Home Latest धारावी का होकर रहेगा पुनर्विकास! प्रोजेक्ट पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ इन्कार

धारावी का होकर रहेगा पुनर्विकास! प्रोजेक्ट पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ इन्कार

by Sachin Kumar
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Dharavi Redevelopment Project

Dharavi Redevelopment Project : सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉरपोरेशन ने आरोप लगाया था कि उसको साल 2018 में 7,200 करोड़ रुपये में धारावी का प्रोजेक्ट दिया था लेकिन सरकार बदलने के बाद इसे अदाणी ग्रुप को 5,069 करोड़ रुपये में सौंप दिया गया.

Dharavi Redevelopment Project : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मुंबई में धारावी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है. इस मामले में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने अदाणी ग्रुप के पक्ष में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को पलटने से साफ मना कर दिया है. दरअसल, बॉम्बे हाई कोर्ट ने ने धारावी में झुग्गियों के पुनर्विकास के लिए रास्ता साफ कर दिया था और प्रोजेक्ट का टेंडर अदाणी ग्रुप के पास ही बरकरार रखने का फैसला सुनाया था और अपने फैसले में यह भी माना था कि प्रोजेक्ट की बोली के दौरान किसी प्रकार से मनमानापन, अनुचितता या विकृति नहीं पाई गई है.

सरकार बदलने के बाद प्रोजेक्ट बदला

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के खिलाफ सुनवाई की जिसमें सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉरपोरेशन ने आरोप लगाया था कि उसको साल 2018 में 7,200 करोड़ रुपये में धारावी का प्रोजेक्ट दिया था लेकिन सरकार बदलने के बाद इसे अदाणी ग्रुप को 5,069 करोड़ रुपये में सौंप दिया गया. अडानी ग्रुप मुंबई के मध्य में 259 हेक्टेयर की धारावी पुनर्विकास परियोजना के लिए सबसे अधिक बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में उभरी थी और साल 2022 में 5,069 करोड़ रुपये की पेशकश के साथ कॉन्ट्रैक्ट हासिल कर लिया था.

बिना पक्षपात की लगाई बोली

सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉरपोरेशन ने बॉम्बे हाई कोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर नोटिस जारी करते हुए पीठ ने अडानी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड को एक ही बैंक खाते के माध्यम से परियोजना के लिए भुगतान करने का निर्देश दिया है. पीठ द्वारा याचिका पर नोटिस जारी किए जाने के बाद सेकलिंक टेक्नोलॉजी कॉरपोरेशन (Seclink Technology Corporation) की ओर से पेश अधिवक्ता सी आर्यमा सुंदरम (C Aryama Sundaram) ने न्यायालय से यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने का आग्रह किया. राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में दावा किया था कि कॉन्ट्रैक्ट को उच्चतम बोली लगाने वाले को किसी भी अनुचित पक्षपात के बिना पारदर्शी तरीके से प्रदान किया गया था.

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