Introduction
Maha Kumbh Mela 2025 : ऐसा कहा जाता है कि पश्चिम ने दुनिया को विज्ञान दिया तो भारत ने अध्यात्म का ज्ञान. वह अध्यात्म जो जीवन की गुत्थियों का सुलझाने में बहुत मददगार साबित होता है. यही वजह है कि दुनियाभर के लोगों के लिए भारत हमेशा से अध्यात्म का केंद्र रहा है. अगर अध्यात्म की बात करें तो भारत का इससे बहुत पुराना संबंध है. विविधता के बीच एकता की बुनावट और बनावट के चलते दुनिया भर से लोग भारत आते हैं. कई लोग ऐसे हैं जो अध्यात्म की खोज में भारत पहुंचे और यहां से बहुत कुछ लेकर विदा हुए और कुछ तो यहीं के होकर रह गए. वहीं, दूसरी ओर भारत देश विभिन्न संस्कृतियों का संगम भी कहलाता है. आधुनिक विचारों को अपनाने के साथ-साथ भारत देश अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत को भी बनाए रखे हुए है.
इस लेख में हम बात करेंगे 12 वर्षों में लगने वाले महाकुंभ की, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा मेला भी कहा जाता है. करोड़ों श्रद्धालु कुंभ मेले के दौरान पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं. मान्यता है कि इस पवित्र स्नान से मनुष्य के पापों का क्षय होता है और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं. ऐसी मान्यता है कि देवता और असुर में 12 दिनों तक अमृत को हासिल करने के लिए भीषण युद्ध हुआ. इसके बाद से 12 दिन मनुष्य के 12 साल के समान होते हैं. यही वजह है कि हर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन होता है.
Table of Content
- देश का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव
- कब से शुरू होगा महाकुंभ 2025
- क्यों लगता है कुंभ मेला
- कब होता है महाकुंभ मेले का आयोजन ?
- महाकुंभ 2025 कब-कब होगा शाही स्नान
- जानिये महाकुंभ की अहम बातें
- कैसे पहुंचें महाकुंभ मेला स्थल पर ?
देश का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव
महाकुंभ हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है और इसका आयोजन 12 साल में किया जाता है. इसे सामान्य तौर पर कुंभ मेला भी कहा जाता है. महाकुंभ का आयोजन भारत की 4 पवित्र नदियों और 4 तीर्थ स्थानों पर ही होता है. इस लिहाज से महाकुंभ का आयोजन सिर्फ प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में ही होता है. जानकारों का कहना है कि हरिद्वार में गंगा नदी, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज में संगम (गंगा, जमुना और पौराणिक सरस्वती का संगम) पर ही कुंभ मेले का आयोजन होता है. गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के तट पर लगने वाला महाकुंभ 12 वर्ष में एक बार ही आयोजित होता है.
12 साल में एक बार लगने वाले महाकुंभ में स्नान का बड़ा महत्व है. हिंदू मान्यता के अनुसार, महाकुंभ के दौरान आयोजन स्थल पर स्नान करने से पाप मिटते हैं और अक्षय पुण्य हासिल होता है. इसके साथ ही यहां स्नान करने से मनुष्य को मोक्ष भी मिलता है. इस बार की बात करें तो प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में स्नान की 6 तिथियां हैं.
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कब से शुरू होगा महाकुंभ 2025
हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) में 13 जनवरी से महाकुंभ की शुरुआत होगी, जबकि इसका समापन 26 फरवरी, 2025 को होगा. इस दौरान स्नान के लिए 6 तिथियां स्नान-दान के लिए बेहद शुभ मानी जा रही है. वैसे तो हर साल प्रयागराज में माघ मेला लगता है, लेकिन अर्ध कुंभ और महाकुंभ मेला विशेष धार्मिक महत्व रखता है. धार्मिक मान्यता है कि महाकुंभ में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं.
