Garud Commando Force : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का बदला लेने के लिए गरुड़ कमांडो फोर्स पूरी तरह से तैयार है और सर्च ऑपरेशन कर रहे हैं.
Garud Commando Force : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के आरोपियों से बदला लेने के लिए भारतीय सेनी का कई यूनिट के साथ पैरा मिलिट्री फोर्स, मार्कोस और गरुड़ कमांडो फोर्स पूरी तरह से तैयार है. इसके लिए वो सर्च ऑपरेशन कर रहे हैं. इनमें गरुड़ कमांडो फोर्स बेहद खास है. इनके पास आतंकियों को ढूंढकर मारने में महारत हासिल है. इसका गठन साल 2004 में हुआ था जो हर सिचुएशन के आराम से हैंडल कर सकता है.
क्या है इसका इतिहास?
यहां आपको बता दें कि गरुड़ कमांडो फोर्स भारतीय सेना का एक स्पेशल फोर्स है. इसका गठन साल 2004 में किया गया था. इसके नाम की बात करें तो हिंदू पुराणों में एक बड़े पक्षी गरुड़ के नाम पर रखा गया है. इस फोर्स को हर सिचुएशन को किस तरह से हैंडल करना है इसमें महारत हासिल है.
कैसे बनते हैं Garud Commando?
भारत में गरुड़ कमांडो फोर्स को बेहद अहम माना जाता है. ये सबसे नई फोर्स है जिसका गठन साल 2004 में किया गया था और एयरफोर्स ने इसको बनाने का फैसला साल 2003 में किया था. हालांकि, इसके पहले अपने स्पेशल अभियान के लिए भारतीय सेना की पैरा मिलिट्री फोर्स पर निर्भर रहती थी. इन कमांडो का चयन दो तरीकों से होता है, नॉन कमीशन और कमीशन पोस्टों के लिए चयन की अलग-अलग प्रक्रिया है. वहीं, नॉन कमीशन पोस्ट के लिए डायरेक्ट एयरमैन सिलेक्शन सेंटर के जरिए किया जाता है. हैरान करने वाली बात ये है कि इसमें सिलेक्शन के लिए दूसरा चांस नहीं दिया जाता है. सिलेक्शन के बाद उन्हें ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है और ड्रिल के समय भी ग्रेड को मेंटेन करना होता है. सर्विस ड्यूरेशन के दौरान यह जवान कमांडो फोर्स में ही रहते हैं. इसके अलावा कमीशन पोस्ट के लिए एयरफोर्स एकेडमी के ग्राउंड ड्यूटी कोर्स के कैडेट्स को रिक्रूट किया जाता है. इन्हें GODC परीक्षा क्लीयर करना होता है. इसे पास करने वाले जवानों को गरुड़ कमांडो फोर्स का हिस्सा बनाया जाता है.
ऐसे होती है ट्रेनिंग
जिन गरुड़ कमांडो फोर्स का सलेक्शन होता है उनकी ट्रेनिंग गरुड़ रेजीमेंट ट्रेनिंग सेंटर हिंडन में होती है. इसके बाद इन्हें स्पेशल ग्रुप की ओर से ट्रेनिंग दी जाती है. इसमें आर्मी के अलावा NSG कमांडो, पैरा मिलिट्री के जवान और स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के सदस्य होते हैं. वहीं, ट्रेनिंग के तीसरे चरण में पैराशूट ट्रेनिंग सेंटर होता है. इस दौरान इन्हें हवा से छलांग लगाने के बारे में सिखाया जाता है. इसके बाद से डाइविंग स्कूल ऑफ नेवी में ट्रेनिंग कराई जाती है. इसके बाद कुछ समय के लिए इन्हें जंगल वॉरफेयर स्कूल ऑफ आर्मी में भी भेजा जाता है. गरुड़ कमांडो हर तरह की समस्या को हैंडल करने में सक्षम होते हैं, फिर चाहे वो हवा, पानी हो या जमीन हो. खास बात ये है कि भारतीय स्पेशल फोर्सेज में गरुड़ कमांडो की ट्रेनिंग सबसे लंबी होती है जोकि 72 सप्ताह तक चलती है.
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