इलाहाबाद हाई कोर्ट से ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के स्वामित्व को लेकर वाराणसी की एक अदालत में टाइटल सूट की सुनवाई और ज्ञानवापी परिसर का समग्र सर्वे कराने के निर्देश को चुनौती देने वाली सभी पांच याचिकाएं मंगलवार को खारिज कर दी। इससे पहले 8 दिसंबर 2023 को जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने याचिकाकर्ता अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और प्रतिवादी मंदिर पक्ष की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की बड़ी बातें
– जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने सुनवाई के दौरान कहा कि साल 1991 में वाराणसी की अदालत में दायर टाइटल सूट सुनवाई योग्य है और यह पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से निषिद्ध नहीं है।
– हाई कोर्ट ने निचली अदालत को अपने समक्ष लंबित इस वाद पर तेजी से सुनवाई कर छह महीने के भीतर फैसला करने का निर्देश दिया है।
– हाई कोर्ट ने कहा कि किसी भी पक्ष के अनुरोध पर सुनवाई को अनावश्यक टाला नहीं जाना चाहिए। अगर कोई अंतरिम आदेश है, तो उसे हटाया जाता है। जरूरत पड़ने पर निचली अदालत ASI को आगे सर्वेक्षण का निर्देश दे सकती है।
– हाई कोर्ट ने कहा कि यह वाद दो पक्षों के बीच नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय महत्व का है।
हिंदू पक्ष की मांग
आपको बता दें कि वाराणसी की अदालत में 1991 में हिंदू श्रद्धालुओं ने वाद दायर कर काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने का अधिकार मांगा है। वाराणसी की अदालत में लंबित इस वाद में उस स्थान पर मंदिर बहाल करने की मांग की गई है जहां वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि वह मस्जिद उस मंदिर का हिस्सा है।
ये याचिकाएं किसकी ओर से दी गई थी ?
ये याचिकाएं ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दायर की गई थीं। इन याचिकाओं में वाराणसी की अदालत की ओर से आठ अप्रैल 2021 को दी गई उस व्यवस्था को भी चुनौती दी गई थी, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया गया था। वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने वाराणसी की अदालत में लंबित वाद की पोषणीयता को चुनौती दी थी।
दरअसल पहले इलाहाबाद के तत्कालीन चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर ने 28 अगस्त 2023 के एक आदेश के तहत इन पांचों मामलों की सुनवाई एकल न्यायाधीश से अपने पास ले ली थी। 21 नवंबर 2023 को चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर के रिटायर होने के बाद जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर आठ दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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