Modi 3.0 Cabinet : राजनीति में 1+1 हमेशा 2 नहीं होता है बल्कि कभी 11 तो कभी 1 तो कभी 0 भी हो जाता है लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में ऐसा नहीं हुआ बल्कि मामला फंस गया है.
10 June, 2024
धर्मेन्द्र कुमार सिंह, इनपुट एडिटर, लाइव टाइम्स : राजनीति में 1+1 हमेशा 2 नहीं होता है बल्कि कभी 11 तो कभी 1 तो कभी 0 भी हो जाता है लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में ऐसा नहीं हुआ बल्कि मामला फंस गया है. फंस इसीलिए गया कि BJP बहुमत से 32 सीट से पीछे रह गई है, BJP नंबर गेम में पीछे ही नही गई है बल्कि सारा खेल ही बदल गया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राजनीतिक सफर 22 सालों से जारी है लेकिन कभी ऐसा मौका नहीं आया कि उन्हें बहुमत नहीं मिला है बल्कि ये पहली बार हुआ है कि मोदी बहुमत से दूर रह गये. बल्कि राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया है. शायद समय और वोटर को यही मंजूर था कि इतने दिनों तक वो बेताज बादशाह की तरह सरकार चलाते रहे और पहली बार उनकी सरकार को सहयोगी दलों के सहारे चलना होगा.
क्या खेल बदल गया है?
नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री की शपथ ली है. राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में मोदी के साथ ही 71 मंत्रियों ने भी पद और गोपनीयता की शपथ ली. मोदी को मिलाकर 72 मंत्रिमंडल शामिल हुए हैं. इनमें 30 कैबिनेट मंत्री, 5 स्वतंत्र प्रभार और 36 राज्यमंत्री हैं. समय की नजाकत है या मजबूरी, मोदी के मंत्रिमंडल में पहली बार सहयोगी दलों को भी मंत्रिमंडल में भरपूर मौका मिला है. इसबार मोदी के मंत्रिमंडल में 11 सहयोगी दलों के नेताओं को मंत्री बनाया गया जबकि 2019 में उनके मंत्रिमंडल में सिर्फ 4 सहयोगी दलों के नेताओं जगह मिली थी जबकि 2014 में 5 मंत्रियों की जगह मिली थी. चुनाव नतीजे के बाद इसकी झलक एनडीए की बैठक में ही मिल गई है. मोदी बार बार एनडीए की बात कर रहे थे न कि BJP की. यही नहीं एनडीए की बैठक उन्होंने एनडीए की विशेषता बताते हुए कहा कि जहां कम, वहां हम. कैसे अलग-अलग राज्यों में एनडीए ने कार्य किया. पीएम मोदी ने एनडीए को नेचुरल अलायंस बताया. उन्होंने कहा कि ना हारे थे ना हारे हैं. अब इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो गठबंधन धर्म का पालन करेंगे. क्योंकि 2014 और 2019 में BJP की संसदीय दल में मोदी को नेता चुना गया था जबकि इस बार एनडीए की बैठक में प्रधानमंत्री पद के लिए चुने गये हैं.
क्या गठबंधन धर्म के बोझ दबे हैं मोदी?
नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल के गठन में ये संदेश देने की कोशिश की है कि सरकार पर गठबंधन की कोई राजनीतिक मजबूरी नहीं है. उनके मंत्रिमंडल में 72 में से 61 BJP के हीं हैं जबकि 11 मंत्री सहयोगी दलों के हैं. अभी मंत्रिमंडल का बंटवारा नहीं हुआ है लेकिन सरकार के चार महत्वपूर्ण पद गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और वित्त मंत्रालय अपने पास ही रखने वाले हैं हालांकि शपथ ग्रहण के पहले किरकिरी शुरू हो गई. एनसीपी के प्रफुल पटेल शपथ लेने से इंकार कर दिया है कि उनकी दलील थी कि वो पहले कैबिनेट मंत्री थे अब स्वतंत्र प्रभार कैसे लेंगे. लेकिन इसके पहले ऐसा नहीं हुआ था. गौर करने की बात है कि शिवसेना और जेडीयू उस समय भी BJP की सहयोगी पार्टियां थी. लेकिन बीजपी को बहुमत मिलने की वजह से सहयोगी दलों को तरजीह नहीं दी गई थी.
आगे की राह नहीं है आसान
अटल बिहारी वाजपेयी देश के तीन बार प्रधानमंत्री बने वो कभी 182 सीट से ज्यादा सीट हासिल नहीं कर पाए लेकिन गठबंधन धर्म की राह पर सरकार चलते रहे. वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में BJP के तीन कोर मुद्दे राम मंदिर, 370 की धारा खत्म करने की बात और समान नागरिक संहिता को ठंढे वस्ते में डाल दिया था . हालांकि मोदी की स्थिति वाजपेयी जैसी नहीं है. वाजपेयी को 182 सीट मिले थे जबकि मोदी को 240 सीट मिले हैं लेकिन मोदी की सरकार नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के सहारे टिकी हुई है. खास ये बात है कि नीतीश कुमार कब पलट जाए उन्हें भी खुद मालूम नहीं है, जहां तक नायडू की बात है वो एनडीए में शामिल होने से पहले केन्द्र में मोदी को हटाने का बीड़ा उठाया था.
अब आगे क्या बदल सकता है?
जाहिर है कि मोदी सरकार सहयोगी दलों के समर्थन पर टिकी है. ऐसे में सवाल पैदा होता है कि अब विवादित मुद्दे का क्या होगा? मसलन यूसीसी, अग्नि पथ, वन नेशन-वन इलेक्शन,जाति जनगणना और मुस्लिम आरक्षण इत्यादि पर BJP के रुख का क्या होगा? जेडीयू ने अग्नि पथ योजना पर कहा कि इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. पार्टी का कहना है कि यूसीसी पर उनका रुख जस का तस है,सभी स्टेक होल्डर को साथ लेकर चलने की जरूरत है. वहीं मुस्लिम आरक्षण पर टीडीपी ने अपना रुख साफ कर दिया है कि मतलब आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण जारी रहेगा जबकि नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान बार बार कहा है कि उनके रहते हुए धर्म के नाम पर आरक्षण नहीं दिया जाएगा। ये साबित होता है कि एनडीए के सहयोगी दलों में कई मुद्दों पर मतभेद है, ऐसे में सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र ऐसे कैसे निबटेंगे या सहयोगी दलों के रुख पर चलने को मजबूर होंगे? समस्या यही खत्म नहीं होती है BJP जब बहुमत में थी संसद में BJP अपने बलबूते पर बिल पास करवा लेती थी, बल्कि हंगामा होने पर सदस्यों के निलंबन से लेकर सदस्यों की बर्खास्तगी पर पार्टी फैसले लेने में सक्षम थी लेकिन अब तस्वीर बदल गई है अब संसद में सदस्यों के निलंबन से लेकर बिल पास कराने में सहयोगी दलों के साथ ताल में ताल मिलाकर चलना होगा. अब सवाल यही है कि बदली हुई परिस्थिति में नरेन्द्र मोदी एनडीए की गाड़ी कैसे आगे बढ़ाते हैं?