Home Topic क्यों दशकों से लड़ रहे हैं इजराइल-फिलिस्तीन? जानिए दोनों देशों के बीच खूनी संघर्ष का इतिहास!

क्यों दशकों से लड़ रहे हैं इजराइल-फिलिस्तीन? जानिए दोनों देशों के बीच खूनी संघर्ष का इतिहास!

by Sachin Kumar
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Israel-Palestine Conflict History

Introduction

Israel-Palestine Conflict History : गाजा पट्टी में फिलिस्तीन सशस्त्र समूह और राजनीतिक आंदोलन हमास की तरफ से 7 अक्टूबर को इजराइल पर हमला करने के बाद से युद्ध शुरू हो गया. इस हमले में इजराइल के 1200 नागरिक मारे गए थे, जिसके बाद दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया. संघर्ष के एक साल पूरे होने तक फिलिस्तीन में 42 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. यह इतिहास की उन चुनिंदा लड़ाइयों में से एक है जहां पर इतनी भारी संख्या में लोगों की मौत हुई है. लेकिन अब सवाल उठता है कि इन दोनों देशों के बीच इतनी भयंकर जंग क्यों शुरू हुई? क्यों हमास ने इसराइल पर इतनी भारी संख्या में मिसाइलों से हमला किया? हमास इजराइल से क्या चाहता है? या किस बात का बदला लेना चाहता है? इन सारे सवालों के उत्तर 7 अक्टूबर, 2023 से जुड़े संघर्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि इस संघर्ष का तार दशकों पुरानी लड़ाई से जुड़ा है जहां दोनों देशों के बीच कई बार खूनी जंग देखी गई है.

Table of Content

  • ओटोमन साम्राज्य के बाद ब्रिटेन का कब्जा
  • येरुशलम ऐसे बना चर्चा का विषय
  • 1949 तक नहीं बन पाई थी कोई सहमति
  • फिलिस्तीन 1967 से पुरानी सीमा पर सहमत
  • येरुशलम एक विवादित जमीन बनी

ओटोमन साम्राज्य के बाद ब्रिटेन का कब्जा

प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद ऑटोमन साम्राज्य की हार हुई और फिलिस्तीन पर ब्रिटेन ने नियंत्रण कर लिया. उस दौरान यहां पर अरब बहुसंख्यक और यहूदी अल्पसंख्यक के अलावा छोटे-छोटे समूह भी रहते थे. 1920 से लेकर 1940 तक यूरोप से कई उत्पीड़ित यहूदी फिलिस्तीन पहुंचने लगे और सबसे ज्यादा प्रवास उस वक्त हुआ जब हुआ तब जर्मनी में तानाशाह हिटलर की तरफ से यहूदियों पर भयंकर क्रूरता होने लगी थी. उसी दौरान अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ब्रिटेन को यहूदी समुदाय के लिए एक ‘राष्ट्रीय घर’ स्थापित करने का काम सौंपा था. यह सारा खेल 1917 के बाल्फेर घोषणापत्र से शुरू हुआ था क्योंकि तत्कालीन विदेश सचिव आर्थर बाल्फोर द्वारा ब्रिटेन के यहूदी समुदाय को वचन दिया था कि उनके लिए एक देश बनाया जाएगा. साल 1922 में नव-निर्मित ‘लीग ऑफ नेशंस’ संयुक्त राष्ट्र के अग्रदूत द्वारा समर्थित था. वहीं, यहूदियो के लिए फिलिस्तीन उनका पैतृक घर था तो दूसरी तरफ फिलिस्तीन अरबों ने इस भूमि पर अपना दावा पेश किया और इस कदम पर कड़ी आपत्ति दर्ज की.

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यरूशलम ऐसे बना चर्चा का विषय

वहीं, साल 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने के लिए मतदान किया गया और उस दौरान यरूशलम एक अंतरराष्ट्रीय शहर बन गया. जहां यहूदी नेताओं ने इसे स्वीकार कर लिया. लेकिन अरबों ने इसका कड़ा विरोध किया. इसके बाद 29 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विभाजन संकल्प 181 को अपनाया जिसे मई 1948 में ग्रेट ब्रिटेन के पूर्व फिलिस्तीनी शासनादेश को यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करेगा. संकल्प के तहत यरुशलम के आसपास के धार्मिक महत्व वाले एरिया संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रशासित अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में रहेंगे. फिलिस्तीनी अरबों ने इस व्यवस्था को पूरी तरह से नकार दिया जिसके माध्यम से यहूदियों के लिए राज्य बनाने की राह आसान हो रही थी. वहीं, 14 मई, 1948 को इजराइल द्वारा अपनी स्वतंत्रता घोषित करने के बाद अन्य अरब बलों ने फिलिस्तीन अरबों के साथ मिलकर तेल अवीव पर हमला बोल दिया, जिसके बाद दोनों देशों के बीच संघर्ष तेज हो गया. इस कार्रवाई के बाद लेबनान, सीरिया, इराक और मिस्र की अरब सेनाओं ने भी यहूदी वाले इलाके पूर्व फिलिस्तीन शासनादेश पर आक्रमण किया. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र ने संघर्ष के दौरान दो युद्ध विरामों की मध्यस्थता की लेकिन काफी कोशिश होने के बाद भी जंग 1949 तक जारी रही.

