Introduction
History of Chief Ministers of Delhi : दिल्ली में चुनावी माहौल चरम पर पहुंच रहा है और राजनीतिक दलों के बीच में आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है. विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस के बीच में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. वर्तमान में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आतिशी काबिज हैं. वहीं, 26 साल बाद BJP की पूरी कोशिश है कि वह दिल्ली में सत्ता में वापसी कर सके. साथ ही कांग्रेस बीते दो चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाई है ऐसे में उसकी पूरी कोशिश होगी वह इस बार अपना खाता जरूर खोले. इसी बीच चुनावी माहौल में हम उन मुख्यमंत्रियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने दिल्ली में शासन किया. दिल्ली में दो मुख्यमंत्री ऐसे रहे हैं जिन्होंने 15 और 10 साल के करीब शासन किया और बाकी अन्य मुख्यमंत्री 1 से 3 साल के बीच ही शासन किया. इसी कड़ी में जब दिल्ली के मुख्यमंत्रियों की बात आती है तो लोगों के मन में मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल का नाम सामने आता है, लेकिन शेर-ए-दिल्ली’ और ‘मुगले आजम’ के नाम से पहचान बनाने वाले चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव का नाम कम ही लोग जानते हैं.
Table Of Content
- चौधरी ब्रह्म प्रकाश
- गुरुमुख निहाल सिंह
- मदनलाल खुराना की कहानी
- दिल्ली के चौथे मुख्यमंत्री साहिब सिंह
- पहली महिला मुख्यमंत्री बनी सुषमा स्वराज
- दिल्ली में सबसे लंबा रहा कार्यकाल
- AAP ने तोड़ा BJP और कांग्रेस का किला
- अरविंद केजरीवाल के बाद आतिशी
चौधरी ब्रह्म प्रकाश
भारत के स्वतंत्रता सेनानी और लोकसभा के सांसद चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव को कम लोग जानते हैं कि उन्हें दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी इत्तेफाक से मिली थी. लेकिन इसके बाद भी उन्होंने एक मजबूत राजनेता के रूप में अपनी एक पहचान बनाई. देश की आजादी में महात्मा गांधी के साथ चलने वाले चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव को पंडित जवाहरलाल नेहरू और सीके नायर ने आगे बढ़ाने का काम किया था. यही कारण था कि ब्रह्म प्रकाश पंडित नेहरू को अपना गुरु मानते थे. चौधरी ब्रह्म प्रकाश का कार्यकाल 1952 से 1955 के बीच रहा और वह 33 साल की सबसे कम उम्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे. इसके बाद वह चार बार लोकसभा सांसद चुने गए और केन्द्रीय खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्री के रूप में कई उल्लेखनीय कार्य किया. हैरत की बात है कि उन्हें कांग्रेस के दिग्गज नेता सज्जन सिंह ने भारी मतों से हराकर चौधरी ब्रह्म प्रकाश लोकसभा चुनाव में भ्रम तोड़ दिया.
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गुरुमुख निहाल सिंह
दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री गुरुमुख निहाल सिंह साल 1952 में राजधानी की दरियागंज से विधायक चुने गए थे. यह चुनाव उन्होंने तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत कहने पर लड़ा था. सियासत ने नया मोड़ लिया जिसके बाद चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव को कुर्सी छोड़नी पड़ी और उनकी जगह गुरुमुख निहाल सिंह (कार्यकाल 12 फरवरी 1955–1 नवम्बर 1956) दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान हुए और वह सिख समुदाय से दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने वाले पहले व्यक्ति थे. उनको दिल्ली में शराबबंदी करने के लिए भी जाना जाता है और उस वक्त पंडित नेहरू ने उनको चिट्ठी लिखकर इसे हटाने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने प्रतिबंध हटाने से साफ मना कर दिया था. पंडित नेहरू ने 26 जुलाई, 1956 को अपने पत्र में लिखा कि हमारी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने बताया कि दिल्ली में शराबबंदी कर दी गई. मैं इस मुद्दे के बारे में ज्यादा तो नहीं जानता हूं, लेकिन हम शराबबंदी के पक्ष में है लेकिन निषेध के साथ एक खतरा बढ़ जाता है जिसमें मुख्य रूप से अवैध शराब निर्माण और तस्करी शामिल है. इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि कहीं-कहीं अवैध धंधा शुरू भी हो गया है. मुझे आपकी सरकार से उम्मीद है कि इन मुद्दों को ध्यान में रखकर आप फैसले लेंगे.
