंडर की शुरुआत की। लीप वर्ष के लिए इस कैलेंडर ने एक नया रूल पेश किया, जिसमें 100 से विभाजित सालों को शामिल नहीं किया गया, जब तक कि वो 400 से भी विभाज्य न हों। इस प्रकार हर 4 सालों में लीप ईयर तय हुआ।