'हजार बर्क गिरे लाख आंधियां उट्ठें', साहिर लुधियानवी के पढ़ें बेहतरीन शेर.
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को,
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया.
भूल गए हैं
देखा है जिंदगी को कुछ इतने करीब से,
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से.
देखा है जिंदगी
हजार बर्क गिरे लाख आंधियां उट्ठें,
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं.
हजार बर्क गिरे
गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहां,
मैं दिल को उस मकाम पे लाता चला गया.
गम और खुशी
ले दे के अपने पास फकत इक नजर तो है,
क्यूं देखें जिंदगी को किसी की नजर से हम.
ले दे के
कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया,
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया.
बात निकली