Happy Baisakhi 2024 : कड़ाके की सर्दी के बाद मौसम में बदलाव आ गया है. इस बीच बैसाखी त्योहार पर हजारों नाग भक्त जम्मू कश्मीर के बद्रवाह के प्राचीन सुबर-नाग मंदिर में नाग बैसाखी मनाने के लिए इकट्ठा हुए.
13 April, 2024
Happy Baisakhi 2024 : कड़ाके की सर्दी के बाद मौसम में बदलाव आ गया है. इस बीच बैसाखी त्योहार पर हजारों नाग भक्त जम्मू कश्मीर के बद्रवाह के प्राचीन सुबर-नाग मंदिर में नाग बैसाखी मनाने के लिए इकट्ठा हुए. यह मंदिर 12,000 फीट ऊंचाई पर बना हुआ है. 1,600 साल पुराने इस मंदिर के कपाट पारंपरिक समारोह के लिए खोल दिए गए हैं.
दर्शन के लिए 12 km तय करनी होती है पैदल यात्रा
सदियों पुराना यह त्योहार भद्रवाह की प्राचीन नागा संस्कृति का प्रतीक माना जाता है. इसे देश का पहला बैसाखी त्योहार भी कहा जाता है. इसके अलावा राज्य और देश के दूसरे हिस्सों में वसंत उत्सव शनिवार को मनाया गया. यहां पर सैकड़ों श्रद्धालु अपने भगवान सुबर नाग के दर्शन करने के लिए 12 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरे पहाड़ी घास के मैदान में इकट्ठा होते हैं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 7500 महिलाओं सहित 12,500 श्रद्धालुओं ने प्राचीन मंदिर का दौरा किया.
मेले के बाद ही भारत में हर जगह लगता है मेला
जम्मू कश्मीर के डोडा जिले का प्रसिद्ध भद्रवाह का प्राचीन मंदिर 1600-1700 साल पुराना है और यहां पर बैसाखी बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है. इसके अलावा इस खास त्योहार के लिए यहां पर मेला भी लगाया जाता है. इस मेले के बाद ही भारत में हर जगह मेले लगाए जाते हैं.
क्यों मनाया जाता है बैसाखी त्योहार
यहां पर बता दें कि सिख समुदाय में बैसाखी का त्योहार खालसा पंथ के स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. वैसाखी को विसाखी या बैसाखी के नाम से भी जाना जाता है. जानकारों की मानें तो बैसाखी पर्व की शुरुआत 30 मार्च 1699 से मानी जाती है. इस दिन सिख समुदाय के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. पंजाब समय अन्य राज्यों में यह त्योहार फसल कटने की खुशी में मनाया जाता है.
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