Bombay High Court : याचिकाकर्ता के पति ने कहा कि उसकी भाभी ने अंडा दान किया है, तो जुड़वां बच्चों की बायलॉजिकल माता कहलाने का वह पूरा अधिकार रखती है.
13 August, 2024
Bombay High Court : बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को 42 वर्षीय महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच वर्षीय जुड़वां बेटियों से मिलने का अधिकार दिया. कोर्ट ने कहा कि शुक्राणु या अंडा दानकर्ता (Sperm or Egg Donor) का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है और वह बायोलॉजिकल तौर पर माता-पिता होने का भी दावा नहीं कर सकता है. महिला ने अपनी याचिका में कहा कि सरोगेसी के जरिए पैदा हुई उसकी दो बेटियां उसके पति और उसकी भाभी के पास रह रही हैं, जिन्होंने स्पर्म डोनेट किया है.
पति की दलील को कोर्ट ने नकारा
वहीं, याचिकाकर्ता के पति ने दावा किया था कि उसकी भाभी अंडा दाता है, इसलिए जुड़वां बच्चों की बायोलॉजिकल माता कहलाने का वह पूरा अधिकार रखती है. साथ ही उनकी पत्नी का बेटियों पर कोई अधिकार नहीं है. हालांकि, न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव (Justice Milind Jadhav) की एकल पीठ ने पति की तरफ से दी गई दलील को स्वीकार करने से मना कर दिया और कहा कि भाभी ने स्वेच्छा से अंडा दान किया था इसलिए वह अधिक से अधिक आनुवंशिक मां बनने के योग्य हैं, इससे अधिक कुछ भी नहीं.
स्पर्म डोनेट करने वाले को करना होगा अधिकारों का त्याग
मामले में कोर्ट की सहायता की तरफ से पेश हुए वकील ने बताया कि दोनों दंपती का सरोगेसी समझौता 2018 में हुआ था, जब सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 लागू नहीं हुआ था. इसलिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा 2005 में जारी दिशा-निर्देश समझौते को विनियमित करेंगे. इन दिशा-निर्देशों के मुताबिक, दाता और सरोगेट मां को सभी माता-पिता के अधिकारों को त्यागना होगा. सभी आयामों को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में जुड़वां बच्चे याचिकाकर्ता और उसके पति के होंगे.
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