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मदनलाल खुराना की कहानी
37 सालों तक राष्ट्रीय राजधानी में कभी चुनाव नहीं हुआ और साल 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश में बदलकर विधानसभा को खत्म कर दिया गया. शहर में जनप्रतिनिध नहीं होने की वजह से असेंबली की तेजी से मांग उठने लगी. इसके बाद केंद्र सरकार ने दिसंबर 1987 में सरकारिया कमेटी का गठन किया और उसने दो साल बाद अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंपी जहां पर दावा किया गया कि दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में बना रहना चाहिए. फिर भी जनता को उनकी सरकार चुनने के लिए विधानसभा का गठन किया जाना चाहिए. इसके बाद संविधान अधिनियम में 69वें संशोधन के तहत मंजूरी दी गई और दिल्ली विधानसभा का गठन 1993 में कर दिया गया. इसी वर्ष पहली बार दिल्ली में चुनाव हुआ और भारतीय जनता पार्टी ने 70 सदस्यीय वाली विधानसभा में 49 पर जीत हासिल की. वहीं, कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी. BJP की जीत के बाद मदन लाल खुराना को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया और उन्होंने दिल्ली के विकास के लिए कई कार्य किए. वह 1993 से लेकर 1996 तक सीएम इस पद पर बने रहे, एक समय ऐसा भी था जब दिल्ली में उनकी मर्जी के बिना BJP में पत्ता तक नहीं हिलता था. उनकी गिनती दिल्ली में BJP के कद्दावर नेताओं में होती थी. इसके अलावा उन्होंने अपने पहले बजट में दिल्ली मेट्रो की डिटेल्ड प्रॉजेक्ट रिपोर्ट (DPR) के लिए पैसा आवंटित किया. इसी कड़ी में दिल्ली में पानी के संकट को दूर करने के लिए उन्होंने पड़ोसी राज्य हरियाणा में कांग्रेसी मुख्यमंत्री भजनलाल के साथ बैठक करके यमुना विवाद को सुलझाने का काम किया.
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दिल्ली के चौथे मुख्यमंत्री साहिब सिंह
राष्ट्रीय राजधानी के चौथे मुख्यमंत्री भारतीय जनता पार्टी के नेता साहिब सिंह वर्मा (कार्यकाल 26 फरवरी 1996–12 अक्टूबर 1998) बनाए गए थे और मदनलाल खुराना के इस्तीफे के बाद उन्हें सीएम की कुर्सी मिली थी. साहिब सिंह वर्मा का कार्यकाल काफी विवादों से भरा रहा था और उनकी कुर्सी प्याज की महंगाई की वजह से छीन ली गई थी. आपको बताते चलें कि साहिब सिंह वर्मा का जन्म दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर बसे मुंडका गांव में एक जाट परिवार में हुआ था. उन्होंने लाइब्रेरी साइंस में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी. जाट परिवार में जन्मे साहिब सिंह शुरुआत से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे. आपातकाल के बाद 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार थी और उस दौरान दिल्ली में नगर निगम का चुनाव भी हुआ था. उस दौरान उन्होंने राजनीतिक पारी की शुरुआत की और केशवपुरम वॉर्ड से पार्षद का चुनाव जीता था. इसके बाद उन्होंने साल 1993 में शालीमार बाग सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस उम्मीदवार को 21 हजार वोटों के अंतर से हराकर कमाल कर दिया जहां उन्होंने दिल्ली की जनता के बीच में अपनी एक पहचान कायम कर दी.
