Waqf Act : वक्फ एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई. इस दौरान CJI और SGI के बीच काफी सवाल-जवाब हुए. वहीं, CJI ने कहा कि किसी हिंदू धार्मिक संस्थान में गैर-हिंदू सदस्य हो सकता है?
Waqf Act : सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन एक्ट 2025 पर बुधवार को पहली बार सुनवाई शुरू हुई और शुरुआती समय से ही बहस का स्तर काफी गरम रहा. वक्फ एक्ट के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर देश के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ सुनवाई कर रही थी. वक्फ संशोधन पर सुनवाई के दौरान CJI ने कहा कि जब हम कोर्ट में बैठते हैं तो हम अपना धर्म भूल जाते हैं.
गैर-मुस्लिम पर SC ने खड़ा किया सवाल
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई कर रही थी. इस दौरान CJI ने सवाल खड़ा किया कि केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों नामांकन करने की अनुमति देने वाले संशोधन अधिनियम (धारा 9 और 14) के प्रावधानों पर सवाल खड़ा किया. सीजेआई ने सवाल किया कि क्या हिंदू धार्मिक संस्थानों के ट्रस्टों में मुसलमानों को भी शामिल किया जा सकता है? इस बीच केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलीसीटर जनरल ऑफ इंडिया (SGI) तुषार मेहता ने सवाल करते हुए कहा कि क्या आप यह सुझाव दे रहे हैं कि मुसलमानों समेत अल्पसंख्यकों को भी हिंदू धार्मिक स्थलों का प्रबंधन करने वाले ट्रस्टों में शामिल किया जाना चाहिए, आप इस पर खुलकर बताएं.
फिर इस मामले में बेंच को सुनवाई करनी चाहिए : SGI
इस पूरे मामले में केंद्र का पक्ष रखते हुए तुषार मेहता ने कहा कि गैर-मुस्लिमों का शामिल करना बेहद सीमित है और इस तरह का प्रावधान किसी भी स्तर मुस्लिम निकायों को प्रभावित नहीं करता है. इसमें सिर्फ 2 ही गैर-मुस्लिम को ही शामिल किया जा सकता है, हालांकि, बोर्ड में मुस्लिम उम्मीदवार बहुमत में होंगे. SGI अगर इस बहस को तार्किक ढंग से देखा जाए तो गैर-मुस्लिम सदस्यों को लेकर शिकायत होती है तो बेंच भी स्वयं इस मामले की सुनवाई को लेकर अयोग्य है. उनका कहना था कि अगर गैर-मुस्लिम सदस्यों को कमेटी में शामिल नहीं किया जाता है तो वर्तमान समय में पीठ भी सुनवाई नहीं कर पाएगी. SGI ने कहा कि इस तर्क के हिसाब से तो CJI भी मामले की सुनवाई नहीं कर पाएंगे.
हम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हो जाते हैं
SGI की बात खत्म होन के बाद CJI ने कहा कि माफ, कीजिए मिस्टर मेहता… हम सिर्फ न्याय की बात नहीं कर रहे हैं. जब हम इस कुर्सी पर बैठते हैं तो हम अपना धर्म भूल जाते हैं, हम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हो जाते हैं. इसलिए हमारे लिए एक पक्ष और दूसरा पक्ष समान होता है और हम दोनों की बराबर तकरीरें सुनते हैं.
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