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COP29 Summit 2024: आखिर क्या है कार्बन बॉर्डर टैक्स? जिसके खिलाफ भारत और चीन दुश्मनी भुलाकर एकसाथ खड़े हुए

by Pooja Attri
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COP29 Summit 2024: आखिर क्या है कार्बन बॉर्डर टैक्स? जिसके खिलाफ भारत और चीन दुश्मनी भुलाकर एकसाथ खड़े हुए

COP29 Summit 2024: बाकू में चल रहे COP29 शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ के प्रस्तावित कार्बन बॉर्डर टैक्स का विरोध करने के लिए भारत और चीन साथ-साथ खड़े हैं.

17 November, 2024

COP29 Summit 2024: भारत और चीन में लंबे समय से भू-राजनीतिक मतभेद चले आ रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद बाकू में चल रहे COP29 शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ के प्रस्तावित कार्बन बॉर्डर टैक्स का विरोध करने के लिए दोनों देश साथ-साथ खड़े हैं. यूरोपीय संघ में बने सामानों के उत्सर्जन में कटौती करते हुए उचित प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लक्ष्य के साथ सीमेंट, एल्यूमीनियम और स्टील जैसे आयातित सामानों पर शुल्क लगाना टैक्स का मकसद है. हालांकि, चीन और भारत से विकासशील देशों ने इस बात को लेकर तर्क दिया है कि टैक्स उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर उल्टा असर और संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.

क्या है कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मेकेनिज्म ?

CEEW के फेलो वैभव चतुर्वेदी का कहना है कि स्टील, सीमेंट, उर्वरक और एल्यूमीनियम के जो भी बड़े निर्यातक हैं, जो यूरोपीय संघ को निर्यात करने वाले क्षेत्र हैं. उन्हें यूरोपीय संघ के समान कार्बन शुल्क का सामना करना पड़ेगा. यूरोपीय संघ के अंदर निर्माता को घरेलू स्तर पर सामना करना ही पड़ता है. इस पूरी प्रक्रिया को कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मेकेनिज्म कहा जाता है.

बता दें कि COP29 शिखर सम्मेलन विकासशील देशों के लिए वित्तीय मदद समेत जलवायु से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने का एक महत्वपूर्ण मंच है. चीनी और भारत ने CBDR के सिद्धांतों की फिर से याद दिलाते हुए तर्क दिया कि कार्बन बॉर्डर टैक्स जैसी एकतरफा कार्रवाई जलवायु लक्ष्यों पर वैश्विक सहयोग में बाधा डालती हैं,

क्या है विभेदक जिम्मेदारी ?

वैभव चतुर्वेदी ने आगे बताया कि सामान्य मगर विभेदक जिम्मेदारी के दो हिस्से हैं. पहला सामान्य है जिसका मतलब वैश्विक समस्या है. पूरी दुनिया इससे प्रभावित है. सभी को सहयोगात्मक तरीके से इस समस्या का समाधान ढूंढने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है. दूसरा हिस्सा विभेदित है क्योंकि हर किसी की क्षमताएं अलग-अलग हैं. यहां क्षमताओं से तात्पर्य यह है कि जैसे यूरोप और अमेरिका विकसित देश हैं. यहां की प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक है. इस देशों ने इनोवेशन और प्रौद्योगिकी विकास जैसी चीजों में बेहद निवेश किया है. वहीं, विकासशील देश इन चीजों में इतना निवेश करने की क्षमता नहीं रखते हैं.

क्यों है विश्व का विकास खतरे में ?

COP29 सम्मेलन में एक प्रमुख मुद्दा जलवायु वित्त की कमी उभरकर आई है. जलवायु परिवर्तन के गंभीर आर्थिक और सामाजिक प्रभावों का सामना विकासशील देशों को सबसे ज्यादा करना पड़ रहा है. वहीं, उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए यूरोपीय संघ एक आवश्यक कदम के तौर पर कार्बन बॉर्डर टैक्स को बचा रहा है. इस पर आलोचकों ने तर्क दिया कि ऐसे उपाय अंतरराष्ट्रीय विश्वास को नुकसान पहुंचाते हैं और दुनिया के विकास को खतरे में डालते हैं.

यह भी पढ़ें: पाकिस्तान के इन शहरों लगा लॉकडाउन, 2 करोड़ से ज्यादा लोगों की बिगड़ी हालात, जानें क्या है पूरा मामला

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