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पहली महिला मुख्यमंत्री बनी सुषमा स्वराज
प्याज के दाम बढ़ने के बाद साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और BJP ने सुषमा स्वराज को दिल्ली की पांचवीं और पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित किया. सुषमा स्वराज को साल 1998 में दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया और वह इस पद पर 52 दिन तक ही बनी रही. इसके बाद 1998 में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए जहां कांग्रेस ने 52 सीटें जीतकर दिल्ली की सत्ता हासिल की. बता दें कि सुषमा स्वराज ने अपना राजनीतिक सफर हरियाणा के अंबाला से शुरू किया था वह लंबे समय तक हरियाणा में सक्रिय रहीं लेकिन साल 1996 में दिल्ली की ओर रुख कर लिया. जहां उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता और 13 दिनों की वाजपेयी सरकार में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री का कार्यभार संभाला. इसके बाद उन्होंने 1998 में साउथ दिल्ली की सीट से लोकसभा चुनाव जीत लिया, लेकिन एक उलटफेर के बाद उन्हें राष्ट्रीय राजधानी का मुख्यमंत्री बना दिया गया.
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दिल्ली में सबसे लंबा रहा कार्यकाल
दिल्ली में साल 1998 में विधानसभा चुनाव हुआ जहां BJP की तूती बोल रही थी वहां पर कांग्रेस सत्ता में हासिल के लिए तिलमिला रही थी. इस चुनाव में कांग्रेस ने जमकर प्रचार किया और 70 सीटों वाली विधानसभा में INC ने बड़ा उलटफेर करते हुए 52 पर जीत हासिल की. चुनाव से पहले ही कांग्रेस ने शीला दीक्षित को दिल्ली कांग्रेस प्रदेश कमेटी का अध्यक्ष बनाया था और चुनाव जीतने के बाद गांधी परिवार की करीबी होने की वजह से उन्हें दिल्ली का छठा मुख्यमंत्री बनाया गया. मुख्यमंत्री पद पर उनका काबिज होना लोगों के लिए काफी सप्राइज था क्योंकि इससे पहले वह उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी सक्रिय थीं. लेकिन अचानक उन्हें दिल्ली का अध्यक्ष बनाया गया और कांग्रेस की बंपर जीत के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी दे दी गई. इसके बाद शीला दीक्षित का दिल्ली की राजनीति में कद इतना बढ़ गया कि इसके बाद 2003 और 2008 में दो बार और मुख्यमंत्री बनीं. इसी बीच उनका मुख्यमंत्री पद रहते हुए अभी तक सबसे लंबा कार्यकाल रहा है. उन्होंने साल 1984 में उन्हें यूपी की कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर पहली बार में ही लोकसभा पहुंच गईं, जहां वह 1987-89 तक राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बनीं.
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AAP ने तोड़ा BJP और कांग्रेस का किला
अन्ना आंदोलन के बाद सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई और उसके बाद 2013 में पहली बार विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरी तो 28 सीट जीतकर दिल्ली में दूसरी सबसे बड़ी बड़ी पार्टी बनकर उभरी. BJP ने 32 सीट और कांग्रेस ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की. इसके अलावा एक-एक सीट JDU और निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थी. दिल्ली में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के बाद कांग्रेस और AAP ने गठबंधन बनाकर सरकार बना ली. लेकिन यह सरकार सिर्फ 49 दिनों तक ही चल सकी. लेकिन इन 49 दिनों की सरकार में AAP ने 200 यूनिट बिजली और 20 लीटर पानी मुफ्त देकर जनता के बीच में अपनी एक अमिट छाप छोड़ दी. इसके बाद साल 2015 में एक बार फिर दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए और AAP ने 70 में से 67 सीट जीतकर इतिहास रच दिया. अरविंद केजरीवाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और उन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. वहीं पानी, बिजली और शिक्षा के मुद्दे को जनता के बीच में एक बार फिर लेकर गए जहां उन्हें साल 2020 में जीत मिली. लेकिन इस बार बहुमत से सरकार बनाने के बाद भी 5 सीट घटकर AAP 62 पर पहुंच गई और केजरीवाल दिल्ली में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो हुए.