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1949 तक नहीं बन पाई थी कोई सहमति

इजराइल और फिलिस्तीन अरब के बीच फरवरी 1949 तक भी कोई आम सहमति नहीं बन पाई थी. दूसरी तरफ इजराइल और पड़ोसी राज्यों मिस्त्र, लेबनान, ट्रांसजॉर्डन और सीरीज के बीच अलग-अलग समझौतों के तहत यह सीमावर्ती देश औपचारिक युद्ध विराम रेखाओं पर सहमत हुए. इजराइल ने 1947 में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के तहत फिलिस्तीन अरबों को दिए गए कुछ क्षेत्र हासिल कर लिए. मिस्त्र और जॉर्डन ने गाजा पट्टी और पश्चिम तट पर नियंत्रण बनाए रखा, साथ ही यह युद्ध विराम 1967 तक कायम रहा. इसके अलावा अमेरिका सीधे तौर पर युद्ध विराम समझौते में शामिल नहीं था क्योंकि उसे पूरी उम्मीद थी कि मध्य पूर्व में अस्थिरता सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच अंतरराष्ट्रीय मामले पर कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी. लेकिन इसके बाद 5 जून 1967 को इजराइल और मिस्त्र के बीच लंबे समय तक चले युद्ध के बाद इजराइल और उसके अरब पड़ोसियों के बीच 6 दिवसीय युद्ध छिड़ गया. 6 दिन युद्ध चलने के बाद इजराइल ने पश्चिमी तट, पूर्वी यरुशलम, गाजा और सिनाई प्रायद्वीप के फिलिस्तीनी अरब क्षेत्रों के साथ-साथ गोलान हाइट्स के सीरियाई क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. 6 दिवसीय युद्ध ने फिलिस्तीनियों के बहुमत को एक बार शरणार्थी बनने पर मजबूर कर दिया और फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर दशकों तक इजराइली कब्जा शुरू हो गया.

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फिलिस्तीन 1967 से पुरानी सीमा पर सहमत

फिलिस्तीन की मांग रही है कि इजराइल साल 1967 से पूर्व की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित हो जाए और वेस्ट बैंक तथा गाजा को छोड़ दें और स्वतंत्र रूप से फिलिस्तीन में शामिल कर दिया जाए. इसके अलावा इजराइल को किसी भी शांति समझौते में शामिल होने से पहले पूर्व में किए गए कब्जों को छोड़ना होगा. साथ ही फिलिस्तीन यह भी चाहता है कि वर्ष 1948 में अपना घर खो चुके फिलिस्तीन के शरणार्थी वापस फिलिस्तीन आएं और यरूशलम को स्वतंत्र फिलिस्तान राष्ट्र का हिस्सा स्वीकार कर लें. वहीं, दूसरी तरफ इजराइल येरुशलम को अपना अभिन्न हिस्सा मानकर चलता है और अपनी संप्रभुता के रूप में देखता है. आपको मालूम हो कि इजराइल दुनिया का एकमात्र देश है जो सिर्फ धार्मिक समुदाय के लिए बनाया गया है. साथ ही इजराइल का स्पष्ट कहना है कि पूरी दुनिया उसे एक यहूदी देश के रूप में मान्यता दे.

