Introduction
Mahakumbh 2025 : अघोर का अर्थ है जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल-सहज हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो. अघोर बनने की पहली शर्त में अपने मन से घृणा को निकाल फेकना है. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ में जुटे संतों की मानें तो देश में अधिक से अधिक नागा सन्यासी की संख्या होनी चाहिए. नागा साधु हिंदू संस्कृति के तपस्वी योद्धा माने जाते हैं, जो महाकुंभ मेले में विशेष आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. ऐसा माना जाता है कि शाही स्नान की शुरुआत नागा साधुओं के स्नान करने से होती है. उनके अनुष्ठान, विशेष रूप से औपचारिक शाही स्नान आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व रखते हैं. महाकुंभ के इस पवित्र शाही स्नान से पहले, नागा साधु एक अनुष्ठानिक श्रृंगार करते हैं जिसे 17 श्रृंगार के रूप में जाना जाता है. यह प्रथा केवल एक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि प्राचीन परंपराओं और मान्यताओं का एक आध्यात्मिक कार्य भी है. उनका शाही स्नान से पहले 17 श्रृंगार करना बेहद जरूरी माना जाता है. इसके बिना स्नान का फल नहीं मिलता है और शाही स्नान भी अधूरा माना जाता है.
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Table Of Content
- अखाड़े का हिस्सा होते हैं नागा साधु
- क्यों करते हैं महाकुंभ में शाही स्नान से पहले 17 श्रृंगार ?
- क्या है श्रृंगार का महत्व ?
- क्या हैं नागा साधु के 17 श्रृंगार ?
- कितनी है इनकी संख्या?
- कुंभ के बाद कहां गायब हो जाते हैं नागा साधु?
- महाकुंभ में शाही स्नान क्या है?
- नागा साधु की कैसे होती है ट्रेनिंग?
- कैसे होता है अघोरी का अंतिम संस्कार
- खास है 2025 का महाकुंभ
- 7 साल की उम्र में ली दीक्षा
अखाड़े का हिस्सा होते हैं नागा साधु
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यहां बता दें कि नागा साधु किसी न किसी अखाड़े का हिस्सा होते हैं. वह अपने सांसारिक जीवन को त्यागकर, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करते हैं. वो भगवान शिव या विष्णु की पूजा में पूरी तरह से समर्पित रहते हैं. नागा साधुओं से जुड़े ऐसे कई रहस्य है जिनके बारे में लोग नहीं जानते हैं. यहीं रहस्य उन्हें आम लोगों से अलग बनाते हैं. सबसे बड़ा रहस्य है शाही स्नान के पहले किया जाने वाला 17 श्रृंगार.
क्यों करते हैं महाकुंभ में शाही स्नान से पहले 17 श्रृंगार ?
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महाकुंभ में नागा साधुओं से जुड़ी कई बातें लोगों को लुभाती हैं. नागा साधु भगवान शिव को अपना आराध्य मानते हैं और उनकी आराधना में ही लीन रहते हैं. वह अपना पूरा जीवन एक गज कपड़े और एक मुट्ठी भभूत के सहारे निकालते हैं. भभूत उनके लिए किसी श्रृंगार से कम नहीं है. नागा साधु अपने आपको भगवान शिव का अंश मानते हैं. इसी वजह से नागा साधु श्रृंगार के रूप में भगवान शिव की प्रिय चीजों को शरीर पर धारण करते हैं. जिस प्रकार हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं का सोलह श्रृंगार करना जरूरी माना जाता है, वैसे ही नागा साधुओं के लिए शिव जी से जुड़े श्रृंगार को धारण करना जरूरी माना जाता है.
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क्या है श्रृंगार का महत्व ?
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महाकुंभ में शाही स्नान से पहले श्रृंगार का एक अनुष्ठान होता है. इसे शाही स्नान से पहले करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि 17 श्रृंगार प्राचीन वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करने की एक प्रक्रिया मानी जाती हैं, जहां किसी भी बड़े अनुष्ठान से पहले देवताओं को विशिष्ट आभूषणों और पदार्थों से सजाया जाता था. ये प्रक्रिया शाही स्नान के दौरान शरीर और मन को दिव्य ऊर्जा प्राप्त करने के लिए तैयार करती है. ऐसा माना जाता है कि यह श्रृंगार नकारात्मक ऊर्जाओं के खिलाफ एक ढाल का काम करता है. इसके साथ ही, नागा साधु त्याग का जीवन जीते हैं और 17 श्रृंगार परमात्मा के प्रति उनकी भक्ति का प्रतीक माने जाते हैं.
क्या हैं नागा साधु के 17 श्रृंगार ?
भस्म का श्रृंगार
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महाकुंभ में शाही स्नान से पहले नागा साधू अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं. जिस तरह भगवान शिव शमशान की भस्म को शरीर पर लगाते हैं, ठीक उसी तरह नागा साधु भी शरीर पर शमशान की राख लगाते हैं. नागा साधु भस्म से श्रृंगार करके ये संकेत देते हैं कि जीवन बहुत क्षणिक है, ये कुछ ही समय के लिए होता है.