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यही वजह है कि महाकुंभ में पूरे देश से श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंचते हैं. यहां तक कि विदेश में रहने वाले हिंदू धर्म के लोग भी महाकुंभ में शामिल होने के लिए भारत आते हैं. अन्य धर्मों के लोग भी संगम में डुबकी लगाने इस बार आएंगे. महाकुंभ में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार समेत उत्तर भारत के राज्यों के लोग अधिक आते हैं. इसके अलावा दक्षिण भारत से भी महाकुंभ में पवित्र डुबकी लगाने के लिए श्रद्धालु आते हैं. यही वजह है कि महाकुंभ के मेले में काफी भीड़ होगी. ऐसे में होटल, धर्मशाला और टेंट सुविधा की बुकिंग पहले से हो चुकी है.
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क्यों लगता है कुंभ मेला
कुंभ मेला क्या है और यह 12 साल बाद ही क्यों लगता है? इसके पीछे एक कहानी है. ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से अमृत का एक कलश भी निकला था. इस कलश का अमृत जिसने भी पिया वह सदा के लिए अमर हो गया. यह जानकारी जैसी ही देवों और असुरों को हुई तो इस अमृत के इस कलश के लिए एक-दूसरे से भिड़ गए. मामला बिगड़ता देखकर भगवान विष्णु को मोहिनी अवतार लेना पड़ा. वह चालाकी सें अमृत कलश अपने साथ ले गईं. अमृत कलश ले जाने के दौरान कुछ बूंदें हरिद्वार, इलाहाबाद (अब प्रयाग), नासिक और उज्जैन में गिरीं. यही वजह है कि इन चारों जगहों हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है.
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इस बारे में एक दूसरी कहानी भी है कि जब समुद्र मंथन से अमृत का कलश निकला तो भगवान इंद्र का पुत्र जयंत उसे लेकर आकाश में उड़ गया. इस पर सभी राक्षस जयंत के पीछे अमृत कलश लेने के लिए दौड़े. इस बीच कलश दैत्यों के हाथों में आ गया. इसके बाद अमृत कलश पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिनों तक भीषण युद्ध चला. कहा जाता है कि हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में इसकी यानी अमृत कलश की बूंदें गिरी थीं, इसलिए इन्हीं चार स्थानों पर महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि कुंभ मेले के दौरान एक और खगोलीय घटना होती है. यह घटना तब होती है जब बृहस्पति कुंभ राशि या कुंभ राशि में होता है और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है.
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महाकुंभ मेले का आयोजन कब होता है?
महाकुंभ मेले का आयोजन कब से हो रहा है? इसकी सही-सही जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन प्रयागराज कुंभ मेले का सबसे पहला उल्लेख वर्ष 1600 ईस्वी में मिलता है. जानकारों का कहना है कि कुंभ मेले का आयोजन कई शताब्दियों से किया जाता रहा है. वहीं, प्रयागराज कुंभ मेले का सबसे पहला उल्लेख वर्ष 1600 ईस्वी में मिलता है. यह भी कहा जाता है कि नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में कुंभ मेले की शुरुआत 14वीं शताब्दी में ही हो गई थी.
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कुंभ मेला एक प्रकार का नहीं होता है. यह चार प्रकार का होता है. दरअसल, कुंभ मेले के चार प्रकार होते हैं- कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ. कुंभ या फिर महाकुंभ, यह मेला बेहद पवित्र और धार्मिक है. आम लोगों के साथ-साथ देश के साधुओं और संतों के लिए भी यह विशेष महत्व रखता है. इस बार लगने वाला प्रयागराज कुंभ मेला 2025 पौष पूर्णिमा के दिन शुरू होगा. इस लिहाज से 13 जनवरी, 2025 को शुरू होगा और 26 फरवरी, 2025 को समाप्त होगा. कुंभ मेले में लगातार सत्संग, प्रार्थना, आध्यात्मिक व्याख्यान और लंगर भोजन चलता रहेगा. कुंभ मेले के दौरान लोग संगम, हनुमान मंदिर, प्रयागराज किला समेत अन्य जगहों पर घूमने का भी लुत्फ उठा सकते हैं.
