Home History Kazi Nazrul Islam Jayanti: ‘मैं संन्यासी, मैं सैनिक, मैं युवराज बैरागी…’ बांग्‍लादेश बनने पर ससम्‍मान साथ ले गया यह राष्‍ट्रकवि?

Kazi Nazrul Islam Jayanti: ‘मैं संन्यासी, मैं सैनिक, मैं युवराज बैरागी…’ बांग्‍लादेश बनने पर ससम्‍मान साथ ले गया यह राष्‍ट्रकवि?

by Live Times
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Kazi Nazrul Islam Jayanti

Kazi Nazrul Islam Jayanti: बांग्ला के प्रसिद्ध कवि काजी नजरुल इस्लाम का जन्म 24 मई 1899 को हुआ था. उनकी जयंती के मौके पर उनके द्वारा भगवान कृष्ण पर लिखी गई 5 प्रसिद्ध रचनाएं पढ़िए.

Kazi Nazrul Islam Jayanti: काजी नजरुल इस्लाम एक बंगाली कवि, संगीतकार और क्रांतिकारी थे. उनका उपनाम “विद्रोही कवि” था. वह फासीवाद और उत्पीड़न के खिलाफ तीव्र आध्यात्मिक विद्रोह के बारे में बात करने वाली कविताएं बनाने वाले पहले व्यक्ति थे. नजरुल का जन्म 24 मई साल 1899 को पश्चिम बंगाल के चुरुलिया गांव में एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था और आज उनकी जयंती है. इस मौके पर उनकी लिखीं हुई शायरियां पढ़िए.

अगर तुम राधा होते श्याम
मेरी तरह बस आठों पहर तुम,
रटते श्याम का नाम
वन-फूल की माला निराली,
वन जाति नागन काली
कृष्ण प्रेम की भीख मांगने,
आते लाख जन्म
तुम, आते इस बृजधाम,
चुपके चुपके तुमरे हिरदय में
बसता बंसीवाला,
और, धीरे धारे उसकी धुन से
बढ़ती मन की ज्वाला,
पनघट में नैन बिछाए तुम
रहते आस लगाए,
और, काले के संग प्रीत लगाकर
हो जाते बदनाम

– काजी नजरुल इस्लाम

कहां हुआ काजी नजरुल का जन्म

Kazi Nazrul Islam Biography: काजी नजरुल इस्‍लाम का जन्म 24 मई साल 1899 को पश्चिम बंगाल प्रदेश के वर्धमान जिले में आसनसोल के पास चुरुलिया गांव में एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनकी प्राथमिक शिक्षा बंगाल के एक मदरसे में हुई थी. दस साल की उम्र में उनके पिता का निधन होगा तब परिवार की देखभाल करने के लिए पिता की जगह मस्जिद में प्रबंधक का काम करने लगे. हमारे इतिहास में भी ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं जब रचनाकार को, किसी कलाकार या साहित्‍यकार को उसके अपने ही धरती से बेदखल कर दिया गया है. उसकी हत्‍या कर दी गई हो या उसे अपना देश छोड़ने पर विवश कर दिया जाता है. लेकिन ऐसा उदाहरण एक ही है जब किसी देश से किसी दूसरे देश से उसका साहित्‍यकार ससम्‍मान मांगा हो और उसकी देखरेख में अपने सारे संसाधन लगा दिए हों. ऐसे बिरले साहित्‍यकार काजी नजरुल इस्‍लाम थे.

‘काजी’ ने लिखीं भगवान पर कविताएं

काजी नजरुल इस्‍लाम की संगीत और साहित्य में काफी रुचि थी, जिसको देखते हुए उनके चाचा फजले करीम ने उन्हें अपनी संगीत मंडली में शामिल कर लिया. नजरुल इस मंडली के लिए गाने लिखा करते थे. इसके लिए उन्‍होंने बांग्ला और संस्कृत सीखी. वह मंडली के साथ संस्कृत में पुराण पढ़ा करते थे. पौराणिक कथाओं के आधार पर उन्‍होंने ‘शकुनी का वध’, ‘युधिष्ठिर का गीत’, ‘दाता कर्ण’ जैसी कई नाटक भी लिखे. इसी दौरान उन्होंने कृष्ण भक्ति पर चर्चित कविताएं लिखी. मुस्लिम होने के साथ-साथ भगवान के लिए कविता लिखना. उन्हे समाज में एक अलग पहचान दिलाता था.

देश की आजादी के लिए लिखी कविता

काजी नजरुल देश की आजादी के लिए लगातार लिखते रहे. साल 1922 में उनका काव्य संग्रह ‘अग्निवीणा’ काफी प्रकाशित हुआ. इस पुस्तक ने प्रकाशित काजी नजरुल की एक कविता ‘विद्रोही’ बेहद लोकप्रिय हुई. इसी कारण उन्हें विद्रोही कवि का नाम भी मिला. इस लंबी कविता में उन्होंने लिखा…

मैं संन्यासी, मैं सैनिक
मैं युवराज, बैरागी
मैं चंगेज़, मैं बागी
सलाम ठोकता केवल खुद को
मैं वज्र, मैं ब्रह्मा का हुंकार
मैं इसाफील की तुरही
मैं पिनाक पानी
डमरू, त्रिशूल, ओंकार
मैं धर्मराज का दंड,
मैं चक्र महाशंख
प्रणव नाद प्रचंड
मैं आगबबूला दुर्वासा का शिष्य
जलाकर रख दूंगा विश्व
मैं प्राणभरा उल्लास
मैं सृष्टि का शत्रु, मैं महा त्रास
मैं महा प्रलय का अग्रदूत
राहू का ग्रास.

– काजी नजरुल इस्लाम

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