28 February 2024
हमारी किताबों में बंद सर सी वी रमन वो वैज्ञानिक है जिन्होंने ‘प्रकाश का अलग-अलग रंगो में बिखर जाने’ का सिद्धांत पूरी दुनिया से साझा किया था। जिसे अंग्रेजी में ‘Scattering of light’ भी कहते है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सर सी वी रमन ने रमन इफेक्ट की खोज 28 फरवरी, 1928 को की थी। इसलिए हर साल इस महान आविष्कार के सम्मान में 28 फरवरी का दिन राष्ट्रिय विज्ञान दिवस के रुप में मनाया जाता है। भारत के महान वैज्ञानिक डॉ. सीवी रमन की ओर से विज्ञान जगत को दिए गए एक अनुपम उपहार ‘रमन इफेक्ट’की सालगिराह के मौके पर विज्ञान की भूमि को प्रोत्साहित करने के लिए देश में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वैज्ञानिकों को उनकी खोज और विज्ञान जगत में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें सम्मानित किया जाता है। इस दिन का अहम लक्ष्य युवाओं और विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति जागरूक करना और लोगों को विज्ञान के प्रति आकर्षित करना है।
रमन इफेक्ट आज भी इतना अहम क्यों है?
टेलीकॉम उद्योग में रमन प्रभाव का महत्वपूर्ण योगदान है। सूचना को एक जगह से दुसरी जगह प्रसारित करने के लिए उसे सूक्ष्म कणों में तोड़ना पड़ता है जिसके लिए ‘रमन इफेक्ट’ इस्तेमाल किया जाता। रमन प्रभान का खासा इस्तेमाल ऑप्टिक्स में किया जाता है। रमन इफेक्ट का सबसे अधिक इस्तेमाल रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट्स में ग्रहों की खोज करने और ग्रहों की दूरी का पता लगाने और उनपर मौजूद खनिज पदार्थों की खोज करने के लिए किया जाता है। साथ ही इसका उपयोग डीएनए और प्रोटीन का अध्ययन करने और परमाणुओं की संरचना को समझने के लिए भी किया जाता है।
कौन थे सीवी रमन?
सर सीवी रमन का पूरा नाम चंद्रशेखर वेंकट रमन है। उनका जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिलापल्ली में हुआ था। उनके पिता गणित और भौतिकी के प्रोफेसर थे। उन्होंने विशाखापट्टनम के सेंट एलॉयसिस एंग्लो-इंडियन हाईस्कूल और तत्कालीन मद्रास के प्रेसीडेन्सी कॉलेज से पढ़ाई की थी। प्रेसीडेन्सी कॉलेज से उन्होंने 1907 में एमएससी पूरी की और यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से उन्होंने फिजिक्स में गोल्ड मेडल हासिल किया। 1907 से 1933 के बीच उन्होंने कोलकाता में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस में काम किया। इसी दौरान उन्होंने फिजिक्स से जुड़े कई विषयों पर गहन रिसर्च की और रिटायरमेंट के बाद उन्होंने बेंगलुरु में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की।इसके बाद सन् 1947 में वह विश्व प्रसिद्ध इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc)के डायरेक्टर के रुप में भी कार्यरत रहे। 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा जिसके बाद भौतिकी में नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के पहले वैज्ञानिक बने। जीवन को फिजिक्स के नियमों को समझने में बिताने के बाद एक दिन इस प्रकृति के नियम के सामने मजबूर हो कर उन्होंने 21 नवंबर, 1970 को हम सभी को अलविदा कह दिया।
कैसे की प्रकाश को लेकर अपनी विशेष खोज?
आइए अब नजर डालते हैं उनके जीवन की उस खोज पर जिसने रातों रात उन्हें एक वैज्ञानिक से विश्व प्रसिद्द आविष्कारक में बदल दिया। जब वह एक बार लंदन से भारत की ओर आ रहे थे। तब समुद्र के नीले पानी को देखकर उनके मन में जानने की उत्सुकता हुई की यह पानी नीला क्यों दिखाई देता है। मन में इसी सवाल की उलझन को लेकर वो भारत पहुंचे और रिसर्च शुरु कर दी। कई दिनों की मेहनत के बाद उन्हें समझ आया की पारदर्शी पदार्थ से गुजरने पर प्रकाश की किरणों में बदलाव आने लगता है, वे एक दुसरे से टूट कर अलग होने लगते हैं और अलग हो कर 7 अलग रंगो में बिखर जाते हैं, बस प्रकाश के इसी बिखराव को ‘रमन इफेक्ट’कहते हैं।
क्या है राष्ट्रिय विज्ञान दिवस पर सरकार की थीम?
हर वर्ष सरकार की ओर से राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के लिए कुछ ना कुछ खास थीम तैयार की जाती है। इस बार इसकी थीम ‘विकसित भारत के लिए स्वदेशी तकनीक’ रखी गई है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कुछ दिन पहले इसका आधिकारिक ऐलान किया था।
सी वी रमन जैसे ना जाने कितने हीं वैज्ञानिक ऐसे हैं जो किताब के पन्नों में खो से गए हैं। आशा है कि आपको किताब के भूले बिसरे पन्नों से निकले इस इतिहास रचियता की कहानी अच्छी लगी हो।