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अरविंद केजरीवाल के बाद आतिशी
कथित रूप से शराब बंदी मामले में जेल में जा चुके पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जमानत मिलने के बाद सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. उसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मैं अपने पद से इस्तीफे दे रहा हूं अब जनता की अदालत तय करेगी मुझे दिल्ली का मुख्यमंत्री दोबारा बनाना है या नहीं. साथ ही राजनीतिक गलियारों में उठा-पटक के बाद आम आदमी पार्टी के विधायक दल ने आतिशी अपना नेता चुन लिया जिसके बाद वह दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बन गईं. बता दें कि वह साल 2013 में आम आदमी पार्टी से जुड़ी उसके बाद साल 2015 से 2018 तक दिल्ली के तत्कालीन शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की सलाहकार रहीं. AAP का भरोसा बनने के बाद उन्हें 2019 में पार्टी ने लोकसभा का टिकट दिया लेकिन वह तीसरे स्थान पर रहीं. साल 2020 में उन्होंने कालकाजी से अपनी किस्मत आजमाई और वह आम आदमी पार्टी की टिकट से विधायक चुन ली गईं. इसी कड़ी में 2023 में AAP नेताओं पर लगातार ED और CBI की रेड पड़ने के बाद आतिशी को शिक्षा मंत्री बनाया गया.
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Conclusion
दिल्ली विधानसभा में अभी तक 8 मुख्यमंत्री शासन कर चुके हैं, जिसमें कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी शामिल हैं. जहां पर कांग्रेस को 4 सालों में दो मुख्यमंत्री बनाना पड़ा. इसके बाद दिल्ली को राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर दिया और विधानसभा को भंग कर दिया गया. विधानसभा भंग होने के बाद दिल्ली में सिर्फ नगर निगम चुनाव आयोजित कराए जाते रहे. राष्ट्रीय राजधानी के लोग लंबे समय से चुनी हुई सरकार की मांग करने लगे. यही कारण था कि साल 1987 में सरकारिया कमेटी का गठन किया गया, इस कमेटी ने माना कि दिल्ली को वापस राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है लेकिन यहां पर विधानसभा चुनाव कराए जाने चाहिए. इसके बाद दिल्ली में 37 साल बाद 1993 में एक बार फिर विधानसभा चुनाव कराए गए जहां पर BJP ने 70 सीटों वाली विधानसभा में 49 सीटों पर जीककर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बनाए गए. लेकिन वह ज्यादा समय तक टिक नहीं पाए और आपसी विवाद के चलते साहिब सिंह को BJP ने विधायक दल का नेता चुन लिया और वह चौथे मुख्यमंत्री चुने गए. वहीं, प्याज होने की वजह से जनता ने दिल्ली सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया और उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद सुषमा स्वराज के रूप में BJP को 5 सालों में तीसरा मुख्यमंत्री चुनना पड़ा. वहीं, 1998 में दिल्ली में इलेक्शन कराए गए जहां पर कांग्रेस ने 52 सीटें जीतकर सरकार में वापसी की और शीला दीक्षित को सीएम बनाया गया. जहां उन्होंने इसके बाद 2003 और 2008 में इलेक्शन जीता और लंबे समय तक मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड अपने नाम किया. वहीं, 2013 के चुनाव में एक नई पार्टी AAP का आगमन हुआ जिसने इस चुनाव में 28 सीटकर दिल्ली की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई और इसके बाद 2015 और 2020 का विधानसभा चुनाव भी जीता जिसके बाद अरविंद केजरीवाल शीला दीक्षित के कार्यकाल के करीब तेजी से पहुंचने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
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