Syria War: सीरिया में HTS का नेतृत्व कर रहे मोहम्मद अल-जोलानी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. इसमें सबसे पहला है सत्ता को मजबूत करना.
Syria War: सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद की सरकार गिरने के साथ ही अल-असद परिवार के 50 साल का शासन खत्म हो गया. हालांकि, इस युद्ध के खत्म होने के बाद भी सीरिया अब एक चौराहे पर खड़ा है.
विद्रोहियों के तेज होते हमले के बीच बशर अल-असद रूस भाग गए हैं. ऐसे में सीरिया में एक नए युग की शुरुआत हो गई है, जिस पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हैं. बता दें कि सीरिया में कई अभी भी कई चुनौतियां हैं.
सीरिया में अभी भी कई विद्रोही गुट एक्टिव
सीरिया में साल 2011 में गृह युद्ध की शुरुआत हुई. 13 सालों के गृहयुद्ध और पांच साल के गतिरोध के बाद यह कोई नहीं जानता था कि सीरिया में बशर अल-असद का शासन सिर्फ एक सप्ताह में ढह जाएगा. कमांडर मोहम्मद अल-जोलानी के नेतृत्व में HTS यानी हयात तहरीर अल-शाम ने रविवार की सुबह सीरिया में कब्जा कर लिया. अब सीरिया में HTS का नेतृत्व कर रहे कमांडर मोहम्मद अल-जोलानी को कई प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
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इसमें सबसे पहला है सत्ता को मजबूत करना. सत्ता को मजबूत करने से मतलब है कि सीरिया में अभी कई विद्रोही गुट अभी भी लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे में HTS को यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि बशर अल-असद शासन के दौरान बचे हुए विद्रोही गुट या सशस्त्र समूह चुनाव लड़ने में सक्षम न हो. मोहम्मद अल-जोलानी को विद्रोही गुटों से बात कर उन्हें रोकना होगा. बता दें कि मोहम्मद अल-जोलानी सीरिया के राष्ट्रपति बन सकते हैं. ऐसे में HTS की ओर से YPG यानी सीरियाई कुर्द पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स के नियंत्रण वाले इलाकों को सीरिया के भीतर एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में मान्यता मिल सकता है.
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नए गृहयुद्ध को रोकने की होगी बड़ी चुनौती
नए राज्यों का तुर्की समर्थित विद्रोही गुट विरोध कर सकते हैं. उत्तरी इराक और उत्तरपूर्वी सीरिया के बीच स्वतंत्र कुर्द राज्य भी बन सकता है, जिसके लिए कुर्द लड़ाके लंबे समय से लड़ रहे थे. इन सभी के अलावा सीरिया के लिए सबसे महत्वपूर्ण होगा अंतरराष्ट्रीय मान्यता फिर से प्राप्त करना. अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए मुख्य खिलाड़ी तुर्की, यूरोपीय संघ, अमेरिका और इजराइल हैं. अंतरराष्ट्रीय मान्यता देने के लिए यह देश HTS और मोहम्मद अल-जोलानी पर कई तरह के दबाव बना सकते हैं.
इसमें बड़ी शर्त हो सकती है हिज्बुल्लाह को समर्थन न देना. साथ ही नई सरकार का गठन में भी HTS को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. गौरतलब है कि HTS की उत्पत्ति अलकायदा से जुड़ी हुई है और इसमें सुन्नी मुसलमान की संख्या अधिक है. बाद में HTS ने अलकायदा से नाता तोड़ लिया. ऐसे में नई सरकार से लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष शासन की उम्मीद नहीं की जा सकती है. हालांकि, मोहम्मद अल-जोलानी ने कहा है कि उनकी सरकार में चरमपंथ की जगह नहीं होगी. इसके साथ ही HTS को एक और गृहयुद्ध को रोकने के लिए एकता बनाए रखना होगा.
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