लंगोट का श्रृंगार
नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं. लेकिन नागा साधुओं के श्रृंगार में लंगोट शामिल होता है.
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चंदन का श्रृंगार
भगवान शिव को चंदन का तिलक बहुत पसंद है. चंदन शीतलता और शांति का प्रतीक होता है. यहीं वजह है कि नागा साधु अपने शरीर पर भस्म लगाने के बाद हाथ, गले और माथे पर चंदन का लेप लगाते हैं.
रुद्राक्ष की माला का श्रृंगार
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रुद्राक्ष को साक्षात भगवान शिव माना जाता है. इसलिए नागा साधु कई रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं. वे गले के अलावा बाहों पर भी रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं. जैसे भगवान शंकर पहनते हैं. इसके अलावा नागा साधु अपने सिर पर जटाओं में भी रुद्राक्ष की मालाएं लपटते हैं.
तिलक का श्रृंगार
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नागा साधु तिलक का भी श्रृंगार करते हैं. वह हमेशा माथे पर तिलक धारण करते हैं, जो कि शिव की भक्ति का प्रतीक माना जाता है.
काजल का श्रृंगार
नागा साधु के श्रृंगार में आंखों में काजल लगाने का भी बहुत महत्व है.
फूलों की माला का श्रृंगार
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श्रृंगार में नागा साधु गले, सिर की जटाओं और कमर में फूलों की माला पहनते हैं. ये उनके श्रृंगार का एक हिस्सा होता है. फूलों के अलावा वह कई बार मुंडों की माला भी पहनते हैं.
हाथों में कड़े
नागा साधु हाथों में पीतल, तांबें, चांदी के अलावा लोहे का कड़ा पहनते हैं. ये कड़े उनके हाथों का श्रृंगार होते हैं.
पैरों में कड़े का श्रृंगार
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नागा साधुओं के जीवन के 17 श्रृंगारों में पैरों में कड़े पहनने का भी महत्व है. वह पांव में पीतल, चांदी या लोहे के कड़े पहनते हैं. कई बार इसे आकर्षक बनाने के लिए इनमें घुघरूं भी लगे होते हैं.
शस्त्र का श्रृंगार
नागा साधुओं के लिए शस्त्र का श्रृंगार बहुत महत्व रखता है. नागा साधु हमेशा अपने हाथ में त्रिशूल और चिमटा रखते हैं. चिमटे का प्रयोग वे कई कार्यों के लिए करते हैं. जरूरत पड़ने पर चिमटे का अस्त्र के रूप में प्रयोग भी करते हैं. इसके अलावा तलवार, गदा, फरसा भी उनका श्रृंगार होते हैं.
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डमरू का श्रृंगार
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भगवान शिव को डमरू बेहद प्रिय होता है. इसलिए, जिस तरह भगवान शिव हमेशा डमरू पास रखते हैं. उसी तरह नागा साधु भी डमरू को हमेशा अपने साथ रखते हैं. श्रृंगार में भगवान शिव की स्तुति करते समय नागा साधु डमरू बजाते हैं.
कमंडल का श्रृंगार
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नागा साधु अपने हाथों में हमेशा कमंडल रखते हैं. इस कमंडल में गंगाजल और पानी होता है. यात्रा के दौरान इसी कमंडल से जल भी ग्रहण करते हैं. वह इस कमंडल का उपयोग भगवान शिव की पूजा में करते हैं.
जटाओं का श्रृंगार
नागा साधु गुथी हुई जटाओं को विशेष प्रकार से संवारते हैं. नागा साधु इन जटाओं को पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से रखते हैं.
पंचकेश का श्रृंगार
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पंचकेश यानि 5 बार घुमाकर जटाओं को सिर पर लपेटा जाता है. नागा साधु अपने बालों को सामान्य तरीके से नहीं बांधते बल्कि बालों की लटों को 5 बार घुमा कर लपेटते हैं, इसे पंचतत्व की निशानी माना जाता है.
अंगूठियों का श्रृंगार
नागा साधु अपनी उंगलियों में अलग-अलग तरह की अंगूठियां पहनते हैं. हर एक अंगूठी किसी न किसी बात का प्रतीक होती है.
रोली लेप का श्रृंगार
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नागा साधुओं में रोली का लेप भी लगाया जाता है. नागा साधु अपने माथे को खाली नहीं रखते हैं. वह माथे पर भभूत और चन्दन के अलावा रोली का लेप भी लगाते हैं.
कुंडल का श्रृंगार
नागा साधु कानों में चांदी या सोने के कुंडल धारण करते हैं. इन कुंडलों को सूर्य और चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है. नागा साधुओं का यह पूरा श्रृंगार भगवान शिव को समर्पित होता है. ऐसा भी माना जाता है की नागा साधुओं का यह श्रृंगार नकारात्मक ऊर्जाओं के खिलाफ एक ढाल के रूप में काम करता है.
