'मेरे हिस्से में मां आई' पढ़ें मुनव्वर राना के मशहूर शेर.

 किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकान आई, मैं सबसे छोटा था घर में मेरे हिस्से में मां आई.

कोई दुकान

 ऐसा लगता है कि वो भूल गया है हम को, अब कभी खिड़की का पर्दा नहीं बदला जाता.

खिड़की का पर्दा

हंस के मिलता है मगर काफी थकी लगती हैं, उस की आंखें कई सदियों की जगी लगती हैं.

हंस के मिलता

भले लगते हैं स्कूलों की यूनिफार्म में बच्चे, कंवल के फूल से जैसे भरा तालाब रहता है.

स्कूलों की यूनिफार्म

किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है, कहीं चलने की जिद करना मिरा तय्यार हो जाना.

मिरा तय्यार

 सो जाते हैं फुटपाथ पे अखबार बिछा कर, मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते.

फुटपाथ पे अखबार