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Kabir Das Jayanti 2024: संत कबीरदास ने किया है कर्मकांडों और आडंबरों पर प्रहार

by Pooja Attri
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Kabir Das Jayanti 2024: संत कबीरदास ने किया है कर्मकांडों और आडंबरों पर प्रहार

Kabir Das Jayanti 2024: संत कबीरदास का जन्म 14वीं-15वीं शताब्दी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में बताया जाता है. कई मान्यतानुसार उनका जन्म एक ब्राहमण परिवार में हुआ था.

22 June, 2024

Kabir Das Jayanti 2024 : महान संत कबीरदास 15वीं शताब्दी के लोकप्रिय कवि और विचारक थे. इनका संबंध भक्तिकाल की निर्गुण शाखा ‘ज्ञानमर्गी उपशाखा’ से था. संत कबीरदास ने उस समय समाज में फैले अंधविश्वास, कुरीतियों और कर्मकांडों की जमकर निंदा की थी. कबीरदास की रचनाओं के कुछ अंशों को सिक्ख ‘आदि ग्रंथ’ में शामिल किया गया है. आइए जानते हैं संत कबीरदास के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें.

कबीर दास का जीवन परिचय

इसका कहीं कोई सटीक प्रमाण नहीं है कि संत कबीरदास का जन्म कब हुआ था. हालांकि, उनका जन्म 14वीं-15वीं शताब्दी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में बताया जाता है. उनके जीवन से जुड़ी कई मान्यताएं लोकप्रिय हैं कि कबीर दास एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुख रखते थे. जब उनका जन्म हुआ तो पिता का देहांत हो चुका था. जन्म के पश्चात ही उनकी मां ने उन्हें एक नदी में बहा दिया था. फिर एक जुलाहा दंपती नीरू और नीमा को कबीरदास नदी के किनारे मिले, जिन्होंने इनका पालन-पोषण किया. कबीरदास के गुरु ‘संत स्वामी रामानंद’ थे. संत का विवाह एक ‘लोई’ नाम की महिला से हुआ था. दोनों की दो संतान हुईं जिनका नाम ‘कमाल’ और ‘कमाली’ था. उनके देहांत को लेकर विद्वानों का मानना है कि 1575 में मगहर के पास उनका स्वर्गवास हुआ था.

कबीरदास नहीं थे ज्यादा पढ़े-लिखे

संत कबीरदास ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे. उन्होंने खुद अपने दोहे में इस बात को कहा है-‘मसि कागद छूयो नहीं, कलम गयो नहिं हाथ’. कबीरदास के इस दोहे से इस बात का पता चलता है कि उन्होंने अपनी रचनाओं को नहीं लिखा है. हालांकि, उनके द्वारा कहे गए अनमोल वचनों का उल्लेख कई ग्रंथों में मिलता है. ऐसी मान्यता है कि बाद में उनके वचनों का संग्रह उनके शिष्यों द्वारा ‘बीजक’ में किया गया.

कबीरदास की प्रसिद्ध रचनाएं

संत कबीरदास कई भाषाओं का ज्ञान रखते थे, क्योंकि वह साधु-संतों के साथ कई जगहों पर भ्रमण करते थे. वह अपने विचारों और अनुभवों को बताने के लिए स्थानीय भाषा का उपयोग करते थे, जिससे स्थानीय लोग उनके वचनों को बेहतर समझ सकें. यहां आपको बता दें कि संत कबीरदास की भाषा ‘सधुक्कड़ी’ थी.

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