Home RegionalDelhi Cloud Seeding क्या है? जिससे दिल्ली में होगी बिन बादल बरसात ? सिर्फ केंद्र सरकार की ‘OK’ का इंतजार

Cloud Seeding क्या है? जिससे दिल्ली में होगी बिन बादल बरसात ? सिर्फ केंद्र सरकार की ‘OK’ का इंतजार

by JP Yadav
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Cloud Seeding : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में अब आर्टिफिशियल रेन यानी कृत्रिम बारिश आम है. चीन समेत कई देश जरूरत पड़ने पर अक्सर कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल करते हैं.

Cloud Seeding Delhi NCR : पाकिस्तान के साथ-साथ भारत में भी वायु प्रदूषण ने कहर बरपाया हुआ है. पाकिस्तान के लाहौर में वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) 1500 के पार चल रहा है. हालात यह हैं लाहौर में हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात हैं और स्कूलों को बंद कर दिया गया है. भारत की बात करें तो दिल्ली, पटना, लखनऊ, चंडीगढ़ समेत कई शहरों में हवा बेहद जहरीली हो गई है. दिल्ली-एनसीआर की बात करें तो वायु प्रदूषण को लेकर स्थिति सबसे ज्यादा खराब है. इससे निपटने के लिए यानी वायु प्रदूषण पर काबू पाने के लिए कृत्रिम बारिश (Cloud Seeding Delhi NCR) की चर्चा तेज हो गई है. दरअसल, दिल्ली-एनसीआर की जहरीली होती हवा के मद्देनजर आम आदमी पार्टी सरकार ने शहर में कृत्रिम बारिश कराने का फैसला लिया है. बताया जा रहा है कि 20 और 21 नवंबर के बीच कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है. यह भी जानकारी सामने आ रही है कि इसके लिए IIT कानपुर ने ट्रायल भी किया है. इसके बाद ट्रायल की रिपोर्ट दिल्ली सरकार को सौंपी है. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इसकी पुष्टि की है. यहां हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे होती है कृत्रिम बारिश?

Cloud Seeding: क्या होती है कृत्रिम बारिश

चीन समेत दुनिया के कई देशों में कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) का चलन रहा है. सूखा पड़ने अथवा अन्य जरूरत पड़ने पर दुनिया के कई देशों में कृत्रिम बारिश होती रही है. सामान्य भाषा में कहें तो केमिकल की मदद से बादलों का बारिश कराने के लिए तैयार किया जाता है. इसके जरिये होने वाली बारिश को कृत्रिम बारिश कहा जाता है. भारत की बात करें तो कृत्रिम बारिश कोई आसान प्रक्रिया नहीं है. इसके लिए पर्यावरण मंत्रालय समेत कई तरह की अनुमति की जरूरत होती है.

Cloud Seeding: कैसे होती है कृत्रिम बारिश?

बाढ़, सूखा, हीटवेव, तूफ़ान, जंगल में आग जैसी सूरतों में स्थिति को काबू करने के विकल्प के रूप में कृत्रिम वर्षा की चर्चा होती है. इसके साथ ही दुनिया के कई देशों में जरूरत पड़ने पर कृत्रिम बारिश कराने का चलन रहा है. कृत्रिम बारिश कैसे कराई जाती है? यह जानना आम लोगों के लिए रोचक है. मौसम विज्ञानियों के मुताबिक, ऐसी बारिश कराने के लिए आसमान में थोड़े बहुत प्राकृतिक बादलों का होना जरूरी होता है.

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Cloud Seeding: क्या है कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया

कृत्रिम बारिश के लिए आसमान में विमानों का इस्तेमाल किया जाता है. कृत्रिम बारिश की कड़ी में सिल्वर आइयोडइड, साल्ट और ड्राई आइस को आसमान में पहले से मौजूद बादलों में छोड़ा जाता है. वैज्ञानिक भाषा में इसे ही क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) कहा जाता है. इसके बाद पहले से निर्धारित जगह पर इसे गिराया जाता है. इस दौरान यानी कृत्रिम बारिश के दौरान विमान को उल्टी दिशा में ले जाते हुए केमिकल को छोड़ा जाता है. इसके बाद नमक के कण बादलों में मौजूद वाष्प (steam) को खींचते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान नमी भी खिंची चली जाती है. इसके बाद यह इकट्ठा होकर बारिश की बूंद का रूप ले लेती हैं. साथ ही दबाव बढ़ने पर यह बारिश बनकर बरस जाती है.

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Cloud Seeding: कब बारिश कराना सबसे अच्छा?

मानसून से पहले और बाद में कृत्रिम बारिश कराना आसान होता है क्योंकि बादलों में नमी ज्यादा होती है. लेकिन सर्दियों में इनमें नमी कम होने के कारण क्लाउड सीडिंग उतनी सफल नहीं हो पाती. कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल सिर्फ हवा को साफ करने के लिए ही नहीं, आग बुझाने और सूखे से बचाने के लिए भी किया जाता रहा है. कई देशों में इसके प्रयोग जारी हैं.

कितना आता है खर्च ?

जानकारों की मानें तो एक बार कृत्रिम बारिश की लागत 10-15 लाख रुपये होती है. कुल मिलाकर दिल्ली में अगर कृत्रिम बारिश होती है तो उस पर करीब 10 से 15 लाख रुपये का खर्च आएगा. अब तक दुनिया में 53 देश इस तरह का प्रयोग कर चुके हैं. कानपुर में छोटे विमान से इस आर्टिफिशियल रेन के छोटे ट्रायल किए गए हैं. इसमें कामयाबी भी मिली है. बताया जाता है कि कृत्रिम बारिश का खर्च क्षेत्र और बारिश का मात्रा पर भी निर्भर करता है.

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Cloud Seeding: कब हुई थी पहली बार कृत्रिम बारिश ?

क्लाउड सीडिंग का कॉन्सेप्ट (Cloud Seeding Concept) 1945 में विकसित किया गया था और इसी वर्ष कृत्रिम बारिश कराई गई. यह बहुत कामयाबी मानी गई. अब तक आलम यह है कि विश्व के 50 देशों में कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत में पहली बार 1951 में क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम बारिश कराई गई थी, हालांकि, आधिकारिक पुष्टि नहीं है. इसके बाद 1973 में आंध्र प्रदेश में पड़े सूखे का समाधान निकालने के लिए इसका सहारा लिया गया. अगली कड़ी में तमिलनाडु और कर्नाटक में कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल हुआ. 2008 में चीन में बीजिंग ओलिंपिक्स में 21 विमानों के जरिए क्लाउड सीडिंग की मदद से कृत्रिम बारिश कराई गई.

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