कितनी है इनकी संख्या?
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भारत में नागा साधुओं की संख्या लगभग 5 लाख के आसपास है. वैसे तो इसे लेकर कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है. नागा साधु मुख्य रूप से अखाड़ों के सदस्य होते हैं. आपको बता दें कि महिलाएं भी जब संन्यास लेती हैं, तो उन्हें भी नागा बनाया जाता है. कुछ नागा साधु मांसाहारी होते हैं, लेकिन कई शाकाहारी भी होते हैं. नागा साधु बनने के लिए अखाड़ों के पास आवेदन आते हैं, लेकिन सभी को अनुमति नहीं मिलती.
कुंभ के बाद कहां गायब हो जाते हैं नागा साधु?
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एक सवाल अक्सर उठता है कि, कुंभ के बाद नागा साधु कहां गायब हो जाते हैं या क्यों नहीं दिखाई देते हैं? आखिरकार कुंभ के बाद वह कहां चले जाते हैं? ऐसा माना जाता है कि नागा साधु कुंभ के बाद समाज से बहुत दूर पहाड़ों की कन्दराओं पर जाकर वास करते हैं. वहीं रहते हैं और तप करते हैं.
महाकुंभ में शाही स्नान क्या है?
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महाकुंभ में शाही स्नान एक पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो कुंभ मेले के दौरान पवित्र नदियों में किया जाता है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, इस अवसर पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम में डुबकी लगाने को बहुत शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इन नदियों में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. शाही स्नान केवल एक धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और आध्यात्म के प्रति आस्था का प्रतीक है. नागा साधुओं के शाही स्नान करने से ही स्नान की शुरुआत होती है. शाही स्नान के पहले साधु-संत भव्य शोभायात्रा के साथ पवित्र नदियों की ओर बढ़ते हैं. इस अनुष्ठान में वे भगवान शिव की उपासना और वैदिक परंपराओं का पालन करते हुए स्नान करते हैं.
नागा साधु की कैसे होती है ट्रेनिंग?
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ऐसा माना जाता है कि नागा साधुओं की ट्रेनिंग किसी कमांडो की ट्रेनिंग से ज्यादा खतरनाक और कठिन होती है. आपको बता दें कि जो व्यक्ति नागा साधु बनना चाहता है उसकी महाकुंभ, अर्द्धकुंभ और सिहंस्थ कुंभ के दौरान साधु बनने की प्रक्रिया शुरू की जाती है. नागा साधुओं के कुल 13 अखाड़े हैं, जिनमें से 7 अखाड़े नागा संन्यासी को ट्रेनिंग देते हैं, जिनमें, जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आह्वान अखाड़ा शामिल है.
कैसे होता है अघोरी का अंतिम संस्कार
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अघोर परंपरा में ऐसी मान्यता है कि अघोरी साधु की मृत्यु होती है तो उनके शव को जलाया नहीं जाता है. अघोरी साधु की मौत होने पर चौकड़ी लगाकर शव को उलटा रखा जाता है. यानी सिर नीचे और पैर ऊपर. इसके बाद करीब सवा माह यानी 40 दिन तक शव में कीड़े पड़ने का इंतजार किया जाता है. इसके बाद मृत शरीर को निकालकर आधे शरीर को गंगा में बहा देते हैं. जबकि, सिर को साधना के लिए इस्तेमाल करते हैं. नागा साधु का जीते जी पिंडदान कर दिया जाता है. ऐसे में इनकी मृत्यु के बाद इनका दाह-संस्कार नहीं किया जाता. इनके शव को या तो गंगा में सीधे प्रवाहित कर दिया जाता है या फिर इनकी समाधि बना दी जाती है.
खास है 2025 का महाकुंभ
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महाकुंभ, आस्था और आध्यात्म का एक ऐसा समागम है, जहां हर रंग और रूप में भक्ति का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. इस बार महाकुंभ में एक विशेष आकर्षण रहा छोटे नागा बाबाओं का. इन बाल वैरागियों ने कम उम्र में ही सांसारिक मोह-माया को छोड़कर शिव भक्ति का मार्ग अपनाया है. इनमें से एक हैं शिवानंद गिरी महाराज जो महज 10 साल के हैं, लेकिन उनका ये तप देखकर हर कोई हैरान है.
7 साल की उम्र में ली दीक्षा
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महज 7 साल की उम्र में शिवानंद गिरी महाराज ने नागा साधु अखाड़ा में दीक्षा ली थी. महाकुंभ 2025 में वे भी अन्य नागा साधुओं के साथ कुंभ में स्नान के लिए आए हैं. उनके इस तप को देखकर हर तरफ उनकी चर्चा हो रही है. सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें और वीडियो बड़ी तेजी से वायरल हो रही है. इन तस्वीरों और वीडियो को देखकर हर कोई दंग है.
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