दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि नगर निगम अधिकारियों से दिल्ली की सड़कों से बंदरों और कुत्तों के साथ आवारा जानवरों को हटाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। अदालत ने कहा है कि नगर निगम अधिकारियों का कर्तव्य है कि वो ठोस और ईमानदार कदम उठाएं। जिससे की जानवरों को सड़कों से हटाया जा सकें। वो निवासियों, राहगीरों या सड़क पर चलने वाले वाहनों के लिए खतरा न बनें, आवारा जानवरों का पुनर्वास किया जाए ।
याचिका का निपटारा करते हुए की टिप्पणी
आपको बता दें कि न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने इस समस्या से उचित तरीके से निपटने के लिए 2019 में अदालत द्वारा पारित निर्देशों का पालन करने में विफल रहने के लिए अधिकारियों के खिलाफ एक अवमानना याचिका का निपटारा करते हुए ये टिप्पणियां की है।
2019 में दिया गया था आदेश
हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने सितंबर 2019 के आदेश में कहा था कि हम उम्मीद करते हैं कि आवारा मवेशियों, आवारा कुत्तों, बंदरों के संबंध में जल्द एक समिति या अलग तरह की संस्था का गठन किया जाएगा। ताकि वो इन आवारा मवेशियों, कुत्तों और बंदरों को कंट्रोल करने के लिए कोई योजना या नीति विकसित कर सकें। जिसके बाद कार्रवाई तुरंत शुरू की जाएगी।” आदेश में कहा गया था कि प्रतिवादियों का कर्तव्य है कि वे सरकारी अस्पतालों या औषधालयों में एंटी-रेबीज टीकाकरण की व्यवस्था करें। याचिकाकर्ता एस. सी. जैन ने आरोप लगाया कि 2019 के निर्देशों का पर्याप्त अनुपालन नहीं हुआ है।
जाने अदालत ने क्या कहा
अदालत ने कहा कि ‘किसी भी घटना में, प्रतिवादियों की ओर से दायर की गई स्थिति रिपोर्ट के मद्देनजर यह नहीं कहा जा सकता है कि 25 सितंबर, 2019 के आदेश में निहित निर्देशों के अनुपालन में उनकी ओर से अपमानजनक या जानबूझकर अवज्ञा की गई है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता अगर अभी भी उठाए गए कदमों से नाखुश है, तो वह उचित कार्यवाही के जरिये शिकायत दर्ज कराने के लिए स्वतंत्र होगा।’’