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यरूशलम एक विवादित जमीन बनी

यरूशलम यहूदियों, ईसाइयों और मुस्लिमों के लिए एक पवित्र धरती के रूप में देखते हैं. यहां ईसाइयों के लिए पवित्र सेपुलकर चर्च, मुस्लिम के लिए मस्जिद और यहूदियों के लिए यहां पर पवित्र दीवार है. ऐसे में यह स्थान तीन धर्मों के लोगों के लिए आस्था केंद्र है. यरूशलम में पवित्र सेपरुलकर चर्च बना हुआ है जो कि दुनिया भर के ईसाइयों के लिए पवित्र केंद्र है. ईसाई धर्म को मानने वाले लोग मानते हैं कि ईसा मसीह को इसी जगह पर सूली पर लटकाया गया था और यही वो स्थान है जहा ईसा मसीहा को दोबारा जन्म हुआ था. दुनिया भर के ईसाइयों के लिए पवित्र स्थल पर एक खाली मकबरे की यात्रा करने के लिए हजारों की संख्या में यहां पर लोग आते हैं. साथ ही मुस्लिम के लिए भी यह काफी पवित्र जगह है जहां गुंबदाकार ‘डोम ऑफ रॉक’ यानी कुव्वतुल सखरह और अल-अक्सा मस्जिद एक पठार पर स्थापित है जिसे मुस्लिम ‘हरम अल शरीफ’ (पवित्र स्थान) कहते हैं. इसकी पूरी देखरेख इस्लामिक ट्रस्ट करता है. मुसलमानों का मानना है कि मोहम्मद पैगम्बर मक्का से चलकर अपनी यात्रा के दौरान इसी स्थान पर आए थे. कुव्वतुल सखरह से कुछ ही दूरी पर एक शिला भी रखी है जिस पर मुस्लिमों का विश्वास है कि मोहम्मद पैगम्बर यही से स्वर्ग की ओर गए थे. इसके अलावा यरूशलम का कोटेल या पश्चिमी दीवार का हिस्सा यहूदी बहुल माना जाता है, यहूदी मानते हैं कि यहां पर कभी हमारा तीर्थ स्थल हुआ करता था जिसकी यह बची दीवार है. यहूदी मानते हैं कि जहां पर शिला रखी हुई है वहां से दुनिया के निर्माण होने की शुरुआत हुई थी. पश्चिमी दीवार ‘होली ऑफ होलीज’ ऐसी जगह है जहां यहूदी समुदाय के लोग प्रार्थना करते हैं.

इसी धार्मिक केंद्र पर दावा करते हैं तीनों धर्म

तीन धर्मों पर केंद्रीत येरुशलम पर सबसे ज्यादा विवाद फिलिस्तीन और यहूदी के बीच बना हुआ है. दोनों ही इस जगह को हासिल करना चाहता हैं कि क्योंकि दोनों के लिए यह विश्वास और धार्मिक केंद्र है. अंतरराष्ट्रीय नियम के तहत यहां पर सभी के लिए जाने के रास्ते खुले हैं. लेकिन विवादित में फंसे यरूशलम दोनों क्षेत्र मुखर रहते हैं और युद्ध लड़ने के लिए भी तैयार रहते हैं. ऐसे में यहूदी अपनी पवित्र दीवार की पूजा करते हैं तो मुस्लिम अपनी मस्जिद में प्रार्थना करने के लिए इस जगह को स्वतंत्र करके फिलिस्तीन में मिलाने की बात करता है तो इजराइल भी अपना सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थल छोड़ने को तैयार नहीं है. ऐसे में इस क्षेत्र को काफी विवादित माना जाता है.

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Conclusion

दुनिया में कई क्षेत्रों के बीच युद्ध धर्म, जमीन और एकाधिकार को लेकर हुई है. ऐसी ही लड़ाई इजराइल और फिलिस्तीन के बीच वर्षों से चली आ रही है. यह संघर्ष बिना बातचीत और शांति समझौते के खत्म नहीं होगा. दुनिया में ज्यादातर विवाद संवाद के माध्यम से खत्म हुए हैं और यही नियम यहां भी लागू होता है. यु्द्ध से जमीन बचाई जा सके या नहीं लेकिन मानवता पूरी तरह से खत्म हो जाती है. वर्तमान में भी दोनों क्षेत्रों के बीच खूनी संघर्ष जारी है और यहां पूरी तरह मानवता शर्मसार हो गई है. इजराइल ने गाजा पट्टी में बने अस्पतालों और आश्रय गृहों पर भी हमला किया है जहां पर बेसहारा लोग युद्ध प्रभावित होने के बाद भी जीवन व्यतीत कर रहे हैं, लेकिन युद्ध एक ऐसी स्थिति जहां सिर्फ बदला होता है मानवता नहीं होती है. इसलिए किसी भी समस्या का समाधान युद्ध से नहीं बातचीत से होना चाहिए. वर्तमान युद्ध को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र को तत्काल प्रभाव से युद्धविराम करके बच्चों, महिला और बुजुर्गों को वहां निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देना चाहते हैं.

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