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महाकुंभ 2025 कब-कब होगा शाही स्नान
- 13 जनवरी : महाकुंभ 2025 का पहला शाही स्नान 13 जनवरी, 2025 को होगा. इस दिन पौष पूर्णिमा भी है. इस तारीख से ही महाकुंभ मेले की शुरुआत मानी जाएगी.
- 14 जनवरी : मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर भी शाही स्नान का भव्य आयोजन किया जाएगा.
- 29 जनवरी : 29 जनवरी को मौनी अमावस्या है. इस दिन भी शाही स्नान आयोजित किया जाएगा.
- 3 फरवरी : 03 फरवरी के दिन बसंत पंचमी के मौके पर शाही स्नान है. इस दिन यहां पर भारी भीड़ होने की संभावना है.
- 12 फरवरी : माघ पूर्णिमा के शुभ मौके पर भी शाही स्नान किया जाएगा.
- 26 फरवरी : महाशिवरात्रि के मौके पर भी शाही स्नान किया जाएगा.
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जानिये महाकुंभ की अहम बातें
- हर 12 साल बाद महाकुंभ का मेला लगता है.
- प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक के अलावा उज्जैन में महाकुंभ का आयोजन होता है.
- प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के दौरान 10 करोड़ श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगाने आएंगे.
- प्रयागराज कुंभ मेला 2025 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा.
- वर्ष 2013 में प्रयागराज में महाकुंभ लगा था.
- संगम पर स्नान करने वालों को डूबने से बचाने के लिए जल पुलिस के साथ ही अंडरवाटर ड्रोन भी तैनात रहेंगे.
- ऐसे ड्रोन 300 मीटर के दायरे में किसी भी डूबते व्यक्ति को खोजने में सक्षम होंगे.
- यह ड्रोन 1 मिनट में डेढ़ किलोमीटर की दूरी तय कर सकेगा.
- महाकुंभ में भीड़ नियंत्रित करने के लिए पार्किंग व्यवस्था शहर से बाहर रहेगी. इससे मेला स्थल पर वाहन नजर नहीं आएंगे.
- प्रयागराज में इस बार साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के रोडवेज बसों से पहुंचने का अनुमान है.
- महाकुंभ 2025 के मद्देनजर रेलवे द्वारा इस बार 3000 स्पेशल ट्रेनों के साथ 13000 से अधिक रेलगाड़ियों का संचालन करेगा.
- पहली बार छोटी दूरी के लिए बड़ी संख्या में मेमू ट्रेन चलेंगीं.
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कैसे पहुंचें महाकुंभ मेले में ?
13 जनवरी से शुरू होने वाले महाकुंभ को लेकर भारतीय रेलवे ने भी खास इंतजाम किए हैं. प्रयागराज यानी महाकुंभ मेला स्थल पर आप बस के अलावा ट्रेन और हवाई जहाज से भी पहुंच सकते हैं. प्रयागराज की सबसे बड़ी खूबी यही है कि यह रेल मार्ग से देश के सभी बड़े शहरों से वेल कनेक्टेड है. देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां प्रयागराज (महाकुंभ मेला स्थल) पहुंचने में 9-10 घंटे का समय लगता है.
इसके साथ ही प्रयागराज और उसके आसपास के 8 रेलवे स्टेशन पर अपने शहरों से ट्रेन से पहुंच सकते हैं. ये स्टेशन प्रयागराज जंक्शन, प्रयागराज रामबाग, प्रयागराज संगम, प्रयाग जंक्शन, नैनी जंक्शन, प्रयागराज छेओकी, फाफामऊ जंक्शन, झूंसी और सूबेदारगंज. दिल्ली से प्रयागराज की दूरी लगभग 690-742 किलोमीटर है. अगर आप सड़क मार्ग से यहां आना चाहते हैं तो आपको 11 से 12 घंटे लग सकते हैं.
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